पच्छाद में दूध की सूखी नदियां मांग रहीं हिसाब

By: Sep 29th, 2019 12:15 am

हिमाचल में धर्मशाला और पच्छाद विधानसभा हलकों के लिए उपचुनाव हो रहा है। दोनों ही विधानसभा क्षेत्र किसान बहुल हैं । खासकर पच्छाद के तो 113 बूथों में 110 ग्रामीण हैं। पच्छाद हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री डा वाईएस परमार का गृहक्षेत्र भी है। डा. परमार ने अस्सी के दशक में देहात की समस्याओं को भांपते हुए पच्छाद में दुग्ध क्रांति का सूत्रपात किया था। उस समय गांव स्तर पर सोसायटी बनाई गई थीं,जिन्हें  पशुपालक अपना दूध बेचते थे। बुजुर्ग बताते हैं कि उस समय  तकरीबन हर घर में एक गाय या भैंस होती थी, दूध से खूब कमाई होती थी, लेकिन समय बदला और धीरे-धीरे नेताओं की अनदेखी से आज यह व्यवसाय अब  महज 25 फीसदी लोग मुश्किल से कर रहे हैं। पता चला कि कई सोसायटियां बंद हो गई हैं। ऊपर से  फीड और हरा चारा बेहद महंगा है। रही सही कसर मिल्कफेड पूरी कर रहा है। पशुपालकों की मानें, तो हिमफेड बेहद कम दाम पर उनसे दूध खरीदता है। मिल्कफेड ने ग्रेडिंग के हिसाब से  दूध का रेट 22 से लेकर 28 रुपए तक रखा है। कई बार तो दाम इससे भी कम देते है। अगर खर्चे की बात करें तो दिन में पांच लीटर दूध देने वाली गाय का एक दिन का फीस-घास और दवा का दस रुपए खर्च आता है, जबकि आमदनी होती है 10 रुपए। यही कारण है कि लोग धीरे धीरे इस काम को छोड़ रहे हैं। खास बात यह भी कि इस क्षेत्र में जर्सी  की गाय ज्यादा पाली जाती है जिस वजह से उसमें फैट कम निकलता है और उन्हें दूध के कम दाम मिलते है। फिलहाल कई विधानसभा और लोकसभा चुनाव बीत चुके हैं,लेकिन पच्छाद के पशुपालकों का बयानवीर नेताओं से सवाल कायम है। क्या यही सपना देखा था हिमाचल निर्माता डा वाईएस परमार ने।              

रिपोर्ट संजय राजन, सराहां (पच्छाद,सिरमौर)

पोलीहाउस कितने कामयाब सामने आएगा सच

हिमाचल में ऐसा ही कुछ पोलीहाउस योजना के साथ हुआ है। शुरू में योजना  की कामयाबी से ज्यादा 80 फीसदी अनुदान का प्रचार हुआ। प्रदेश में दो बड़ी योजनाओं के तहत पोलीहाउस योजना आगे बढ़ी है…

अकसर सबसिडी के चक्कर में भोले भाले लोग सरकारी योजना को शुरू तो कर लेते हैं,लेकिन जब कुछ हासिल नहीं होता,तो  सब मिट्टी हो जाता है। हिमाचल में ऐसा ही कुछ पोलीहाउस योजना के साथ हुआ है। शुरू में योजना  की कामयाबी से ज्यादा 80 फीसदी अनुदान  का प्रचार हुआ। प्रदेश में दो बड़ी योजनाओं के तहत पोलीहाउस योजना आगे बढ़ी है। सैकड़ों भोले भाले किसानों ने भी इसके लिए अप्लाई कर दिया,लेकिन उन्हें क्या पता था कि इसका फायदा पोलीहाउस लगाने वाली कंपनी को ज्यादा होगा और उन्हें कम। नतीजा यह हुआ कि आज हर गांव में हमें उजड़े पोलीहाउस नजर आते हैं। किसी की सीट फट गई है,तो कहीं पाइप मुड़ी हुई है। खैर, सरकारें या कृषि विभाग को पोलीहाउस लगाने तक का मंत्र जानते हैं,उसके बाद क्या होता है,उसका कोई पता नहीं। लेकिन प्रदेश में पहली बार पोलीहाउस का आर्थिक सर्वे होने जा रहा है। और इस काम का बीड़ा उठाया है एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पालमपुर ने। विवि के कुलपति अशोक सरयाल ने बताया कि सर्वे के लिए 37.75 लाख रुपये का प्रोजेक्ट स्वीकृत मंजूर हो चुका है। बहरहाल, इस सर्वे से कई रोचक खुलासे होना तय है।

