अंधा आदमी और दीपक

By: Oct 5th, 2019 12:20 am

सद्गुरु जग्गी वासुदेव

एक अंधा आदमी अपने मित्र के घर कुछ दिनों के लिए रुका और फिर अपने घर वापस जाने के लिए रात के समय निकला। उसके मित्र ने उसे एक लालटेन जला कर हाथ में दे दी। अंधा व्यक्ति विरोध करते हुए बोला, मुझे लालटेन की क्या जरूरत है? मेरे लिए सब एक जैसा ही है। जो इंसान अंधा है, उसे दीपक लेकर चलने से क्या फायदा होगा?

मित्र बोला, मेरे प्यारे दोस्त ये तुम्हारे लिए नहीं है, ये उन लोगों के लिए है जो तुम्हारे सामने आएंगे। तुम ये प्रकाश ले कर चलोगे तो कोई तुम्हें टक्कर नहीं मारेगा। तब अंधा बोला, अगर ये बात है तो मैं इसे ले जाऊंगा। वह अंधा जली हुई लालटेन ले कर अंधेरे में चलने लगा। इसके बावजूद भी, रास्ते पर चलते हुए एक आदमी आ कर सीधे उससे टकरा गया। अंधा आदमी लड़खड़ाया और जमीन पर गिर पड़ा और गुस्से से बोला, तुम मुझसे क्यों टकराए मेरे पास दीपक था, क्या तुम्हें दिख नहीं रहा था कि तुम कहां जा रहे थे। वो आदमी जो उससे टकराया था, इधर-उधर देखते हुए बोला, कौन सा दीपक, मुझे तो कहीं नहीं दिख रहा। फिर वो दीपक उसे मिला और उसने कहा ,हां यहां एक दीपक है, मगर मेरे दोस्त, इसकी लौ तो कब की बुझ चुकी है। उस आदमी के पास दीपक था, जिससे प्रकाश हो रहा था, लेकिन उसे ऊपर उठा कर चलना जब कि उसकी लौ बुझ चुकी हो, एक अर्थहीन काम है। ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जो हमनें अपने जीवन में किसी खास उद्देश्य से शुरू की थीं पर अब उन उद्देश्यों की मूल गुणवत्ता समाप्त हो चुकी है और अब हम इन्हें बस एक रस्म-रिवाज या परंपराओं की तरह किए जा रहे हैं। हम उन चीजों को बस इसलिए करते रहते हैं कि हमारे बाप दादा ऐसा करते थे और बस वह एक रस्म बन जाती है। क्योंकि हमें पता नहीं होता कि कुछ खास क्रियाएं कई पीढि़यों से हम क्यों करते आ रहे हैं और हम हमेशा उलझन में रहते हैं कि इनकी हमारे जीवन में जरूरत है भी कि नहीं। इसी तरह हम अपने जीवन में कई बार कुछ खास लाभ लेने के लिए कोई विशेष क्रिया शुरू करते हैं पर बाद में भूल जाते हैं कि ये क्रिया मूल रूप से क्यों शुरू की गईं। क्योंकि हमें पता नहीं होता कि कुछ खास क्रियाएं कई पीढि़यों से हम क्यों करते आ रहे हैं और हम हमेशा उलझन में रहते हैं कि इनकी हमारे जीवन में जरूरत है भी कि नहीं। एक दीपक ले कर चलने वाले अंधे आदमी की तरह, कुछ ऐसे साधन जो हमें हमारे जीवन में मार्ग दिखाने के लिए किसी अच्छे उद्देश्य के लिए दिए गए थे, वे अब अंधश्रद्धा बन गए हैं। अब समय आ गया है कि हम उनके सही उद्देश्यों को समझें और उन्हें अपना मार्ग दिखाने वाला दीपक बना लें। वरना, कम से कम हमें अपने लिए कुछ ऐसे नए साधन बना लेने चाहिए, जो हमारा मार्ग प्रशस्त करें।


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