निवेश की नक्काशी

By: Sep 12th, 2019 12:05 am

राष्ट्रीय आर्थिक की वर्जनाओं के बीच हिमाचल में इन्वेस्टर मीट की सार्थकता खुद में झांकने की सबसे बड़ी कसौटी है। खासतौर पर जब जम्मू-कश्मीर को पुचकारते राष्ट्रीय संसाधन दंडवत हों और बदली परिस्थितियों में समाधान के हर रास्ते पर केंद्र सरकार मदद को तैयार हो, तो पड़ोसी राज्यों के बीच पुनः भविष्य की पैमाइश होगी। यह दीगर है कि इन्वेस्टर मीट पर केंद्र सरकार ने हिमाचल की पैरवी की है और इसके लिए पांच करोड़ की धनराशि भी रसीद हुई, फिर भी हमसे एक महीना पहले जम्मू-कश्मीर का निवेश सम्मेलन अपनी खास वजह और लक्ष्यों की जो इबारत लिखना चाहता है, उसका जिक्र प्रदेश के अस्तित्व से कहीं बड़ा है। जम्मू-कश्मीर में बारह से चौदह अक्तूबर तक की मीट को दरअसल निवेश की नक्काशी में देखना होगा और इसमें ऐसा हर शृंगार होगा जिसका ताल्लुक देश की हिफाजत में सहेजकर रखने की वचनबद्धता से जुड़ा है। हिमाचल हमेशा जम्मू-कश्मीर रियासत की प्राथमिकताओं में नजरअंदाज हुआ है। केंद्र सरकारें पहले ही या यह कहें कि वर्षों से राष्ट्रीय संसाधन बांट कर देश के बंटवारे की रीत और रीढ़ पैदा करती रही हैं और इसीलिए इस बार शब्द लंबे और मकसद भी नई बुनियाद रखेंगे। दूसरी ओर हिमाचल में निवेश के लिए विनिवेश की जेब टटोलनी पडे़गी या धारा 118 की राह खोलनी पड़ेगी। हिमाचली निवेश के लिए सरकार की मेहनत तथा अब तक जाहिर एमओयू का संकल्प अगर साकार हो जाए तो हासिल सफलता की हर पंक्ति का अर्थ निकलेगा, वरना मंदी के असर में लुढ़कते पूंजी बाजार के सूचकांक को देखें, तो पता चलेगा कि कितनी कंपनियों के शेयर लुढ़क रहे हैं। डालर के मुकाबले रुपए के लुढ़कते दामन से निवेश बटोरना, पर्वत में नई जमीन खोजने जैसा है। हिमाचल में आए निवेश के माध्यम से ऊर्जा, फार्मा, सीमेंट और वन आधारित उद्योगों की स्थिति बताती है कि ये क्षेत्र अब असंतुष्ट हो चुके हैं या प्रदेश में ऐसे निवेश से ही स्थायित्व है जो यहां की आबोहवा या प्राकृतिक संसाधनों पर केंद्रित होगा। जाहिर है पर्यटन, आईटी, बागबानी, पुष्प, वनौषिधियों तथा हर्बल उत्पादों में इतनी क्षमता है कि निवेश अपना स्थायी रिश्ता कायम कर सकता है। इसके अलावा स्थानीय निवेशक का स्थान व महत्त्व तय करते हुए इनके हिसाब से कुछ क्षेत्र सुरक्षित होने चाहिएं। प्रदेश में निवेशक को केंद्रीय प्रोत्साहन अगर वाजपेयी सरकार के औद्योगिक पैकेज की तरह नहीं मिलता है, तो भी राष्ट्रीय उच्च मार्ग प्राधिकरण, भारतीय रेल तथा उड्डयन एवं विमानन के माध्यम से सरकारी निवेश की जरूरत रहेगी। सड़क व रेल विस्तार के जरिए माल ढुलाई, फलोत्पादन तथा पर्यटन की क्षमता का पूर्ण दोहन संभव होगा, तो हवाई अड्डों की नई भूमिका में हाई एंड टूरिज्म का विस्तार होगा। इसलिए बारह से चौदह अक्तूबर की फिजां में निवेश का रुख तब जाहिर होगा, जब देश की निगाहें जम्मू-कश्मीर को बदले हालात में देखेंगी। हिमाचल के सामने वाइब्रेंट गुजरात की तस्वीर के बाद जम्मू-कश्मीर के बदले हालात में आमंत्रित निवेश को अपनी नई प्रतिस्पर्धा में देखना होगा। हिमाचल अपने इतिहास, राष्ट्रीय संवेदना, धर्मनिरपेक्षता, उदात चिंतन, साक्षरता, तहजीब व संघर्ष की वजह से जम्मू-कश्मीर ही नहीं, उत्तराखंड से भी आगे है। फर्क सिर्फ इतना है कि आज भी शिक्षा में गुणवत्ता ढूंढने के बजाय शिक्षा विभाग संस्कृत विश्वविद्यालय की नींव खोज रहा है। पड़ोसी राज्यों से कहीं अधिक सरकारी मेडिकल कालेज खोलकर भी हिमाचल अगर स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहतरीन निजी अस्पताल चाहता है, तो दायित्व की पड़ताल में निवेश का माहौल पैदा करना होगा।

 


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