रिपोर्ट जयदीप रिहान, पालमपुर

सेब नहीं मार्केट का राजा बना टमाटर

इस बार भले ही सेब की बंपर पैदावार हुई है, लेकिन मार्केट का राजा टमाटर ही रहा। मार्केट पहुंचे सेब व टमाटर की अब तक की औसत पर गौर करे तो टमाटर ने उत्पादकों की बल्ले-बल्ले की है। हालांकि टमाटर सीजन अब अपने अंतिम पड़ाव पर हैं और सेब सीजन भी 80 फीसदी तक पहुंच चुका है। जानकारी के अनुसार कृषि उपज एवं मंडी समिति सोलन के अधीन सभी मंडियों में इस सीजन 6 लाख 19 हजार 194 क्रेट टमाटर के पहुंचे। हालांकि सीजन के दौरान टमाटर के रेट में काफी उतार चढ़ाव रहा, बावजूद इसके किसानों को अच्छे खासे रेट मिले। किसानों को सबसे कम 600 जबकि सबसे अधिक 21 रुपए प्रति क्रेट तक रेट मिला। पूरे सीजन पर बात करे तो टमाटर का रेट 1300 रुपए प्रति क्रेट रहा। इसके अलावा यदि सेब की बात करे तो सोलन मंडी में औसतन 20 हजार जबकि टर्मिनल मंडी परवाणू में 23 हजार बॉक्स प्रतिदिन पहुंच रहे हैं। 20 सितंबर तक टर्मिनल मंडी परवाणू में 14 लाख 83 हजार, 422 जबकि सोलन मंडी में 15 लाख 15 हजार 551 बॉक्स सेब के पहुंचे हैं। सेब मंडी सोलन में सबसे कम 250 जबकि सबसे अधिक 1650 रुपए प्रति बॉक्स के हिसाब से सेब बिका। यदि औसत पर गौर फरमाए तो सोलन मंडी में अब तक 700 रुपए प्रति बॉक्स रेट रहा है। टर्मिनल मंडी परवाणू में सबसे कम 400 बल्कि सबसे अधिक 1800 रुपए तक सेब का  रेट रहा। औसत के हिसाब से टर्मिनल मंडी परवाणू में अब तक 800 रुपए प्रति बॉक्स के हिसाब से सेब की बिक्री हुई है। यद्यपि परवाणू मंडी में सोलन मंडी की अपेक्षा कम सेब की पेटियां पहुंची हैं। आकंड़ों पर नजर डाले तो टर्मिनल मंडी परवाणू में अभी तक 135 करोड़, 92 लाख, 20 हजार, 791 रुपए का कारोबार हुआ है। इसके अतिरिक्त सोलन मंडी में 170 करोड़, 25 लाख 27 हजार, 995 रुपए का कारोबार हुआ है। यही नहीं सोलन मंडी में लहसुन, शिमला मिर्च और बीन का भी बोलबाला रहा है।

सुरेंद्र ममटा, सोलन

कृषि उपज एवं मंडी समिति के अधीन सभी मंडियों में टमाटर का अच्छा कारोबार हुआ। किसानों को टमाटर के रेट भी अच्छे मिले। दूसरी ओर सोलन व टर्मिनल मंडी परवाणू में इन दिनों सेब सीजन चरम पर है। दोनों मंडियों में अच्छा व्यापार हो रहा है। व्यापार को पादर्शिता बनाने के लिए नजर बनाए रखे हुए हैं। ई-नाम के तहत व्यापार बढ़ाने के लिए किसान-बागवानों को जागरूक किया जा रहा है

डा. रविंद्र शर्मा, सचिव, कृषि उपज एवं मंडी समिति, सोलन

प्याज का नखरा 60 रुपए में

राजधानी शिमला में इन दिनों प्याज की कीमतें आसमान छूने लग गई है प्याज ने रसोई का बजट बिगाड़ दिया है यहां तक कि छोटे दुकानदारों ने प्याज खरीदने में ही हाथ पीछे खींच लिए हैं । शिमला  में प्याज की कीमतों ने छलांग लगा दी है। एक सप्ताह पहले जो प्याज 30 रुपये किलो बिक रहा था, वहीं अब 60 रुपये किलो हो गया है। शिमला में बड़े प्याज के दोमों से आम लोगों के आंखों से आसू निकाल दिए है। आम आदमियों का कहना है कि प्याज की किमतों में हुई वृद्धि से हर कोई परेशान है। हर कोई यह सोचने  के लिए मजबूर है कि प्याज खरीदे या नहीं। प्याज के दामों में जो उछाल आया है उउसे आम जनता को घर खर्च में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता  है।

