विष्णु पुराण
यत्तु मेघेः समुत्सृष्ट वारि यत्प्राणिनां द्विज।।
पुस्णात्योषध सर्वा जीवनायावृत हि तत।।
तेन वृद्धि पर्रा नीतः सकलर्श्चाषधीगणः।
साधकः फलपाक्रांतः प्रजानां द्विज जायते।।
तेन यज्ञान्यथाप्रोक्तान्मानवाः शास्त्रचक्षुषः।
कूर्वंत्यहरहस्तश्च देवानाप्याययंति ते।।
हे द्विज! मेघों के द्वारा बरसाया जाने वाला जल प्राणियों के जीवन के लिए अमृत तुल्य तथा औषधियों का पोषक है। उस वृष्टि जल से सब औषधीयां परम वृद्धि को प्राप्त होती हैं और पककर फलों के रूप में प्रजाओं की पोषक होती हैं। उनसे अस्त्रों के ज्ञाता विज्ञजन प्रतिदिन विधिवत यज्ञों के द्वारा देवताओं को प्रसन्न करते हैं।
एवं यत्राश्चवेदाश्च वर्णाश्च दृष्टिपूर्वकाः।
सर्वे देवानिकः याश्च सर्वे भूतगणाश्च ये।।
दृष्टया धृतमिदं सर्व भिन्नं निष्पाद्यते यया।
सापि निष्पाद्यते दृष्टिः सविता मुनिसत्तम।।
आधारभूतः सवितुध्रुवो मुनिवरोत्तम।
धु्रवस्य शिशुमारोऽसौ सोऽपि नारायणात्मकः।।
दृदि नारायणस्तस्य शिशुमारस्य
संस्थित ः।
विभर्त्ता सर्व भूतानामादिभूतः सनातनः।
इस प्रकार भद्र यज्ञ, वेद, ब्रह्मादि चतुवर्ण, समस्त देवता तथा अन्याय प्राणी वर्षा के ही आश्रित हैं। अन्न को उत्पन्न करने वाली वर्षा ही इन सबको धारण करने वाली है और वर्षा सूर्य से उत्पन्न होती है। हे मुनिश्वरो! श्रेष्ठ सूर्य का आधार ध्रुव है और ध्रुव आधार शिशुमार है और उस शिशुमार के भी आधार भगवान श्रीनारायण हैं। उस शिशुमार के हृदय में श्री नारायण का निवास है, सो सब प्राणियों के पालक आदिभूत एवं
सनातन हैं।
शाशीतिमंडल शत काष्ठयोरंतर द्वयो ः।
आरोहथावरोहाभ्या भानोरब्देन या गतिः।।
स रधोऽथिष्टितो देवैरादित्यैऋर्षिभिस्तथा।
गंधर्वेरप्सरोभिश्च ग्रामणीसर्पराक्षसः।।
धाता क्रतुस्थता चैव पुलस्त्यो वासुकिस्त्थः।
रथभृदग्रामणीहंतिस्तुंबरुश्चैव सप्तमः।।
एते वसंति वै चैत्रे मधुमासेसदैव हि।
मैत्रेय स्यंदने थानोः सप्त मासधिकारिणः।।
अर्यमा तुलहश्चैव रथौजाः पुञ्जिकस्थला।
प्रहेतिः कच्चवींरश्च न रदश्च रथे रवेः।।
त्राधवे निवासंत्पेते शुचिसंज्ञे निबोध में।
मित्रोऽत्रिस्तक्षको रक्षः पौरुषेयीऽथ मेनका।।
हाहा रथस्वनश्चैय मैत्रयेते वसंति वं।
श्रीपराशर जी ने कहा, आरोह-अवरोह से एक वर्ष में सूर्य के रथ की जितनी गति, उस पूरे मार्ग की दोनों काष्ठाओं का अंतर एक सौ अस्सी मंडल होता है। सूर्य का वह रथ ऋषि, गंधर्व, अप्सरा, यक्ष, सर्प और राक्षसों में अधिष्ठित होता है। मधुमास चैत्र में धाता, क्रतुस्थला, अप्सरा, पलस्त्य, वासुकि, रथमृतयक्ष, हेति राक्षस और तुंबरु नामक गंधर्व यह सात मासाधिकारी सूर्य के रथ में निवास करते हैं। वैशाख मास में अर्यमा, पुलह, रथौजा, पंुजिकस्थला, प्रहेति, कच्छ वीर और नारद सूर्य के रथ में रहते हैं। अब ज्येष्ठ मास में निवास करने वालों के नाम कहता हूं, सुनो मित्र, अज्ञि, पौरुषेय, मेनका हाहा और रथस्वन यक्ष उस रथ में रहते हैं।
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