हजार हेक्टेयर पर महकते फूलों में नोटों की खुशबू 

By: Sep 1st, 2019 12:08 am

मौजूदा समय में पांच सौ हैक्टेयर से अधिक क्षेत्र में  मैरीगोल्ड की खेती की जा रही है। वहीं ग्लैड  सौ हैक्टेयर में महक रहा है।  सिरमौर के बाद कांगड़ा, सोलन, बिलासपुर और चंबा में भी लोग फूलों की खेती को अपना रहे हैं…

कभी हिमाचल में घरों की सजावट तक सीमित फूल आज कमाई का बड़ा जरिया बन गए हैं। इस बार प्रदेश में फूलों की खेती का जायजा लिया, तो किसानों का हौसला बढ़ाने वाले आंकड़े सामने आए। मौजूदा समय में पांच सौ हैक्टेयर से अधिक क्षेत्र में  मैरीगोल्ड की खेती की जा रही है। वहीं ग्लैड  सौ हैक्टेयर में महक रहा है।  सिरमौर के बाद कांगड़ा, सोलन, बिलासपुर और चंबा में भी लोग फूलों की खेती को अपना रहे हैं। बरस 2000 तक प्रदेश में महज 140 हेक्टेयर में फूल उगाए जाते थे और अब यह क्षेत्र है एक हजार हैक्टयेर। किसानों ने बताया कि  दिल्ली, चंडीगढ़, लुधियाणा के बाजारों में फूलों की खूब मांग है। गेंदा अस्सी रुपए से लेकर 120 से बिक जाता है।

जयदीप रिहान, पालमपुर

150 करोड़ की योजना

दूसरी ओर प्रदेश सरकार  इस कारोबार की वैल्यू समझते नावार्ड के सहयोग 150 करोड़ रुपए की परियोजना शुरू करने वाली है। यह परियोजना पुष्प उत्पादकों के लिए विपणन के नए द्वार खोलेगी। बागबानी मंत्री महेंद्र सिंह ने बताया कि योजना के तहत दिल्ली तक विपणन की व्यवस्था होगी। इसके लिए एयर कंडीशन गाडि़यां भी फार्मर्ज को दी जाएंगी। अगर आप किसान हैं और फूलों की खेती करना चाहते हैं, तो फिर देर न करें। प्रदेश में मुख्यतः ग्लैड, कारनेशन, गेंदा, लिलियम, गुलदाउदी, जरबेरा, गुलाब प्रमुख हैं।

मंडी में सूअरों का खौफ , नेरवा में बारिश की मार

हिमाचल में किसानों की दुदर्शा का दौर जारी है। कहीं जंगली पशु बेलगाम हैं, तो कहीं बरसात कहर ढहा रही है। लेकिन सरकार है कि वह हिमाचल के बेहद उपजाऊ क्षेत्रों में भी खेती को सुरक्षित नहीं कर पाई है।  इस बार अपनी माटी बुलेटिन की टीम ने बल्ह घाटी व अन्य क्षेत्रों का दौरा किया। मिनी पंजाब के नाम से मशहूर बल्ह वैली में पाया कि यहां खरीफ की फसल के हाल बेहद खराब हैं।  बल्ह उपमंडल में भड़याल, बैहना, चंदयाल, गागल, चलाह आदि दर्जन भर पंचायतों में  धान और मक्की की फसल को लावारिस पशुओं और सूअरों ने बुरी तरह बर्बाद कर दिया है। मायूस किसानों  ने बताया कि पहले ही कम बारिश से धान की रोपाई समय से नही हो पाई थी, जिससे आधी खराब हो गई थी, लेकिन अब रही सही कसर बेलगाम पशुओं और सूअरों व बंदरों ने पूरी कर दी है। टिक्कर गांव में तो मक्की का नामोनिशान मिट गया है। कच्ची मक्की पर बंदर बुरी तरह टूट पड़े हैं। अगर कोई रोकने की कोशिश करे, तो वे उस पर झपट पड़ते हैं।  अगर यही हाल रहा तो वे दिन दूर नहीं,जब लोग खेती छोड़ देंगे। दूसरी हैरान कर देने वाली खबर शिमला के नेरवा से है। बड़े होटलों में पसंद किया जाने वाला नेरवा का टमाटर खराब सड़कों के चलते  इस बार मंडियों तक नहीं पहुंच पाया। नतीजा कई क्विंटल टमाटर किसानों ने नाले में बहा दिया। दूसरी ओर कांगड़ा जिला के नूरपुर में जब्बर खड्ड पर बनी अस्थायी झील टूट जाने से कई कनाल से फसल बह गई। इसी तरह ऊना, हमीरपुर,बिलासपुर और चंबा में भी बारिश से फसलों को नुकसान हुआ है।

