चुनावी शोर में उबला दूहंदी कूहल का पानी

By: Oct 13th, 2019 12:01 am

धर्मशाला में किसानों के खेतों का एकमात्र सहारा खुद लड़ रहा अस्तित्व की जंग; कभी पीने के लिए इस्तेमाल होता था, अब सिंचाई के भी लायक नहीं

धर्मशाला – धर्मशाला में उपचुनावों को लेकर चल रहे प्रचार में राजनीतिक पार्टियां हलके के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर स्थानीय मुद्दे सुलझाने के आश्वासन दे रही हैं। लोगों के स्थानीय मुद्दे प्रत्याशी सहित प्रचार करने वाले लोग जोर-शोर से उठा रहे हैं। इसी बीच इन दिनों स्मार्ट सिटी धर्मशाला की ऐतिहासिक दूहंदी कूहल की भी खूब चर्चा हो रही है। धर्मशाला क्षेत्र की खेती की रीढ़ माने जाने वाली दूहंदी कूहल इस बार भी राजनीतिक मुद्दा बन गई है। खेतों की सिंचाई में अहम रोल अदा करने वाली कूहल अब खुद का वजूद तलाश रही है। पुराने समय से सिंचाई का मुख्य साधन रही दूहंदी कूहल वर्तमान में अपनी खस्ताहालत पर आंसू बहा रही है। इससे बड़ोल, दाड़ी, सकोह, चेलियां सहित विभिन्न गांवों के किसान अपने खेतों की सिंचाई के लिए तरस रहे हैं। दूहंदी कूहल का पानी प्रमुखता से सिंचाई के प्रयोग में लाया जाता रहा है। खनियारा के मांझी से चलने वाली कूहल कंडी, दाड़नू, अपर दाड़ी, दाड़ी, बड़ोल व झिकली बड़ोल होते हुए सकोह तक पहुंचती है। इससे हजारों कनाल खेती वाली भूमि की सिंचाई की जाती थी, लेकिन अब लोगों के खेतों तक पानी पहुंचना भी चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। पूर्व में कूहल कच्ची होती थी, तब भी हजारों कनाल भूमि में खूब पैदावार होती थी और समय पर पानी पहुंचता था, लेकिन अब पंचायतों ने कूहल पक्की भी कर दी है। हाल ही में लोगों की किसी ने नहीं सुनी, तो लोगों ने अपने चंदा डाल कर हाजारों रुपए एकत्रित किए, जिसके बाद लोगों ने कूहल के टूटे हुए हिस्से जहां डंगा लगना था, लोहे का लंबा पुल डाल कर पानी के गुजरने लायक बना दिया और अपने खेतों तक पानी पहुंचाकर खेतों की सिंचाई कर धान की फसल उगा ली। धर्मशाला शहर को नगर निगम का दर्जा मिलने से पहले यह ऐतिहासिक कूहल विभिन्न पंचायतों के अंतर्गत आती थी, जिसमें अलग-अलग पंचायत के बजट व कार्यों के प्रस्ताव में अंतर होने के कारण कूहल का विकास नहीं हो पाया हो, लेकिन अब यह कूहल शुरू से लेकर अंत तक नगर निगम धर्मशाला के अंतर्गत है।

स्थानीय लोगों पर ही है सफाई का जिम्मा

दूहंदी कूहल की साफ-सफाई की जिम्मेदारी सकोह के किसानों और निवासियों की ही रही है। पूर्व के समय में भी साफ-सफाई का जिम्मा स्थानीय लोग ही संभालते रहे हैं। कूहल की देखभाल के लिए चौकीदार कोहली सकोहवासियों द्वारा नियुक्त किया जाता रहा है। कोहली कूहल की सफाई के लिए आवाज देकर क्षेत्रवासियों को सूचित करता है और अगली सुबह सभी क्षेत्रवासियों को कूहल की सफाई करने को जाने का संदेश पहुंचाता है। कोहली को जिमीदारों की फसल में से घर-घर आकर हिस्सा (खवाड़ा) इकट्ठा करना पड़ता है।

बढ़ती आबादी के साथ बढ़ी गंदगी

कूहल का पानी 1975 तक पीने के प्रयोग में लाया जाता था, लेकिन उसके बाद आबादी बढ़ती गई और कूहल में गंदगी बढ़ती गई। दूहंदी के ऊपर दाड़ी क्षेत्र में कुछेक घरों के निर्माण से इस कूहल को अडरग्राउंड कर दिया गया है। कूहल पर पार्किंग बना ली है और अधिकतम लोगों ने घरों का गंदा पानी कूहल की तरफ मोड़ दिया है। कूहल का पानी में गंदगी होने से अब पशु भी कूहल का पानी नहीं पी रहे हैं। पहले इसका पानी पीया जाता था। लोगों में चर्चा यह भी है कि इस बार चुनावी मुद्दा, तो दूहंदी कूहल बनी है, लेकिन इसकी दशा सुधरेगी भी या नहीं।


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