अयोध्या विवाद का पटाक्षेप

By: Oct 18th, 2019 12:04 am

अंततः अयोध्या विवाद पर सुनवाई खत्म हुई और संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रखने की घोषणा कर दी। लगातार और रोजाना सुनवाई 40 दिन तक जारी रही। यह अयोध्या पर अभी तक के सबसे लंबे, पेचीदा और नाजुक विवाद की सुनवाई थी। फैसला 17 नवंबर से पहले कभी भी सुनाया जा सकता है, क्योंकि वह प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की सेवानिवृत्ति की तारीख है। अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि साबित होगी, लिहाजा भव्य राम मंदिर निर्माण का रास्ता खुल सकता है। विवादित भूमि मस्जिद बनाने के लिए मुस्लिम पक्षकारों को सौंपी जा सकती है! विवादास्पद भूमि का तीन प्रमुख पक्षकारों में बंटवारा किया जा सकता है, लिहाजा संविधान पीठ इलाहाबद उच्च न्यायालय के 30 सितंबर, 2010 के फैसले को कुछ-कुछ मान सकती है! विवादास्पद भूखंड पर किसी भी पक्षकार का हक कानूनन साबित न हो पाया, तो संविधान पीठ भूमि को सरकार को सौंपने का फैसला सुना सकती है! सरकार वह भूमि किसे सौंपती है, यह एक अलग सवाल है, लेकिन राम मंदिर और बाबरी मस्जिद को लेकर जो विवाद चल रहा था, संविधान पीठ के फैसले के बाद उसका बुनियादी पटाक्षेप हो सकता है! इंसाफ पाने की आखिरी दहलीज थी संविधान पीठ! हालांकि संसद के अधिकार सर्वोच्च हैं, लेकिन वह कोई सामान्य रास्ता नहीं है।  अपरिहार्य और आपातकालीन स्थितियों में ही संसद संविधान पीठ के फैसले में हस्तक्षेप करना चाहेगी। हालांकि अदालत के भीतर ही संविधान पीठ के फैसले के बाद पुनर्विचार याचिका और क्यूरेटिव रिट पेटिशन के प्रावधान भी हैं, लेकिन ऐसे संवेदनशील फैसलों में संशोधन की गुंजाइश बेहद कम देखी गई है। बहरहाल संविधान पीठ का निर्णय उसका अपना विशेषाधिकार है, लिहाजा सुनवाई खत्म होने के अगले दिन ही पांचों न्यायाधीशों ने संभावित फैसले पर चर्चा भी शुरू कर दी। सभी दलीलें और साक्ष्य पीठ के सामने हैं। अब किसी वकील ने कुंठा और बौखलाहट में कोई नक्शा फाड़ दिया या सुन्नी वक्फ  बोर्ड अब मंदिर के लिए जगह देने पर सहमत है और बदले में मस्जिद के लिए अच्छी-सी जगह चाहता है, यह पेशकश भी अब बेमानी है। मध्यस्थता कमेटी की रपट भी पीठ के सामने है, लेकिन अब पीठ ही सुनवाई समाप्त कर चुकी है। यानी अब फैसले पर कोई विराम या अर्द्धविराम की स्थिति नहीं है। अयोध्या विवाद पर दंगे-फसाद हुए हैं, गोलियां चली हैं, बम फूटे हैं। विभिन्न वारदात में करीब 2000 मासूम मारे जा चुके हैं। हालांकि आज हालात उतने उग्र नहीं हैं, उन्माद के आसार भी नहीं हैं, फिर भी अयोध्या में तनाव सूंघा जा सकता है। अयोध्या सुरक्षा बलों के कारण एक किले में तबदील हो गया है। धारा 144 लगा दी गई है। साधु-संतों और दूसरे पक्षकारों की सुरक्षा-व्यवस्था पुख्ता की जा रही है। माहौल में ‘जय श्रीराम’ से जुड़े नारे गूंज रहे हैं। संतों को विश्वास है कि फैसला प्रभु राम के पक्ष में आएगा, लिहाजा इस बार दीपावली  पर अयोध्या में चार लाख दीयों के साथ उत्सव मनाने की तैयारी है। कोई ऐसा मुस्लिम पक्षकार नहीं है, जो मस्जिद बनाने के दावे कर रहा हो! यानी अयोध्या में आपसी भाईचारे, सौहार्द्र, सहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता की अग्नि-परीक्षा होनी है। आशंकाएं हैं कि फैसले के बाद हालात बिगड़  भी सकते हैं। अब जो भी हो, अयोध्या विवाद का पटाक्षेप होना ही है। अब देश की संस्कृति और सभ्यता पर हमला करने वालों, लुटेरों, आक्रांताओं के इतिहास पीछे छूटने वाले हैं। एक तबका ऐसा भी है, जो अब भी राम मंदिर बनाने की तारीखें घोषित कर रहा है। व्याख्या की जा रही है कि हरिद्वार में आरएसएस के प्रचारकों की जो बैठक 31 अक्तूबर से शुरू होकर चार नवंबर तक चलनी है, उसके आगामी रोड मैप का एजेंडा भी राम मंदिर है। हमारा मानना है कि अब तमाम कयासबाजी बंद होनी चाहिए। आस्था भीतर तक रहनी चाहिए, उसकी सार्वजनिक नुमाइश खतरनाक हो सकती है, अफवाहों पर विराम लग जाना चाहिए और धैर्य से संविधान पीठ के फैसले की प्रतीक्षा करनी चाहिए। फैसला जो भी हो, वह सभी पक्षों को स्वीकार्य होना चाहिए, क्योंकि लोकतंत्र में यही न्यायपालिका पर भरोसे की खूबसूरती है।

 


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