क्यों प्रदूषित हो गया सुंदर हिमाचल

By: Oct 24th, 2019 12:05 am

कर्म सिंह ठाकुर 

लेखक, मंडी से हैं

प्राचीन समय में हिमाचल देवों की कर्मस्थली रहा है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रदेश इतना प्रदूषित हो गया कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को प्राकृतिक संपदा को बचाने के लिए आगे आना पड़ रहा है। प्रदेश में देश की महज 0.57 प्रतिशत जनसंख्या रहती है। इस दृष्टि से हिमाचल के हालात चिंताजनक हो जाते हैं, क्योंकि देश के बड़े राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात तथा तमिलनाडु की स्थिति भी हमारे से बेहतर है। हिमाचल प्रदेश तीसरा सबसे प्रदूषित राज्य बन गया। इस छोटे से प्रदेश को प्रकृति से अनेकों उपहार  मिले हुए हैं…

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने हिमाचल प्रदेश सहित देश के 22 राज्यों के सबसे प्रदूषित 102 शहरों की सूची जारी की है। इसमें भारत के छोटे से राज्य हिमाचल प्रदेश के 07 शहर शामिल हैं। ये शहर पौंटा साहिब, काला-अंब, बद्दी, परवाणु, नालागढ़, डमटाल तथा सुंदरनगर हैं। भारत के क्षेत्रफल का 1.7 प्रतिशत हिमाचल प्रदेश में अवस्थित है। यहां पर देश की जनसंख्या का महज 0.57 प्रतिशत जनमानस ही निवास करता है। इतनी कम जनसंख्या वाले राज्य में प्रदूषण का बढ़ना हैरत अंगेज करने वाला है। क्षेत्रफल के हिसाब से हिमाचल प्रदेश 29 राज्यों में 18वें स्थान पर है। हिमाचल प्रदेश पश्चिमी हिमालय पर्वत श्रृंखला में अवस्थित है। इस पहाड़ी प्रदेश को बर्फ  का पर्वत या बर्फ  से घिरा हुआ पर्वत भी कहते हैं। ऐसी प्राकृतिक संपदा से समृद्ध राज्य का हाल आज बेहाल हो गया है। प्राचीन समय में हिमाचल देवों की कर्मस्थली रहा है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रदेश इतना प्रदूषित हो गया कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को प्राकृतिक संपदा को बचाने के लिए आगे आना पड़ रहा है। प्रदेश में देश की महज 0.57 प्रतिशत जनसंख्या रहती है। इस दृष्टि से हिमाचल के हालात चिंताजनक हो जाते हैं, क्योंकि देश के बड़े राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात तथा तमिलनाडु की स्थिति भी हमारे से बेहतर है। हिमाचल प्रदेश तीसरा सबसे प्रदूषित राज्य बन गया। इस छोटे से प्रदेश को प्रकृति से अनेकों उपहार  मिले हुए हैं। प्रदेश की भौगोलिक स्थिति समुद्र तल से 350 मीटर से 7000 मीटर के बीच में समाई हुई है। इसमें शिवालिक पर्वत, धौलाधार पर्वत श्रेणी, पीर पंजाल पर्वत शृंखला तथा बृहद हिमालय में स्थित जस्कर पर्वत शृंखला प्रदेश को प्राकृतिक दृष्टि से समृद्ध बनाती है। इस रेंज में अपार औषधीय पौधों की प्रचुरता है।