सिरमौर के अदरक पर भारी बंगलूरू का

जिला सिरमौर के अदरक को इस बार बंगलूरू से टक्कर मिल रही है। सिरमौरी प्रोडक्ट के मार्केट में आते ही बंगलूरू के के अदरक ने भी दस्तक दी है। सिरमौर का अदरक थोक में 50 से 60 रुपए प्रतिकिलो बिक रहा है। एक माह पहले यह फसल 100 रुपए प्रतिकिलो तक बिक रही थी। सिरमौर के अदरक को इस मर्तबा बंगलुरु के अदरक ने अदरक की प्रमुख मंडियों लुधियाना, अमृतसर, दिल्ली में टक्कर दी है। वहीं प्रदेश का अदरक केवल जालंधर और चंडीगढ़ की मंडियों तक ही सीमित हो गया है। आढ़ती राजेश ठाकुर ने माना कि बंगलूरू के अदरक के आने से दाम घटे हैं। जिला सिरमौर की सबसे अधिक अदरक उत्पादन बैल्ट पांवटा साहिब का पहाड़ी क्षेत्र है। इस क्षेत्र में 468 हेक्टेयर क्षेत्र में अदरक का उत्पादन किया जाता है, जबकि संगड़ाह ब्लॉक के तहत 452 हेक्टेयर क्षेत्र में अदरक का उत्पादन किया जाता है।

रिपोर्ट : सुभाष शर्मा, नाहन

सोलन और परवाणू में तीन अरब का सेब

इस बार का सेब कई पुराने रिकार्ड ध्वस्त कर सकता है। हालांकि अभी लगभग 20 फीसदी सेब सीजन शेष हैं, बावजूद इसके सेब मंडी सोलन एवं टर्मिनल मंडी परवाणू में अरबों रुपए का कारोबार हो गया है।  बीते 22 सिंतबर तक दोनों मंडियों में अब तक तीन अरब, 12 करोड़, 99 लाख, 81 हजार, 907 रुपए सेब का कारोबार हो गया था। टर्मिनल मंडी परवाणू में एक अरब, 39 करोड़, 85 लाख, 92 हजार 191 रुपए, जबकि सेब मंडी सोलन में एक अरब, 73 करोड़, 13 लाख, 89 हजार 716 रुपए का कारोबार हुआ है। हालांकि इन दिनों मंडियों में हर बार अरबों रुपए के सेब की खरीद-फरोख्त होती है, लेकिन इस बार आंकड़ें कुछ और है। मंडी समिति की उम्मीद है कि जब तक सीजन चलेगा, तब तक इन दोनों मंडियों में तीन-तीन अरब सेब का कारोबार हो जाएगा। मंडी समिति की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार अभी तक टर्मिनल मंडी परवाणू में 15 लाख 34 हजार, 358 बॉक्स जबकि सेब मंडी सोलन में 15 लाख 46 हजार 818 बॉक्स सेब के पहुंचे। इसके अतिरिक्त हिमफैड एवं एचपीएमसी द्वारा खरीदे गए सेब के आंकड़े अलग है।

रिपोर्ट : सुरेंद्र मामटा — सोलन

दिल्ली और बंगलूरू पहुंची पुलिस एसआईटी

फर्जी आढ़तियों पर हिमाचल पुलिस का डंडा चल पड़ा है। अब तक पुलिस एसआईटी ने बागबानों से ठगी करने वाले पांच आढ़तियों को हिरासत में ले लिया है, जिनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है।

दोनों मंडियों में सेब का अच्छा कारोबार हो रहा है। यह पहली बार है, जब सोलन में परवाणू की अपेक्षा ज्यादा संख्या में सेब के बॉक्स पहुंचे हैं। दोनों मंडियों में अभी तक तीन अरब से ज्यादा का कारोबार हो चुका है

