सायर को सजे बाजार, खूब बिके अखरोट

जिला भर में आज मनाया जाएगा त्योहार, अखरोट और दूब बांट एक-दूसरे को देते हैं बधाई

मंडी –छोटी काशी मंडी में सायर पर्व को लेकर धूम है। इस बार 17 सितंबर को मनाए जा रहे सायर पर्व को लेकर सोमवार को मंडी शहर के लोगों ने अखरोट सहित अन्य पूजन सामग्री की खरीददारी की। इसके चलते मंडी में टनों के हिसाब से अखरोट की बिक्री हुई। बता दें कि हिमाचल प्रदेश में सायर उत्सव विशेष तौर पर मंडी जिला में मनाया जाता है। सायर उत्सव के लिए विशेष तैयारियां की जाती हैं।  सायर त्योहार पर विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इसके अलावा सुबह-सुबह सायर को पूजने के साथ-साथ राखियां भी कलाई से उतारी जाती हंै। इस दौरान अखरोट, धान, मक्की, खट्टा , पेठू व कोठा अन्य सामग्री की पूजा की जाती है। सोमवार को ग्रामीणों ने  मंडी शहर में पहुंचकर पूजा के साजो-सामान की खरीददारी की। सायर उत्सव में अखरोट का विशेष महत्त्व रहता है। अखरोट के साथ खेलने के अलावा इसकी पूजा भी की जाती है। मंडी जिला के अलग-अलग जगहों में यह उत्सव अलग -अलग तरीके से मनाया जाता है। सायर उत्सव के लिए बाजार में अखरोट भी पहुंच गए हैं। अखरोट के दाम 200 से लेकर 700 सैकड़ा है। अच्छी क्वालिटी का अखरोट 700 रुपए सैकड़ा बिक रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि सायर का त्योहार मंडी जिला में हर वर्ष बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि बुजुर्गों की कहावत है कि जब बरसात का मौसम समाप्त हो जाता है और फसलों और मनुष्य को किसी तरह का जान माल का नुकसान नहीं होता है, तो इस त्योहार को मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि सायर के दिन लोग एक दूसरे को दूब और अखरोट देते हैं व एक दूसरे के गले मिलते हैं। इस तरह से इस त्योहार को मनाया जाता है और बच्चे मिलकर अखरोट का खेल खेलते हैं।

आज लोकल छुट्टी, डीसी ने दी बधाई

प्रशासन द्वारा 17 सितंबर को मंडी जिला में स्थानीय अवकाश घोषित किया गया है। डीसी ने हिमाचल प्रदेश सरकार सामान्य प्रशासन विभाग की अधिसूचना के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए जिले में सायर उत्सव पर 17 सितंबर (मंगलवार) को लोकल छुट्टी घोषित की है। उन्होंने सभी को सायर उत्सव की अग्रिम शुभकामनाएं दी हैं।

सायर के दिन ससुराल लौटती हैं दुल्हनें

नई-नवेली दुल्हनें भादो माह शुरू होते ही अपने-अपने पीहर को चली जाया  करती  हैं  और  सायर वाले  दिन अपने ससुराल वापस आ जाती हैं, परंतु आधुनिक युग में यह परंपरा खत्म हो रही है। वहीं इसी दिन किसान लोग फसल की पूजा करके उसे शुभ कार्यों में लगने की भगवान से प्रार्थना भी करते हैं।

त्योहार के पीछे एक यह भी तर्क

क्षेत्र के बुजुर्गों ने सायर (सैर) त्योहार मनाने के पीछे कई तर्क दिए हैं। उनका कहना है कि पहले आबादी बहुत कम थी, रिश्तेदार दूर- दूर रहते थे और बरसात अत्यधिक होने के कारण नदी-नाले उफान पर होते थे, आवाजाही के साधन न होने से एक-दूसरे से उनका संपर्क नहीं हो पाता था। बरसात खत्म  होने पर लोग अपने-अपने रिश्तेदारों की खबर लेने और सुख-शांति के संदेश का आदान-प्रदान करने के लिए उन्हें दूब के साथ अखरोट देते थे, जो परंपरा आज भी निभाई जा रही है।