जीवन का ध्येय

By: Oct 5th, 2019 12:20 am

श्रीराम शर्मा

मनुष्य की आंतरिक अभिव्यक्ति, उसके काम करने की लगन और भावना से ही परखी जा सकती है। कर्म का सुख वस्तुतः उसकी लगन, भावना और निष्ठा में ही है। इस तरह संपन्न किए गए कर्म प्रफुल्लता दे जाते हैं, किंतु अनुत्साहपूर्वक काम करने से निराशा, क्षोभ और असफलता ही हाथ लगती है। काम करने की एक भावना होनी चाहिए उत्कृष्ट और विशाल भावना। आपका आत्मविश्वास यह कहता हो कि हम इस कार्य को करके ही छोड़ेंगे, इसमें आत्महित है और पुरुषार्थ है, तो आप सच मानिए उस कार्य में आपको असीम आनंद आएगा। मनुष्य का जीवन, एक आदर्श कर्म विद्यालय है। इसमें नैष्ठिक स्नातक वे समझे जाते हैं, जो कर्म को जीवन का ध्येय मानकर उसे कुशलतापूर्वक निभाते हैं। विद्यार्थी अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण होने का लाभ तब पाता है, जब वह लगनपूर्वक भावनापूर्वक अध्ययन कार्यों में लगा रहता है। जिस तरह स्वाध्याय की चमक यह व्यक्त करती है कि विद्यार्थी का भविष्य उज्ज्वल है, उसी प्रकार कर्म की उत्कृष्ट भावना यह बताती है कि इस मनुष्य का हृदय उत्कृष्ट और विशाल है। इन गुणों के कारण ही उसका व्यक्तित्व निखरता, समुन्नत होता है और श्रेय प्राप्त करता है। जो शक्ति परिस्थितियों को अनुकूल बनाती है, वह है काम करने की लगन और भावना। मानवीय गुणों में एक गुण यह भी है कि वह भिन्न-भिन्न अवस्थाओं के साथ भी आश्चर्यजनक ढंग से अपना मेल पैदा कर सकता है। मन की तन्मयता में वह शक्ति है, जो एक ही लक्ष्य के हजार रास्ते खोलकर रख देती है। इनमें से कोई भी मनुष्य अपनी रुचि, शक्ति और सामर्थ्य के अनुरूप अपना चुनाव कर सकता है। यह दुनिया वैसे ही बड़ी नीरस है। यहां का रहा सहा आनंद भी व्यवसाय की अरुचि में चला जाता है। बिना उद्देश्य और भावना के मशीन की तरह काम करने से इस जीवन के सारे आनंद नष्ट हो जाते हैं। अतः आवश्यकता यह है कि मन और आत्मविस्तार के लिए यह जीवन कलापूर्ण ढंग से जीने का अभ्यास डाला जाए। काम चाहे जैसा हो, अपनी लगन के द्वारा उसमें सरसता उत्पन्न करते हैं, बस यही सर्वोत्तम जीवन जीने का गुरुमंत्र है। इसे अपने जीवन में विकसित कर सकें, तो बस इस जीवन में सफलता ही सफलता और आनंद ही आनंद है। जिसने काम करने की ललित कला सीख ली, उसे सुख प्राप्त करने के लिए अन्यत्र भटकने की क्या आवश्यकता है। कर्म ही मनुष्य जीवन का सच्चा सुख है। कर्म के बाह्य रूप को देखकर भी उसके भले-बुरे होने का अनुमान लगाया जाता है, पर उसकी वास्तविक कसौटीकर्ता की भावना ही रहती है। आमतौर से सद्भावनों की प्ररेणा से जो कर्म किए जाते हैं, वे शुभ सराहनीय और नैतिक होते हैं, पर कभी-कभी बाहर से भर्त्सना योग्य दिखने वाले कुछ कार्य ऐसे भी होते हैं, जो सद्भावनापूर्वक किए गए होते हैं।


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