नए आयकर कानून की जरूरत

By: Sep 16th, 2019 12:05 am

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

 

इस रिपोर्ट के अनुसार पांच लाख तक की आय पर जो मौजूदा आयकर छूट है वह आगे भी जारी रखी जाए। पांच से 10 लाख रुपए तक की वार्षिक आय पर जो मौजूदा 20 फीसदी की दर से आयकर है, उसे घटाकर 10 फीसदी किया जाए। 10 से 20 लाख रुपए तक की वार्षिक आय पर जो मौजूदा 30 फीसदी आयकर की दर है उसे घटाकर 20 फीसदी किया जाए। इससे मध्यम वर्ग के लोग लाभान्वित होंगे…

इन दिनों देश के करोड़ों करदाता आर्थिक सुस्ती से बढ़ रही मुश्किलों से राहत पाने के लिए नए डायरेक्ट टैक्स कोड और नए इन्कम टैक्स कानून को शीघ्र आकार दिए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। गौरतलब है कि विगत 19 अगस्त को नई प्रत्यक्ष कर संहिता, डायरेक्ट टैक्स कोड ‘डीटीसी’ का मसौदा तैयार करने के लिए गठित टास्क फोर्स के अध्यक्ष अखिलेश रंजन ने अपनी रिपोर्ट वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को सौंप दी है। इस रिपोर्ट में प्रत्यक्ष कर कानूनों में व्यापक बदलाव और वर्तमान आयकर कानून को हटाकर नए सरल व प्रभावी आयकर कानून लागू करने की बात कही गई है। नए आयकर कानून में छोटे करदाताओं की सहूलियत के लिए कई प्रावधान सुझाए गए हैं। असेस्मेंट की प्रक्रिया सरल किए जाने और आयकर कानून के किसी प्रावधान को लेकर करदाता सीधे केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड से व्यवस्था ले सकेंगे।

रिपोर्ट में मिनिमम अल्टरनेट टैक्स ‘मैट’ और डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स ‘डीडीटी’ को हटाने की सिफारिश की गई है। इसके अलावा कमाई पर दोहरे कर का बोझ भी खत्म करने की सिफारिश की गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार 5 लाख तक की आय पर जो मौजूदा आयकर छूट है वह आगे भी जारी रखी जाए। 5 से 10 लाख रुपए तक की वार्षिक आय पर जो मौजूदा 20 फीसदी की दर से आयकर है, उसे घटाकर 10 फीसदी किया जाए। 10 से 20 लाख रुपए तक की वार्षिक आय पर जो मौजूदा 30 फीसदी आयकर की दर है उसे घटाकर 20 फीसदी किया जाए। इससे मध्यम वर्ग के लोग बड़ी संख्या में लाभान्वित होंगे। रिपोर्ट में टैक्स विवादों के जल्द निपटारे के लिए भी अहम सुझाव दिए गए हैं। स्थिति यह है कि इस समय आयकर अपील ट्रिब्यूनल और उच्च अदालतों में 1.15 लाख करोड़ रुपए के मामले फंसे हैं। 3.41 लाख मामले आयकर कानून आयुक्त अपीलीय के पास लंबित हैं, जिनकी राशि 5.71 लाख करोड़ रुपए के लगभग है।

वस्तुतः कर विवादों का बढ़ना और लंबे समय तक निपटारा न होना सरकार के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई थी। रिपोर्ट में जीएसटी, कस्टम, फाइनांशियल इंटेलिजेंस यूनिट और इन्कम टैक्स विभागों के बीच जानकारी के लेन-देन की विशेष व्यवस्था निर्मित किए जाने की भी सिफारिश की गई है। उल्लेखनीय है कि प्रत्यक्ष कर का मतलब ऐसे कर से है, जो सीधा किसी व्यक्ति की आय, संपत्ति व अन्य मदों पर लगाया जाता है। प्रत्यक्ष कर अन्य लोगों पर हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है। करों में आयकर के अलावा पूंजीगत लाभ कर, संपत्ति कर, उपहार कर और कई अन्य शुल्क शामिल हैं। हमारे देश में सरकार की आय में प्रत्यक्ष कर में आयकर सबसे प्रमुख कर है। यदि हम देश में आयकर का इतिहास देखें तो पाते हैं कि देश में अंग्रेजों ने सन 1922 में आयकर की शुरुआत की थी। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पटरी से उतरी देश की अर्थव्यवस्था के लिए राजस्व जुटाने के मद्देनजर आयकर अस्थायी रूप से लागू किया गया था। तब से ही आयकर सरकार की आय का महत्त्वपूर्ण आधार बना हुआ है। यद्यपि देश की आजादी के बाद वर्ष 1961 तक देश की प्रत्यक्ष कर नीति व आयकर कानून में कुछ सुधार किए गए। फिर 1961 में आयकर अधिनियम लागू किया गया।

