जिंदगी सियासत नहीं

By: Oct 12th, 2019 12:05 am

जिंदगी महज सियासत नहीं, अदायगी भरा एहसास है। हुनर और रुतबे में गर कोई फर्क है, तो हुनर वह है जो तकरीर न बने। ठीक इसी तरह व्यवहार जब सियासत के अपने जिक्र की मुखालफत करे, तो जिंदा रहने के सबूत बदल जाते हैं और यह पुनः हिमाचल में हुआ। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को पीजीआई में स्वास्थ्य लाभ के बाद वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का अतिथ्य मिला और उनकी वापसी सरकारी हेलिकाप्टर से हुई। ऐसे क्षण राजनीतिक आचरण के कई पाप धोने के लिए ही होते हैं और इसे सौगात के बजाय इतिहास को स्वीकार करने जैसा मानना चाहिए। दरअसल जनप्रतिनिधि होने की कसरतों में खुद को साबित करने की कसौटिया भ्रमित होती हैं और टकराव की स्थिति में सियासी विद्वेष जाहिर होने लगा है। हिमाचली परिप्रेक्ष्य में नेताओं के बीच वैमनस्य का भाव पिछली सरकारों में भी देखा गया। जिस तरह क्रिकेट पर सियासत हुई और वीरभद्र सिंह सरकार ने अपने निशाने साधे, उससे माहौल की चिंगारियों ने ऐसी सियासत चुनी जो बाद में उनके अस्तित्व के आसपास भी रही। वीरभद्र बनाम धूमल के दायरे में सिमटी राजनीति ने हिमाचली चरित्र पर प्रहार किए और असहनीय सुर्खियों के बीच प्रदेश का मर्यादित चेहरा भी शक के दायरे में आया। बहरहाल उन राहों से लौटकर अब राजनीति अगर फिर से सत्ता और विपक्ष के बीच आदरभाव प्रकट कर रही है, तो यह प्रदेश की लोकतांत्रिक परिक्वता को और पुष्ट करती है। यह श्रेय जयराम को जाएगा और पिछले दो सालों की उपलब्धि में देखा जाएगा कि सत्ता का व्यवहार शालीन हुआ है और पक्ष-प्रतिपक्ष के बीच आंकड़े केवल छत्तीस तक नहीं रुके, बल्कि कुछ आगे निकले हैं। यह दीगर है कि विपक्ष ने न तो अपने तेवर मंद किए और न ही सत्ता पक्ष ने विधानसभा के विभिन्न सत्रों में सीमाएं लांघी। हिमाचल में पक्ष-विपक्ष के बीच केवल जुबान भर का अंतर नहीं रहा, बल्कि दोनों तरफ से लोकतांत्रिक छवि का एहसास हर रूप में उम्दा ही रहा। ऐसे में वीरभद्र के सम्मान में हिमाचल सरकार ने जो पेशकश की उसे सियासत से ऊपर तथा हिकारत से दूर हटाकर समझा जा सकता है। यह उस नेता का सम्मान है जो छह बार हिमाचल का मुख्यमंत्री तथा अपने युग का बुलंद सारथी रहा। पक्ष-विपक्ष के बीच कुछ अनावश्यक सरहदें टूटनी चाहिएं, ताकि नफरत की सियासत से प्रदेश का नुकसान न हो। अंततः ‘जिंदगी तू मुझे पहचान न पाई लेकिन, लोग कहते हैं कि मैं तेरा नुमाइंदा हूं।’ की तर्ज पर हर इनसान की भूमिका तय है। दुर्भाग्यवश हिमाचल में पक्ष-विपक्ष के बीच कई बार आम जिंदगी के मसले भी सियासत पर उतर आते हैं या विकास के मील पत्थरों पर राजनीतिक आलेख लिखे जाते हैं। सत्ता के बदलने पर अतीत या पूर्ववर्ती सरकारों की परियोजनाओं पर विराम या उद्देश्य पर लगाम लगाने से आम आदमी की महत्त्वाकांक्षा पर ही प्रहार होता है। राजनीतिक आधार पर वोट तो बंट सकते हैं, लेकिन इनसान को बांटने से मानवता का ही नुकसान होगा। ऐसे में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सरकार का दिल दिखाकर, कई दिलों में जगह बनाई होगी। अंत में

‘फलसफा समझो न असरारे सियासत समझो,

जिंदगी सिर्फ हकीकत है हकीकत समझो,

जाने किस दिन हो जाएं हवाएं भी नीलाम यहां,

आज तो सांस भी लेते हो गनीमत समझो।’


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