रिवालसर में देह त्याग समाधि में लीन हुए लामा वांगडोर
पांच दिन बाद भी जिगर बौद्ध मंदिर के प्रमुख लामा का शरीर ताजा, पूजा-पाठ को पहुंच रहे लोग
रिवालसर -हिंदू एवं बौद्ध अनुयायियों में अपनी विशेष पहचान रखने के साथ देश विदेशों में विख्यात रहे जिगर बौद्ध मंदिर रिवालसर के प्रमुख लामा वांगडोर रिम्पोछे उर्फ ओंगदू 18 सितंबर को प्रातः 2ः52 बजे अपनी देह का त्याग कर समाधि में लीन हो गए। इस बात की खबर फैलते ही क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ पड़ी और देश-विदेशों के साथ दूरदराज क्षेत्रों से लोग उनके अंतिम दर्शनों के लिए रिवालसर पहुंचना शुरू हो गए। समाधि में लीन लामा के शरीर को बिना बर्फ के रखा हुआ है और शरीर पर किसी प्रकार के केमिकल का लेप नहीं किया गया है। फिर भी ऐसा लगता है कि लामा जी अभी उठ खड़े हो जाएंगे। हैरानी की बात है कि लामा का शरीर बिलकुल तरोताजा लगता है और उनके जिंदा होने का एहसास होता है। हालांकि उन्हें शरीर छोड़े हुए पांच दिन बीत चुके हैं। करीब 87 वर्ष की आयु में अकस्मात देह छोड़ने से स्थानीय लोग व भक्त खुद को बेसहारा महसूस कर रहे हैं। लामा के देह त्याग के बाद देश-विदेशों से आये लामा लोग लगातार पूजा-पाठ कर रहे हैं। दाह संस्कार को लेकर जिगर मूर्ति बौद्ध मंदिर का कामकाज देख रहे याप मिनचुंग दोरजे व अनी केलसंग ने बताया कि लामा रिम्पोछे का शरीर अपने आप जब तक दाह संस्कार का एहसास नहीं करवाएगा (इजाजत नहीं देगा), तब तक पूजापाठ का क्रम चलता रहेगा और शरीर को इसी अवस्ता में रखा जाएगा। उचित समय आने पर दाह संस्कार होगा।
1958 में तिब्बत से आए थे
लामा वांगडोर रिम्पोछे की शिष्य लीना, जो अमरीका से हैं, लामा के देह त्याग के बाद रिवालसर आई हुई हैं। उन्होंने बताया कि लामा जी सिद्धपुरुष थे उनका जन्म तिब्बत के खम प्रांत स्थित जिगर में 20 फरवरी, 1932 में हुआ था। वर्ष 1958 में वह तिब्बत छोड़ अपने गुरु टुकसी रिम्पोछे को अपनी पीठ पर उठाकर पहाड़ों को लांघते हुए यहां पहुंचे थे। सपने में लीना को इस पहाड़ी व लामा के दर्शन हुए तो वह उन्हें ढूंढती हुई यहां पहुंची थी और उसके बाद उनसे बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण की। रिवालसर नगर पंचायत के अध्यक्ष लाभ सिंह ठाकुर ने लामा रिम्पोछे को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि हमने ने एक सच्चे संत को खो दिया है।
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