डा. रविंद्र शर्मा, सचिव, कृषि ऊपज एवं मंडी समिति, सोलन

जुब्बल से सोलन पहुंचे दुखी बागबान

हिमाचल में चल रहे सेब सीजन के दौरान  के दौरान दो तरह की तस्वीरें सामने आ रही हैं। एपीएमसी की मानें, तो सख्ती के बाद आढ़ती धड़ाधड़ पंजीकरण करवा रहे हैं। बागबानों को सही समय पर पेमेंट हो रही है और निगम के कड़े रूख से गड़बड़ करने वाले आढ़ती मैदान ही छोड़ चुके हैं। यह तो रही  पहली तस्वीर। इसी तस्वीर का दूसरा पहलू देखें,तो वह काफी डरा देने वाला है। सोलन सब्जी मंडी पहुंचे ये बागबान कहते हैं कि साहब! हम सब बहुत परेशान है। आढ़ती से उन्हें सेब की बकाया पेमेंट नहीं मिली  है। ये सभी 200-200 किलोमीटर दूर से यहां आए है,वे यहां के कई बार चक्कर काट चुके है।  सभी पीडि़त  चौपाल, जुब्बल और रोहड़ू क्षेत्र के रहने वाले हैं। इनमें  कइयों ने तो यहां तक कहा कि दो साल से पेमेंट नहीं मिली। इन लोगों बाकायदा लिखित शिकायत दी है। उम्मीद है कि इस मसले पर शीघ्र सरकार और निगम की तरफ से एक्शन होगा।

रिपोर्ट : सुरेंद्र ममटा,सोलन

सुनो सरकार : यह नलकूप 2003 से बंद

जिला कांगड़ा के फतेहपुर उपमंडल की  पंचायत चकबाड़ी में वहां के किसानों को सिंचाई सुविधा मुहैया करवाने के लिए प्रदेश सरकार के कृषि विभाग द्वारा वर्ष 2002 में नलकूप नं. 93 का लाखों की धनराशि खर्च कर निर्माण किया गया था । आरंभ में इस नलकूप  से गांव के करीब 100 किसानों को लाभ मिलता था। परंतु बाद में विभाग के अडि़यल रवैये से इस नलकूप को वर्ष 2003 में ही महज डेढ़ साल के अंतराल में ही बंद कर दिया । ग्रामीणी जोध सिंह ने इस ट्यूबवेल के लिए जमीन दान दी थी। लेकिन अब सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया है। उक्त नलकूप वर्ष 2003 से लगातार बंद पड़ा है, मगर विभाग ने इसे दोबारा क्त्रियाशील करने में कोई जहमत नहीं की। मुख्यमंत्री सेवा संकल्प हेल्पलाइन पर भी ग्रामीण इसकी शिकायत कर चुके हैं। उम्मीद है इस मसले पर जल्द कार्रवाई होगी।                             

रिपोर्ट : बीएस पठानिया, राजा का तालाब

ये लौकी जैविक खाद से तैयार की है

जैविक उर्वरक का उपयोग रंग लाने लगा है। इससे कई किसान जुड़ने लगे हैं। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है े टिक्कर के प्रगतिशील किसान खूब राम ने। उन्होंने तीन फुट से ज्यादा लंबी लौकी और चार किलो से भी ज्यादा वजनी घीया तैयार किया है। खूब राम ने बताया कि उन्होंने कृषि विभाग द्वारा प्रदत्त जैविक खेती का प्रशिक्षण प्राप्त किया है और उसी अर्जित ज्ञान के उपयोग से वह जैविक उर्वरक जैसे जीवामृत और जैविक कीट नाशक जैसे बीजामृत का इस्तेमाल करके पूर्णतः प्राकृतिक खेती के माध्यम से कृषि उपज एवम सब्जी उत्पादन कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस विधि से उगाई गई घीया आल की बेल आश्चर्यजनक रूप से बढ़ कर फैल रही है और उसपर लगे घिये लम्बेए स्वस्थ और रोगविहीन है।       

रिपोर्ट : सुरेश शर्मा, गागल

झोलाछाप आढ़ती ने फंसाए लाखों रुपए

झोलाछाप आढ़तियों ने मेहनतकश बागबानों को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। कुछ ऐसे ही मामले में बार-बार नोटिस के बावजूद एक आढ़ती ने कोटखाई के बागबान बालानंद चंदेल के 11 लाख 39 हजार 225 रुपए में से पांच लाख रुपए दे दिए हैं, जबकि छह लाख 39 हजार 225 रुपए अभी तक लंबित हैं। एपीएमसी के सचिव ने संबंधित आढ़ती को चार अक्तूबर को बागबान बालानंद के खाते में रुपए जमा करने का नोटिस दिया है।

बागबानों से ठगी के 101 केस रजिस्टर्ड

बताया गया कि वर्ष 2018-19 में एपीएमसी के पास किसानों को कमीशन एजेंटों द्वारा राशि नहीं देने के 101 मामले पंजीकृत हुए हैं। कमीशन एजेंटों के पास किसानों का 2.15 करोड़ से अधिक की राशि लंबित है।

रिपोर्ट : आरपी नेगी-शिमला

सीधे खेत से

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