आम लोगों की आवाज सोशल मीडिया

By: Oct 15th, 2019 12:05 am

जगदीश बाली

स्वत्रंत लेखक

अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में आरंभ में समाचार पत्र व रेडियो ने अहम भूमिका निभाई। फिर टीवी ने दस्तक दी। अब आ गया सोशल मीडिया जो सब पर छा गया है। इनमें ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सऐप मुख्य हैं। सोशल मीडिया ने आम लोगों को अपनी बात को अपने अंदाज में कहने का माध्यम प्रदान किया है। अब लोग टीवी न्यूज चैनल्ज कम देखते हैं और सोशल मीडिया पर ज्यादा समय व्यतीत करते हैं। देश-दुनिया के बड़े से बड़े नेता, अभिनेता, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, संतरी, चपरासी, व्यापारी, लेखक, कवि, संपादक, बूढ़ा, बच्चा, युवा सब सोशल मीडिया पर मौजूद हैं…

एक जमाना था जब दुनिया से वाबस्ता रहने के लिए लोग सवेरे बिस्तर से उठने के बाद अखबार वाले का इंतजार करते थे और चाय की चुस्कियों के साथ खबरों को पढ़ना उनकी दिनचर्या का पहला कार्य होता था। परंतु वक्त बदला और वक्त के साथ खबर देने, खबर लेने और खबरदार रहने के माध्यम बदलते चले गए। आज जब सवेरे लोग उठते हैं, वे समय घड़ी के बजाय अपने एंड्रॉएड फोन पर देखते हैं। पहले की तरह चाय की प्याली का इंतजार नहीं रहता, बल्कि अपने प्यारे से मोबाइल पर डाटा ऑन करते हैं और फिर फेसबुक चालू। अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में आरंभ में समाचार पत्र व रेडियो ने अहम भूमिका निभाई। फिर टीवी ने दस्तक दी और न्यूज चैनल्ज का पदार्पण हुआ जिनकी संख्या तेजी से बढ़ने लगी। अब आ गया सोशल मीडिया जो सब पर छा गया है। इनमें ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सऐप मुख्य हैं। सोशल मीडिया ने आम लोगों को अपनी बात को अपने अंदाज में कहने का माध्यम प्रदान किया है। अब लोग टीवी न्यूज चैनल्ज कम देखते हैं और सोशल मीडिया पर ज्यादा समय व्यतीत करते हैं। देश-दुनिया के बड़े से बड़े नेता, अभिनेता, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, संतरी, चपरासी, व्यापारी, लेखक, कवि, संपादक, बूढ़ा, बच्चा, युवा सब सोशल मीडिया पर मौजूद हैं।

किसी अमुक मुद्दे पर जनता क्या सोचती है, यह जानने का सीधा माध्यम है सोशल मीडिया। कुछ गिने-चुने न्यूज एंकर व समाचार पत्रों के संपादक और कुछ स्तंभकारों के अलावा भी लोग मन की बात रखना चाहते हैं। अतः वे सोशल मीडिया को पसंद कर रहे हैं। उधर हर शाम न्यूज चैनल पर बहस का रंग मंच सजता है। मंच पर आसीन होते हैं दो-चार नेता प्रवक्ता, एक-आध एक्सपर्ट जो कई चैनल्ज पर अकसर दिखाई देते हैं। कुछ दो-चार अन्य जाने-पहचाने चेहरे भी होते हैं। इधर, किसी अमुक मुद्दे पर रवीश कुमार अपनी मंत्रमुग्ध कर देने वाली भाषा शैली में रिपोर्ट पेश करते हैं, उधर, उसी मुद्दे पर सुधीर चौधरी विपरीत तकरीर पेश कर रहे होते हैं। भारत रिपब्लिक टीवी पर अर्नव गोस्वामी अपनी बुलंद आवाज और ऑक्सफोर्ड व कैंब्रिज वाली अंग्रेजी में किसी की क्लास लेते हैं तो किसी को लताड़ व झाड़ भी देते हैं। अनीश देवगन भी आर-पार करने की फिराक में सुनाई व दिखाई देते हैं और उधर अंजना ओम कश्यप अपने अंदाज में हल्ला बोलती नजर आती हैं। वाद-विवाद और बहस की इस सारी प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिए विराजमान एंकर स्वयं भी अनियंत्रित होकर चिल्लाने लग जाता है। कई बार इस बहस में सब चिल्ला रहे होते हैं, कौन क्या कहना चाहता है, कोई सुनने को तैयार नहीं होता, बस चिल्लाते जाते हैं। इन बहसबाजों में देश के करोड़ों लोग कहां होते हैं, जिनके लिए ये सारा रंग मंच तैयार किया जाता है। वे कौन सा चैनल देखें? जिस चैनल को भी देखते हैं, ऐसा ही मंजर होता है। वे भी अपनी बात कहना चाहते हैं, अब न्यूज ऐंकर की ठसक और कुछ गिने-चुने बहसबाजों को झेलने की कोई मजबूरी नहीं।

आपको किसी की बात सही नहीं लगी, तो अपनी राय कमेंट कर सकते हैं, कोई बात पसंद आई तो लाइक बटन तो दबा भी सकते हैं। अगर बात कहीं ज्यादा ही नगंवारा गुजरे, तो कर दो अनफें्रड। कौन रोकता है। टीवी चैनल थोड़ी है कि उनकी सुनते रहो। आप अपनी कोई उपलब्धि हासिल करते हैं, तो अखबार वाले या न्यूज चैनल वाले उसे नजर अंदाज कर सकते हैं क्योंकि उनके पास आपके लिए स्पेस नहीं। परंतु अब सोशल मीडिया है न। फेसबुक, ट्विटर इत्यादि पर फोटो, वीडियो अपलोड करो और बात बन जाती है। संदेश, कमेंट्स या लाइक्स आने शुरू हो जाते हैं। आप सेलिब्रिटी भी बन जाते हैं। आपकी आवाज को देश में ही नहीं विदेशों में भी सुना जा सकता है। इसे ही तो अभिव्यक्ति की आजादी कहते हैं। मैं यह तो नहीं कहता है कि न्यूज चैनल्ज की कोई महत्ता नहीं। बस इतना कह रहा हूं कि ये बस आपको सुनाते हैं और कुछ कहने नहीं देते। सोशल मीडिया के नुकसान हो सकते हैं, पर नफा-नुकसान कहां नहीं। यह तो इस्तेमाल करने वाले पर है कि वह इसे कैसे इस्तेमाल करता है। अभिव्यक्ति की आजादी क्या होती है, यह एहसास सोशल मीडिया निःसंदेह दिलाता है। कहने वाले चाहे कुछ भी कह लें, परंतु सोशल मीडिया आज आम लोगों की आवाज का सशक्त माध्यम बन गया है। यदि लोकतंत्र का मतलब आम लोगों की आवाज है, तो सोशल मीडिया उस आवाज का सशक्त माध्यम है। लोकतंत्र में मन की बात कहने का अधिकार केवल खास-खास को नहीं, आम को भी है। ेयह मौका सोशल मीडिया बखूबी दे रहा है।


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