ताजमहल या तेजो महालय, जानिए रहस्य

By: Sep 21st, 2019 12:15 am

स्पष्टतः मूल रूप से शाहजहां द्वारा चुनवाए गए इन दरवाजों को कई बार खुलवाया और फिर से चुनवाया गया है। सन् 1934 में दिल्ली के एक निवासी ने चुनवाए हुए दरवाजे के ऊपर पड़ी एक दरार से झांककर देखा था। उसके भीतर एक वृहद कक्ष था और वहां के दृश्य को देखकर वह हक्का-बक्का रह गया तथा भयभीत-सा हो गया। वहां बीचोंबीच भगवान शिव का चित्र था जिसका सिर कटा हुआ था…

-गतांक से आगे…

इन कमरों को, जिन्हें कि शाहजहां ने अति गोपनीय बना दिया है, भारत के पुरातत्त्व विभाग द्वारा तालों में बंद रखा जाता है। सामान्य दर्शनार्थियों को इनके विषय में अंधेरे में रखा जाता है। इन 22 कमरों की दीवारों तथा भीतरी छतों पर अभी भी प्राचीन हिंदू चित्रकारी अंकित है। इन कमरों से लगा हुआ लगभग 33 फुट लंबा गलियारा है। गलियारे के दोनों सिरों में एक-एक दरवाजे बने हुए हैं। इन दोनों दरवाजों को इस प्रकार से आकर्षक रूप से ईंटों और गारे से चुनवा दिया गया है कि वे दीवार जैसे प्रतीत हों। स्पष्टतः मूल रूप से शाहजहां द्वारा चुनवाए गए इन दरवाजों को कई बार खुलवाया और फिर से चुनवाया गया है। सन् 1934 में दिल्ली के एक निवासी ने चुनवाए हुए दरवाजे के ऊपर पड़ी एक दरार से झांककर देखा था। उसके भीतर एक वृहद कक्ष था और वहां के दृश्य को देखकर वह हक्का-बक्का रह गया तथा भयभीत-सा हो गया। वहां बीचोंबीच भगवान शिव का चित्र था जिसका सिर कटा हुआ था और उसके चारों ओर बहुत सारी मूर्तियों का जमावड़ा था। ऐसा भी हो सकता है कि वहां पर संस्कृत के शिलालेख भी हों। यह सुनिश्चित करने के लिए कि ताजमहल में हिंदू चित्र, संस्कृत शिलालेख, धार्मिक लेख, सिक्के तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं जैसे कौन-कौन से साक्ष्य छुपे हुए हैं, उसकी सातों मंजिलों को खोलकर साफ.-सफाई कराने की नितांत आवश्यकता है। फ्रांसीसी यात्री बेर्नियर ने लिखा है कि ताज के निचले रहस्यमय कक्षों में गैर मुस्लिमों को जाने की इजाजत नहीं थी क्योंकि वहां चौंधिया देने वाली वस्तुएं थीं। यदि वे वस्तुएं शाहजहां ने खुद ही रखवाई होती तो वह जनता के सामने उनका प्रदर्शन गौरव के साथ करता, परंतु वे तो लूटी हुई वस्तुएं थीं और शाहजहां उन्हें अपने खजाने में ले जाना चाहता था, इसीलिए वह नहीं चाहता था कि कोई उन्हें देखे। नदी के पिछवाड़े में हिंदू बस्तियां, बहुत से हिंदू प्राचीन घाट और प्राचीन हिंदू शवदाह गृह हैं। यदि शाहजहां ने ताज को बनवाया होता तो इन सबको नष्ट कर दिया गया होता।

तोहफे में नहीं मिला था राजा जयसिंह से छीना यह महल

कोई किसी को मंदिर तोहफे में नहीं देता। पुरुषोत्तम ओक के अनुसार बादशाहनामा, जो कि शाहजहां के दरबार के लेखा-जोखा की पुस्तक है, में स्वीकारोक्ति है (पृष्ठ 403 भाग-1) कि मुमताज को दफनाने के लिए जयपुर के महाराजा जयसिंह से एक चमकदार, बड़े गुंबद वाला विशाल भवन (इमारत-ए-आलीशान व गुंबज) लिया गया जो कि राजा मानसिंह के भवन के नाम से जाना जाता था। जयपुर के पूर्व महाराजा ने अपनी दैनंदिनी में 18 दिसंबर 1633 को जारी किए गए शाहजहां के ताज भवन समूह को मांगने के बाबत दो फरमानों के विषय में लिख रखा है।    


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