चुनावी खर्चे कम हों

By: Oct 8th, 2019 12:05 am

-रूप सिंह नेगी, सोलन

जब तक कारपोरेट जगत से राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की रकमों पर पूरी पाबंदी नहीं लगाई जाती है या पूरी पारदर्शिता नहीं अपनाई जाती है, और बेलगाम खर्च करने वाले दलों एवं प्रत्याशियों पर कानूनी कार्रवाई नहीं होती है, तब तक चुनाव खर्च पर लगाम लगाने की बात करना बेमानी होगी। चुनाव में काला धन का दुरुपयोग होने से इनकार नहीं किया जा सकता है, पर रोकेगा कौन। एक एजेंसी के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा साठ हजार करोड़ की रकम फूंकी गई है। आप जान  सकते हैं कि एक प्रत्याशी पर कितने सौ करोड़ की रकम खर्च की गई होगी। सीमा से ज्यादा खर्च करने वालों पर कार्रवाई हुई हो ऐसा सुना नहीं जाता है। जब तक जन प्रतिनिधित्व कानूनों में व्यापक बदलाव नहीं किया जाता है, तब तक लगता नहीं है कि चुनावी खर्चे पर लगाम लग सकेगी। जनता को चाहिए कि वह सरकार से आग्रह करे कि जनप्रतिनिधित्व कानूनों में वांछित संशोधन करे।  


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