बीजाक्षरों में देवताओं की शक्ति होती है

By: Sep 7th, 2019 12:15 am

जिस प्रकार एक छोटे और साधारण से बीज में सूक्ष्म रूप से एक विशाल वृक्ष छिपा रहता है और दिखाई नहीं देता, फिर भी मिट्टी, जल तथा खाद आदि के संपर्क से वह फल-फूल आदि से लदा एक बृहद एवं विशाल वृक्ष बन जाता है, उसी प्रकार विभिन्न बीजाक्षरों में तत्संबंधी देवताओं की महान शक्ति छिपी रहती है। ऐसा माना जाता है कि सर्वप्रथम जब ईश्वर की इच्छा से समष्टि प्रकृति का पहला स्पंदन हुआ तो उससे ओंकार की उत्पत्ति हुई। जब दूसरी बार प्रकृति का व्यष्टि रूप में स्पंदन हुआ तो क्रमशः पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि तथा अहंकार से आठ बीजों की उत्पत्ति हुई…

-गतांक से आगे…

अर्थात गोलाकार आसन पर विराजमान, हाथी के वाहन वाले, सुनहरे वर्ण वाले, कुंकुम और केसर की गंध से युक्त, लवण जैसे स्वादु, जंबूद्वीप के समान विस्तृत, चार मुख, आठ भुजा, काले नेत्र, जटा और मुकुट से मंडित एवं श्वेत वर्ण, मोतियों के आभूषण वाले, अत्यंत बलवान, गंभीर तथा पुल्लिंग जैसे लक्षणों वाले अ-कार का मैं ध्यान करता हूं। उपर्युक्त वर्णमाला के अतिरिक्त हजारों ऐसे बीज मंत्र हैं जो दो-दो अक्षरों अथवा अनेक अक्षरों के परस्पर मेल से बने हुए हैं। इन बीजों की संज्ञा-ज्ञान रुद्रयामल आदि तंत्र ग्रंथों में अनेक रूपों में निश्चित है जिनका परिचय स्वाध्याय तथा गुरु-परंपरा से प्राप्त हो सकता है। श्लोकों में जहां किसी बीज के जप की सूचना दी गई है, वह ऐसे निश्चित संकेतों से की गई है जिससे मंत्र की गुप्तता भी रह जाए और साधक उससे लाभ भी उठा सके। केवल वर्णमाला के अक्षरों का पुरश्चरण करके नित्य जप करते रहने से भी सभी कार्य सिद्ध होते हैं तथा मंत्र एवं बीज मंत्र का संपुटात्मक जप भी शीघ्र सिद्ध होता है। संपूर्ण वर्णमाला का भी जप किया जाता है। जिस प्रकार एक छोटे और साधारण से बीज में सूक्ष्म रूप से एक विशाल वृक्ष छिपा रहता है और दिखाई नहीं देता, फिर भी मिट्टी, जल तथा खाद आदि के संपर्क से वह फल-फूल आदि से लदा एक बृहद एवं विशाल वृक्ष बन जाता है, उसी प्रकार विभिन्न बीजाक्षरों में तत्संबंधी देवताओं की महान शक्ति छिपी रहती है। ऐसा माना जाता है कि सर्वप्रथम जब ईश्वर की इच्छा से समष्टि प्रकृति का पहला स्पंदन हुआ तो उससे ओंकार की उत्पत्ति हुई। जब दूसरी बार प्रकृति का व्यष्टि रूप में स्पंदन हुआ तो क्रमशः पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि तथा अहंकार से आठ बीजों की उत्पत्ति हुई।

बीजामंत्रास्रयः पूर्वं ततोअष्टौ परिकीर्तिताः।

गुरुबीजं शक्तिबीजं रमाबीजं ततो भवेत्।।

कामबीजं योगबीजं तेजोबीजमथापरम्।

शांतिबीजं च रक्षा च प्रोक्ता चैषां प्रधानता।।

अर्थात सर्वप्रथम तीन बीज मंत्र अ-उ-म् उत्पन्न हुए। तदनंतर आठ बीज – गुरु बीज, शक्ति बीज, रमा बीज, काम बीज, योग बीज, तेजो बीज, शांति बीज तथा रक्षा बीज उत्पन्न हुए। ये सब बीज मंत्रों में प्रधान कहे गए। सामान्य वर्ण योजना वाले वर्ण समुदाय को अकूट मंत्र कहते हैं। किसी निश्चित दृष्टि एवं उद्देश्य को लेकर जो वैज्ञानिक वर्ण योजना की गई हो, वे अकूट मंत्र हैं।


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