भौगोलिक दृष्टि से समृद्ध राज्य  में यदि प्रदूषण अनियंत्रित बीमारी की तरह बढ़ फैल रहा हो तो कहीं-न-कहीं मानव को इस स्थिति के लिए अपने आप को जिम्मेदार मानना होगा। प्रदेश के सोलन जिला में बद्दी, बरोटीवाला, नालागढ़ तथा सिरमौर का पौंटा साहिब, कालाअंब औद्योगिकीकरण की वजह से विषैले हो चुके हैं। इसे औद्योगिकीकरण की अंधी दौड़ कहें या प्रदेश की माली अर्थव्यवस्था को उभारने की ईमानदार कोशिश, लेकिन इन उद्योगों से निकलने वाले विषैले केमिकल, गैसें तथा प्रदूषित जल आज हमारे नदी-नालों में जहर घुल रहा है, जिससे किसानों की खेती भी जहरीली हो गई है। इन्हीं उद्योगों से निकलने वाला विषैला कचरा कई बार मीडिया में भी सुर्खियों में रहा है, लेकिन महज एक दो-दिन खबर बनने के बाद सारी घटनाएं ठंडे बस्ते में चली जाती है। ऐसी व्यवस्था में पर्यावरण का क्षरण नहीं होगा तो क्या होगा। सरेआम औद्योगिक नियमों की धज्जियां उड़ाई जाती है। प्रशासन तथा सरकार मूकदर्शक बनी रहती है। प्रशासनिक तंत्र बेलगाम औद्योगिकीकरण पर लगाम कसने में नाकाम साबित क्यों हो रहा है। हिमाचल के बहुत उद्योगों में उत्पादन नियमों को ताक पर रखकर किया जाता है, जिसमें हिमाचली युवाओं को रोजगार के नाम पर ठगा जाता है। पर्यावरण का बेरहमी से शोषण किया जाता है तथा प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन सिर्फ  लाभ कमाने तक ही सीमित रह गया है। ऐसी व्यवस्था में प्रदूषण का बढ़ना तो स्वाभाविक ही है। बढ़ते प्रदूषण का दूसरा कारण प्रदेश में पर्यटन व्यवसाय को माना जा सकता है। बाहरी राज्यों से आने वाले पर्यटकों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले वाहनों से निकलने वाला धुआं प्रदेश की स्वच्छ हवा को विषैला बनाता है। प्रदेश के चप्पे-चप्पे में सुंदरता को निहारा जा सकता है, कुछ समय पूर्व प्रदेश की वैश्विक छवि एक स्वच्छ व समृद्ध राज्य की थी, लेकिन पिछले कुछ समय से अपराधीकरण, भ्रष्टाचार, लूटमार नशे की प्रवृत्ति तथा युवा वर्ग का रातोंरात करोड़पति बनने की मंशा ने देश को शर्मसार कर दिया है।

युग हत्याकांड, गुडि़या कांड, होशियार सिंह की हत्या हो या हाल ही में सिरमौर के आरटीआई कार्यकर्ता केदार सिंह जिंदान की हत्या की गुत्थी हो, इन घटनाओं ने प्रदेश को बिहार व उत्तर प्रदेश के समतुल्य बना दिया है। आज प्रदेश के सामने नशाखोरी एक गंभीर समस्या बनती जा रही है, जिसकी जड़ें पड़ोसी राज्यों से आगे बढ़ती हुई विदेशों तक फैल गई है। कहीं-न-कहीं नशाखोरी के पीछे पर्यटकों का हाथ रहता है। प्रदेश के होटलों में नशाखोरी, शराब व शबाब पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख कारण बन गए हैं। ऐसे में प्रदेश का जनमानस अपराधीकरण की ओर आगे बढ़ रहा है। कुछ समय पहले प्रदेश की छवि एक तीव्र विकास वाले राज्य की थी तथा इस प्रदेश का जनमानस मेहनतकश, ईमानदार तथा अपने भोलेपन के लिए विश्व विख्यात था। आज हमारी छवि किस तरह की बन रही है, इस पर विचार करना जरूरी हो गया है। एक तरफ प्रदेश में प्रदूषण तथा दूसरी तरफ अपराधीकरण यदि इसी तरह से बढ़ता रहा तो हिमाचल में जीना बेहाल हो जाएगा। समय रहते ही प्रशासन तथा सरकार को कठोर नियमों का निर्धारण करना होगा। प्रदेश के जनमानस को भी अपने दायित्वों तथा सरकारी तंत्र में अपनी सजग भूमिका को सुनिश्चित करने का प्रण लेना होगा।


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