लेकिन इस अधिनियम में एक ओर कार्यान्वयन संबंधी जटिलताएं रहीं, वहीं दूसरी ओर विभिन्न रियायतों और अनेक छूटों के कारण कर अनुपालन में मुश्किलें बढ़ती गइर्ं। चूंकि मौजूदा प्रत्यक्ष कर एवं आयकर कानून दुरुह हैं और बीते 58 साल के विभिन्न अदालतों के फैसलों के बाद यह कानून काफी अस्पष्ट और भ्रामक हो चुका है। पिछले एक दशक से आयकर कानून में परिवर्तन की बात आर्थिक एवं वित्तीय क्षेत्र से लगातार उठती रही है। यूपीए सरकार ने अगस्त 2009 में विमर्श पत्र सहित प्रत्यक्ष कर संहिता का प्रारूप जारी किया था। अगस्त 2010 में प्रत्यक्ष कर संहिता विधेयक लोकसभा में पेश किया गया। सितंबर 2010 में इसे संसद की स्थायी समिति को भेजा गया। मार्च 2012 में स्थायी समिति ने रिपोर्ट सौंपी। लेकिन मई 2014 में लोकसभा भंग होने के साथ ही प्रत्यक्ष कर संहिता विधेयक, 2010 स्वतः समाप्त हो गया। इसके बाद जून 2014 में सरकार ने परिवर्तन के बाद इस विधेयक को फिर से पेश करने का अभियान आगे बढ़ाया।

उल्लेखनीय है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने नवंबर 2017 में नई प्रत्यक्ष कर संहिता के लिए टास्क फोर्स का गठन किया था। इस टास्क फोर्स के द्वारा विभिन्न देशों की प्रत्यक्ष कर प्रणालियों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लागू प्रत्यक्ष कर संधियों का तुलनात्मक अध्ययन करके भारत के लिए श्रेष्ठ नए आयकर कानून व श्रेष्ठ प्रत्यक्ष कर प्रणाली संबंधी रिपोर्ट 22 मई 2018 को देनी थी, लेकिन टास्क फोर्स का कार्यकाल आगे बढ़ता गया और अंततः नई प्रत्यक्षकर संहिता और नए आयकर कानून की यह रिपोर्ट 19 अगस्त 2019 को प्रस्तुत हुई है। नोटबंदी और कर प्रशासन द्वारा डाटा विश्लेषण के बाद मालूम हुआ है कि बड़ी संख्या में लोग आय छिपाते रहे तथा आवश्यक आयकर के भुगतान में बेईमानी करते रहे।

नोटबंदी के कारण कालाधन जमा करने वाले लोगों में घबराहट बढ़ी। ऐसे में आयकरदाताओं की संख्या बढ़ी। आयकरदाताओं की संख्या 2016-17 में बढ़ कर 6.26 करोड़ पर पहुंच गई है, जो 2015-16 की तुलना में 23 फीसदी अधिक है। वर्ष 2017-18 में आयकरदाताओं की संख्या और बढ़कर 7.4 करोड़ हो गई। निःसंदेह पिछले 58 साल से लागू प्रत्यक्ष कर व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन लाने के लिए रंजन की अध्यक्षता में पूर्ण अधिकारों से सुसज्जित कार्यबल के द्वारा प्रस्तुत आयकर एवं प्रत्यक्ष कर सुधारों से संबंधित सिफारिशें अहमियत रखती हैं। इन सिफारिशों के आधार पर नए कानून को अमलीजामा पहनाने के लिए कर प्रशासन को तत्काल अपनी क्रियान्वयन रणनीतियों और त्वरित संशोधनों की जरूरत पर ध्यान देना होगा। नए कानून से नए कारोबार और डिजिटल लेन-देन पर आयकर संबंधी स्पष्टता आएगी।

चूंकि इस समय देश की अर्थव्यवस्था सुस्ती के दौर में है, ऐसे में सरकार के द्वारा उद्योग-कारोबार जगत को राहत देने के लिए रंजन समिति द्वारा प्रस्तुत सिफारिशों के आधार पर ऐसी सरल और प्रभावी नई प्रत्यक्ष कर संहिता और नए आयकर कानून को शीघ्र आकार दिया जाना होगा, जिससे करदाताओं को सहूलियत और कर संग्रह भी बढ़े। दोनों को कठिनाई न हो। हम आशा करें कि नए आयकर कानून के आकार लेने के बाद बड़ी संख्या में नए आयकरदाता दिखाई देंगे और टैक्स संबंधी मुकदमेबाजी कम करने में मदद मिलेगी। साथ ही इससे देश की अर्थव्यवस्था गतिशील भी हो सकेगी। 


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