विष्णु पुराण

By: Sep 28th, 2019 12:05 am

स्तुवंतिनुनयः सूर्य गंधर्वेगीयते पुरः।

नृत्यन्त्यप्मरो यांति सूर्यस्यानु निशाचराः।।

वतंति पन्नगा यक्षैः क्रियतेऽभीषुसङग्रहः।

वालखिल्याम्यथैवेनं परिवार्य समासते।।

सोऽयं सप्तगणः सूर्य मंडले मंनिसत्तम।

हिमोष्णवारिवृष्टौनां हेतुः स्वसमयं गतः।।

उस समय मुनिगण स्तुति करते गंधर्वगण सूर्य का गुणगान करते, अप्सराएं नृत्य करती, राक्षसगण रथ के पीछे चलते, सर्वगुण उस रथ को बहुत योग्य सजाते, यक्षगण उसकी बागडोर ग्रहण करते और बालख्ल्पिदि उसे सब ओर से घेरे रहते हैं। हे मान्यवर! सूर्य मंडल के यही सात-सात गण अपने काल में शीत, सूर्य और सृष्टि आदि के हेतु होते हैं।

यदेत दभगवानाह गणः सप्तविधो रणैः।

मंडल हिमतापदेः कारणं तन्मया श्रुतम।।

व्यापारश्चापि कथितो गंधर्वोरगरक्षसाम।

ऋषीणां बालखिल्यानां तथेवाप्सरसो गुरोः।।

यक्षाणां च रथे भानोविष्णुशक्तिध्रतात्मनाम।

कि चादित्यस्त्र यत्कर्म तन्नावोक्त त्वया मुने।।

यदि सप्तगणो वारि हिममुष्ण च वर्षति।

तत्किमत्र रवेर्येन वृष्टिः सूर्योदितोर्यते।।

विवस्वानुदितो मध्ये यात्यस्तमिति कि जनः।।

ब्रवीत्येतत्सम कर्म यदि सप्तगण सप्तगणस्य ततु।

मैत्रेय द्धूततामेतद्यद्भवान्परिच्छति।

यथा सप्तगणेऽष्रेकः प्रधांततेनाधिको रविः।।

सर्वशक्ति परा विष्णोऋग्यजुः सामसंज्ञिता।

सैषा त्रया तपत्यहो जगताश्च हिनस्ति या।

श्री मैत्रेय जी ने कहा, हे भगवन मैंने आपके द्वारा सूर्यमंडल स्थित सात-सात गणों के शीत, ग्रीष्म आदि के कारण होने का  वर्णन सुना। हे गुरु आपने भगवान विष्णु की शक्ति से संपन्न गंधर्व, सर्प, राक्षस, ऋषि बालाखिल्पादि , अप्सरा और यक्षों के रथ में स्थित होने का वृत्तांत भी कहा, परंतु आपने सूर्य का क्या कार्य है, यह नहीं बताया। यदि सात गण ही शीत, ग्रीष्म और वृष्टि के कर्ता हैं तो सूर्य किस कार्य के लिए हैं और सूर्य की वृष्टि का क्या कारण बताया जाता है। यदि सातों गण समान कार्य वाले हैं, तो अब सूर्योदय हुआ मध्य में स्थित है तथा अब सूर्यास्त हुआ, ऐसा क्यों हो जाता है। श्री पराशरजी ने कहा, हे मैत्रेयजी तुमने जो प्रश्न किया है,उसका समाधान सुनो। सूर्य उन सातों गण से मिलकर ही  एक होकर परंतु उनमें प्रमुख होने के कारण ही उनकी अधिकता है। विष्णु की ऋक, यजु, साम की सर्वशक्तिमयी जो परमशक्ति है, वही वेदत्रयी सूर्य को ताप देती है और वही जगत के सब पापों का नाश करती है।

सैष विष्णु स्थितः स्थित्यां जगत पालनोद्यतः।

ऋग्यजुः समाभयौऽस्त सवितुर्द्विज तिष्ठित।।

मासि मासि रदियों य तत्र हि सा परा।

त्रयमी विष्णु शक्तिरवस्थानं करोति।

ऋच स्तुवंति पूर्वाह्न मध्याह्नेऽथ यर्जुषिवै।।

हे द्विज! विश्व की स्थिति तथा पालन हेतु ऋक, यजु और सामरूप विष्णु सूर्य में रहते हैं। जिस-जिस मास में जो-जो सूर्य होता है, उस-उस में उसी वेदत्रयी रूपिणी विष्णु की पराक्षक्ति का निवास रहता है। पूवाह्न में ऋक, मध्याह्न यजु और सायंकाल में वृहद रथंतर  आदि सामश्रुतियां उन सूर्य का स्तवन करती हैं। यह ऋक, यजु और साम रूप वाली वेदत्रयी भगवान विष्णु का अंग ही है। 


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