हिमाचली कुर्बानियों का कारवां तथा कश्मीर

By: Sep 24th, 2019 12:05 am

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक, बिलासपुर से हैं

महान जरनैल जोरावर सिंह कहलूरिया ने अपनी कुव्वत भरी कियादत के दम पर जम्मू-कश्मीर राज्य की सरहदों की बिसात कारगिल, द्रास तथा लद्दाख से लेकर मानसरोवर झील के उस पार तिब्बत के मानतलाई क्षेत्र तक बिछा दी थी…

देश की रक्षा में वीरभूमि हिमाचल के सैन्य पराक्रम का योगदान हमेशा शूरवीरता की गौरवगाथा से परिपूर्ण तथा सदैव अग्रणी रहा है। वीरभूमि की इस धरा की कोख से कई रणवाकुरे पैदा हुए जिन्होंने देश व दुनिया के कई महाज पर अपनी सलाहियत तथा वीरता का लोहा मनवाया। राज्य के उन्हीं सपूतों में राजपूत जरनैल जोरावर सिंह कहलूरिया (1786-1841) का नाम शीर्ष पर काबिज है। धर्मशाला के युद्ध स्मारक पर उस महान जरनैल की सुशोभित प्रतिमा तथा उस पर उनके शौर्य पराक्रम का अंकित शिलालेख बहुत कुछ बयान करता है। यदि जम्मू-कश्मीर के इतिहास में अतीत के पन्नों को खंगाल कर देखा जाए, तो ज्ञात होगा कि हिमाचल के उस क्रांतिवीर योद्धा ने अपने शौर्य की कुव्वज भरी कियादत के दम पर जम्मू-कश्मीर राज्य की सरहदों की बिसात कारगिल, द्रास तथा लद्दाख से लेकर मानसरोवर झील के उस पार तिब्बत के मानतलाई क्षेत्र तक बिछा दी थी। वहीं दूसरी तरफ गिलगिट, बाल्टिस्तान तथा स्कर्दू जैसे क्षेत्रों को जोरावर ने अपने सशस्त्र सैन्य अभियानों के तहत सन् 1840 में अफगानों को हराकर जम्मू-कश्मीर साम्राज्य में मिलाया था।

लेकिन आजादी के बाद से उस कश्मीर का एक-तिहाई हिस्सा पाक अधिकृत के अवैध कब्जे में जा चुका है, क्योंकि भारतीय सैन्य पराक्रम को हमेशा सियासी पराक्रम की दरकार रही है। अब दुनिया में आतंक का गढ़ बन चुका पाक उस क्षेत्र को खैरात समझकर गलतफहमी में जी रहा है और दोनों देशों के हुक्मरान इस क्षेत्र के लिए जान तक देने का दावा कर रहे हैं। बहरहाल ऐसी नौबत आने पर ऐसे हालात में सेना को ही पराक्रम दिखाना होता है। लेकिन आज यदि जम्मू-कश्मीर, लेह लद्दाख सहित पूर्ण रूप से भारतीय परचम के तले देश के मानचित्र में शामिल हैं और भारत की सरहदें  चीन तथा अफगानिस्तान जैसे देशों की सीमाओं को स्पर्श कर रही हैं तो उसका पूरा श्रेय हिमाचली सपूत जोरावर सिंह कहलूरिया को ही जाता है। जो जम्मू-कश्मीर रियासत के तत्कालीन राजा गुलाब सिंह की सेना के सेनानायक थे, जिन्होंने लेख-लद्दाख की बर्फीली व दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों का सामना कर 16 हजार फीट की ऊंचाई पर जोखिम भरे सफलतम सैन्य अभियानों को अंजाम देकर हजारों वर्गमील इलाके को जम्मू की डोगरा सल्तनत के नक्शे में मिलाकर असीम वीरता की मिसाल पेश की थी। दुर्भाग्यवश तिब्बत क्षेत्र पर आक्रामक सैन्य मिशन के दौरान उसी रणक्षेत्र में 12 दिसंबर, 1841 को वह शूरवीर योद्धा वीरगति को प्राप्त हुआ था, जो कि उस क्षेत्र को जीतने का उनका छठा सैन्य अभियान था नहीं तो शायद आज तिब्बत भी भारत के मानचित्र में होता। उनके दौर में उनके समान कोई और पराक्रमी योद्धा नहीं था इसलिए उन्हें ‘नेपोलियन ऑफ इंडिया’ कहा जाता था। एक ऐसा योद्धा शूरवीरता जिसके मिजाज में थी जिसे दुर्गम क्षेत्रों पर युद्ध कला की महारात हासिल थी। लेकिन दुर्भाग्यवश आजादी के बाद देश की शिक्षा प्रणाली में विदेशी आक्रांताओं को महान पढ़ाया गया और अपने राज्य के रणबांकुरों की वीरगाथाएं इतिहास के पन्नों तथा सरकारी दस्तावेजों में भी गायब होकर रह गईं और न ही कभी सियासी तकरीरों में उस योद्धा के साहसी जुनूनी जज्बे का जिक्र होता है। जिसने कश्मीर के क्षेत्रों को फतह करके वहीं अपना बलिदान दिया था। दुश्मन से कश्मीर को महफूज रखने तथा उसे भारत का अभिन्न अंग बनाने के लिए हिमाचल की सैन्य कुर्बानियों का कारवां जोरावर से शुरू हुआ था जो आज तक बदस्तूर जारी है।