गागल से सुरेश शर्मा, नेरवा से सुरेश सूद

आस्‍ट्रेलिया से फिर लाई जाएंगी तगड़ी भेंड़ें

भेड़ पालन में दुनिया के टाप फाइव देशों में शुमार भारत में एक बड़ा वर्ग इस व्यवसाय से जुड़ा हुआ है। जहां तक हिमाचल की बात है, तो प्रदेश के 37 फ ीसदी लोग भेड़ को खेती का पूरक मानकर पाल रहे हैं।  यह खबर सभी भेड़पालकों के लिए है। हिमाचल सरकार शीघ्र ही आस्ट्रेलिया से 240 भेड़ें कुल्लू के नंगवाई स्थित सेंटर लाने वाली है। बेहतर पालन पोषण के बाद ये भेड़ें किसानों को बांटीं जाएंगी। खास बात यह कि इन भेड़ों से जहां ज्यादा ऊन मिलती है, वहीं ये कई तरह खरपतवार को खा जाती हैं। इसके अलावा इनकी खाद भी खेती में रामबाण का काम करती है। इस योजना को लेकर केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान गड़सा लगातार किसानों को जागरूक कर रहा है। हाल ही में यहां कैंप लगाकर सैकड़ों किसानों को जागरूक किया गया। गौर रहे कि भेड़पालन में पूर्व वूल फेडरेशन अध्यक्ष त्रिलोक कपूर कई तरह की योजनाएं शुरू करवाई थी। यही कारण है कि आज समूचे हिमाचल में 12 लाख के करीब भेड़ें हैं, और पांच ब्रीडिंग फार्म हैं। अगर किसान इस योजना से जुड़ेंगे, तो यह प्रदेश में खेती को शीर्ष पर ले जाने में मददगार साबित होगी।

-सुशांत शर्मा के साथ ब्यूरो चीफ शालिनी राय भारद्वाज

समय से पहले पतझड़ यहां बड़ी इलायची बह गई

चौरी के गांव गमधौल में बड़ी इलायची की नर्सरी का कुछ हिस्सा भारी बारिश से खड्ड की बलि चढ़ गया और 50 पौधे खड्ड में बह गए, जिससे स्थानीय किसान सोहन सिंह का एक लाख रुपए का नुकसान हुआ है। सोहन सिंह ने बताया कि लोक निर्माण विभाग से सेवानिवृत्त होने के बाद खेतीबाड़ी को अपनाया और तीन बीघा जमीन में सब्जियां बगैरा उगाना शुरू किया। एक बीघा में खड्ड के किनारे बड़ी ईलायची की नर्सरी तैयार की है। उन्होंने जिला प्रशासन से मदद की गुहार लगाई है।

पवन प्रेमी, सरकाघाट

मंडी में मक्‍की उद्योग क्‍यों नहीं

हिमाचल किसान यूनियन की जिला परिवेदना समिति की बैठक उपनिदेशक कार्यालय मंडी के सभागार में आयोजित की गई। बैठक की अध्यक्षता कृषि विभाग मंडी उपनिदेशक डा. जीत राम ने की। बैठक में 34 मदों पर विस्तार पूर्व से चर्चा की गई। इसमें किसान आयोग का गठन करना, डा. एमएस स्वामीनाथन की सिफारिशों को लागू करना, जिला मंडी में मक्की, टमाटर पर आधारित उद्योग लगाना, कृषि उपकरण ट्रैक्टर पावर बिडर, पावर टिल्लर, सोलर डॉसर, बोरिंग मशीन, हस्तचालित धान, गेहूं घास काटने की मशीन, जिलास्तर पर प्रिक्योरमैंट का गठन करना आदि मसलों पर चर्चा हुई। इस दौरान मंडी में मक्की आधारित काराखाना लगाने की मांग की गई।

-अजय रांगड़ा, मंडी

रायल एप्‍पल, रायल बागबान

हिमाचल में सेब पूरे शबाब पर है। राज्य में भारी बारिश के बाद मौसम खुलते ही फल मडियों में धड़ाधड़ सेब बाक्स पहुंचनें शुरू हो गए हैं। फल मडियों में अराइवल बढ़ने से मडियों में चहल पहल भी बढ़ गई है। इन दिनों मार्केट में रायल सेब की धमाल है। बेहतर क्वालिटी के रायल सेब का बाक्स 22 सौ रुपए तक बिक रहा है। जबकि नॉर्मल सेब हजार से लेकर डेढ़ हजार तक बिक रहा है। अपनी माटी के लिए शिमला से हमारे संवाददाता टेकचंद वर्मा ने लेटेस्ट आंकड़े जुटाए हैं। इसके तहत राज्य के सेब बहुत क्षेत्रों से अब तक 86 लाख 58

हजार सेब बाक्सॅ फल मडि़यों तक पहुंच

गया है। मौजूदा सेब सीजन में बीते सीजन के मुकाबले दोगुनी फसल मार्किट में पहुंच गई है-बीते सेब सीजन के दौरान अब तक यह आंकडा केवल मात्र 47 लाख 54 हजार  सेब बाक्स ही मार्किट में पहुंच पाए थे। बागबानी विभाग से प्राप्त जानकारी के तहत अभी तक मार्किट में 86 लाख 58 हजार 800 सेब बाक्स पहुंच चुके हैं।

