असली क्या, नकली क्या

By: Oct 31st, 2019 12:05 am

सुरेश सेठ

साहित्यकार

किसी जमाने में इस कृषि प्रधान देश में बाड़ खेतों की सुरक्षा के लिए लगाई जाती थी, आजकल वह बाड़ ही क्या जो खेत को न खाए। देखिए अभागी बच्चियों के संरक्षण के लिए हजारों बाल संरक्षण गृह कल्याण अधिकारियों और स्थानीय अधिकारियों की चौकीदारी में खोल दिए गए। अब हर रोज समाचार आने लगे कि इनमें से कुछ बाल- बालिका संरक्षण गृहों में आश्रितों का यौन शोषण हो रहा है। देह व्यापार हो रहा है, महिला तस्करी हो रही है, पकड़े जाने पर समाजसेवक चिल्लाते हैं कि ‘अजी हम तो इन अभागियों को बेहतर जीवन दे रहे थे। संपन्न लोग इन्हें गोद ले रहे थे। हम तो इनके घर-द्वार का बंदोबस्त कर रहे थे, देश में विदेश में।’ जनाब, देश पर निर्धन, निराश्रित, भाग्यहीन लोगों का बोझ इतना अधिक हो गया है कि अपना देश विश्व में भुखमरे देशों के सूचकांक में सबसे ऊपर जाने लगा। हम तो इसे नीचे लाकर इसे संपन्न देशों के सूचकांक की ओर ले जाने का प्रयास कर रहे थे। अभी वह प्रयास सफल भी नहीं हुआ, और आपने बीच में ही छापेमारी शुरू कर दी। बाल- बालिका संरक्षण व कल्याण के लिए जो हजारों संस्थाएं बनी थीं, इन सबकी जांच शुरू करवा दी कि इनमें से कितनी वास्तव में इन अभागी बच्चियों को बेहतर जिंदगी देने के काम में लगी हैं। आपने कहा, ‘देह शोषण और लड़कियों के अकल्याण तरीके अपनाकर समाज के इन मुखौटाधारी व्यक्तियों ने बाड़ बनकर अपने ही खेतों को खाया, लेकिन आप स्वयं ही बताइए भला सीधी अंगुली से भी कभी घी निकलता है। हम तो अंगुली टेढ़ी कर घी निकालने का प्रयास कर रहे थे, आप तो हमें ही अपराधी कह हमारा भद्रजन का मुखौटा नोचने लगे। जनाब, न नोचिए भद्रजनों के इन मुखौटों को। यहां तो हर मुखौटे के नीचे बुर्दा फरोशों की कुटिलता बज-बजाती रही है। हर बाड़ अपना-अपना खेत खा रही है और अपना ही नहीं, अपनी आने वाली सात पीढि़यों का भविष्य भी संवार रही है। हम नहीं समझ पाते कि ऐसे लोगों को वंशवादी कहकर गाली क्यों दी जाती है? आखिर नेता का बेटा नेता और मंत्री का बेटा मंत्री नहीं बनेगा, तो क्या हमारे और आपके जैसे फटीचर लोग बनेंगे। फिर आपने सुना नहीं क्या मछली का बेटा पानी में पैदा होते ही तैरने लगता है। यह उसका जन्मजात गुण है। तो फिर नेता का बेटा अगर नेता बनते ही लच्छेदार वादे और ओजस्वी दावों वाले भाषण करता है। भाषणों से भ्रमित हो जनता जनार्दन उन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी वोट करती है तो इसमें असाधारण क्या? यही तो उसकी नियति है जिसे वे पिछले इकहत्तर वर्ष से डोल रही है और इसे आजादी का नाम देती है। दूसरी ओर मंत्री का बेटा मंत्री बना तो घपलों-घोटालों की तासीर भी तो अपनी घुट्टी में लेकर बना। नाम सामाजिक जीवन में स्वच्छता अभियान चलाने का था, देखो तो सही इनके घर जो कल तक झोंपड़ा थे, प्रासाद बनकर कैसे जगमगा उठे। स्टिंग अभियान या पकड़-धकड़ की बातें न करो। भला आज तक जांच पड़ताल के ठंडे बस्ते का दायरा या दोषियों को दंड देने का आंदोलन तारीख दर तारीख के चक्रव्यूह को तोड़ पाया है, जो आज तोड़ देगा?


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