1947-48 में कश्मीर पर पहले पाक कबायली हमले के जवाब में कर्नल शेर जंग थापा (महावीर चक्र) ‘हीरो ऑफ स्कर्दू’ ने अपने उत्कृष्ट सैन्य नेतृत्व का परिचय दिया था उसी युद्ध में मेजर सोमनाथ शर्मा (परमवीर चक्र के साथ) 43 अन्य हिमाचली सैनिक भी शहीद हुए थे। वहीं 1965 के युद्ध में सुरबराम ठाकुर ‘वीर चक्र’ तथा 1971 के युद्ध में मेजर गुरदेव जसवाल ‘वीर चक्र’ ‘हीरो ऑफ चक अमू्र’ जैसे सैनिकों ने अपना बलिदान कश्मीर के लिए दिया था। 1999 के कारगिल युद्ध में पाकिस्तान का लक्ष्य कश्मीर ही था, जिसके जवाब में 52 हिमाचली जांबाज वीरगति को प्राप्त हुए थे। इसके अलावा घाटी में तीन दशकों से पाक प्रायोजित छदम युद्ध में आतंकियों से लोहा लेते राज्य के कई सैनिक शहीद हो चुके हैं। प्रदेश में बह रही नदियों पर निर्मित बांधों के पानी तथा बिजली ने कई पड़ोसी राज्यों की दशा व दिशा को सुधारा है। अब उन्हीं राज्यों के कुछ सियासतदान जो हिमाचल को धारा 118 पर कोसने लगे हैं,उन्हें इस शांत राज्य की सैन्य कुर्बानियों के गौरवमयी इतिहास का अध्ययन कर लेना चाहिए।

हिमाचल पत्थरबाज युवाओं का राज्य नहीं है देश की सरहदों को अपने रक्त से सींचने वाले यहां के सपूतों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। धारा 118 राज्य का सम्मान है। इसकी तुलना नासुर अनुच्छेद 370 तथा 35ए से कदाचित नहीं हो सकती। बावजूद इसके हिमाचल में दशकों से कई अन्य राज्यों के लाखों प्रवासी यहां अपनी आजीविका चला रहे हैं। ऐसी लफ्फाजी करने वाले सियासी रहनुमाओं को चाहिए कि चंडीगढ़ में हिमाचल के 7.19 प्रतिशत भू-भाग की हिस्सेदारी तथा उसकी लोकेशन पर अपना रुख स्पष्ट करें। बहरहाल देश के शासकों से आग्रह है कि जम्मू-कश्मीर की तामीर के लिए बलिदान देने वाले महान योद्धा जोरावर सिंह कहलूरिया के मजीद किरदार तथा शौर्य पराक्रम से भरे इतिहास को पूरी शिदत से राष्ट्रीय स्तर के स्कूली शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल करवाएं ताकि उस गुमनाम योद्धा के अस्मरणीय सैन्य योगदान को राष्ट्रीय पहचान मिले, जिसके वे हकदार थे तथा उनके द्वारा जीता गया जो क्षेत्र नियंत्रण रेखा के पार पाकिस्तान के कब्जे में है उस पर रोडमैप तैयार करके उस रणनीति का सीधे तौर पर ऐलान करें। 


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