-टेकचंद वर्मा, शिमला

कुछ ऐसा है टारगेट

बागवानी विभाग के मुताबिक राज्य में इस सेब सीजन के दौेरान चार करोड से अधिक सेब बाक्स का उत्पादन होने का अनुमान लगाया जा रहा है। राज्य में अगर अनुमान के तहत सेब बाक्स का उत्पादन होता है तो यह पिछलें कई वर्षो के दौरान रिकॉर्ड तोड उत्पादन होगा।

सात दिन के भीतर पहुंची डेढ़ लाख सेब पेटी

बारिशों से पार पाते हुए आदर्श फल एवं सब्जी मंडी सोलन में  सेब ने धमाल मचा रखी है। यही नहीं पिछले सात दिन में टर्मिनल मंडी परवाणू में भी फिर से कारोबार ने रफ्तार पकड़ ली है। बिजनेस का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दोनों मंडियों  एक हफ्ते में डेढ़ लाख पेटियां पहुंच चुकी हैं। जबकि समूचे प्रदेश में यह आंकड़ा 10 लाख के करीब रहा। जहां तक मंडी समिति की बात है, तो  यह पूरा हफ्ता राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) पर फोकस रहा। किसान-बागबानों सहित आढ़तियों को भी इस विषय पर जागरूक किया गया। सोलन मंडी समिति प्रदेश की ऐसी पहली मंडी समिति है, जिसने खेतों से ही ई-नाम के तहत व्यापार की पहल की है। इससे आनलाइन बोली से किसानों ने अपना माल यूपी में बेचकर महज 24 घंटे में पेमेंट अपने खाते में पाई है। उम्मीद है कि जल्द ही (ई-नाम) लाखों किसानों का सहारा बन जाएगा।    -सोलन से सुरेंद्र ममटा

माटी के लाल

सूखते पौधे से प्रेरणा  पाकर ला दी हरियाली

समाज सेवक संजय गुलेरिया ने ऐतिहासिक परगोड मंदिर तथा स्कूल में 100 से अधिक पौधे अपनी स्वर्गीय माता के नाम पर लगाकर एक मिसाल पेश कर दी है। यदि ऐसा हर व्यक्ति करे तो हर क्षेत्र में विकास के साथ-साथ प्यार भी बढ़ेगा। वैसे तो संजय कुमार कई मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर चुके हैं व कई बार विदेश भी जा चुके हैं। पिछले दो साल पहले संजय कुमार एक दिन घूमते-घूमते गांव में स्थित बाबा सिद्ध गोरिया मंदिर परगोड के प्रांगण में पहुंचे, तो वहां पर एक पौधा लगा हुआ देखा जोकि काफी कमजोर व सूखने के कगार पर था। जब कुछ दिन उसकी सही देख-रेख की गई तो उस पौधे ने अपना रंग बदलना शुरू कर दिया। इसलिए संजय कुमार ने और पौधे लगाने के बारे में सोचा और 2018 में 40 पौधे, 2019 में 30 पौधे बाबा के दरबार को जाने वाले रास्ते पर रोपे व कुछ पौधे परगोड स्कूल के प्रांगण में भी रोपे। इन पौधों की पिछले दो साल से संजय कुमार खुद देखभाल कर रहे हैं।

-रामस्वरूप शर्मा, नगरोटा सूरियां

पावर टिल्‍लर को बनाया कमाई का जरिया

राजा का तालाब के समीप पंचायत गारन के रछपाल सिंह ने टिल्लर पावर खरीदकर खुद अपनी अजीविका का साधन ही नहीं बनाया बल्कि अन्य दो युवाओं को भी रोजगार से जोड़कर एक मिसाल कायम करता जा रहा है। टिल्लर पावर मशीन को पूरा दिन चला पाना हर किसी के बस की बात नहीं है। इस मशीन को चलाने के लिए बाजुओं का मजबूत होना बहुत जरूरी है। टिल्लर पावर मशीन खेतों को इस कदर नरम बना देती की किसान बड़ी ही आसानी से धान की फसल लगा सकता है। मशीन के ब्लेड खेतों के किनारों को काटकर बिलकुल साफ  कर देते हैं। रछपाल ने टिल्लर पावर मशीन करीब डेढ़ लाख रुपए में खरीदी मगर उसे सरकार की तरफ  से कोई सबसिडी नहीं मिली है। बरसात के दिनों में वह इस मशीन पर दस घंटे लगातार मेहनत करता रहा है। टिल्लर पावर मशीन एक घंटे खेत में चलाने का आठ सौ रुपया तक लिया जाता है। गर्मियों में वह गेंहू कटाई का काम भी इसी मशीन से करके अपनी आजीविका कमाता है।                   

रामस्वरूप शर्मा, नगरोटा सूरियां.

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