जीवन की आकांक्षा

By: Oct 5th, 2019 12:20 am

बाबा हरदेव

जन्म के बाद जितनी इच्छाएं होती है अथवा वासनाएं हमारे पास होती हैं मृत्यु के समय तक इसमें से एक भी कम नहीं होती अपितु बहुत बढ़ जाती हैं और इस प्रकार इन इच्छाओं व वासनाओं को पूरा करने के लिए तब मरते क्षण हमारे मन में और जन्मों की आकांक्षा पैदा होती है, क्योंकि अधूरी वासना अथवा इच्छा है तो उसे पूरा करने के लिए और जीवन चाहिए और इस प्रकार जीवन को पाने की यह इच्छा पुनर्जन्म का कारण बन जाती है और पुनर्जन्म दुखों का घर है। अतः पुनर्जन्म होता है जीवन की आकांक्षा से और जीवन की आकांक्षा होती है अधूरी इच्छा अथवा वासना को तृप्त करने के लिए समय की मांग से। अब अगर ठीक से समझें तो पुनर्जन्म का सूत्र या दुख का सूत्र ही यह अधूरी इच्छा अथवा वासना है, तृष्णा है। अतः अगर हमारे मन में कोई वासना अथवा इच्छा अधूरी नहीं है, तो हम सहज ही कह सकते हैं कि कल की हमें कोई आवश्यकता नहीं रही, फिर हम समय के पार हो जाते हैं समयातीत हो जाते हैं और समय के पार हो जाना आनंद से जीवन बसर करने का सूत्र है। ईसा मसीह ने किसी से पूछा कि आपके मोक्ष में सबसे महत्त्वपूर्ण बात क्या है? तो उनका फरमान था कि वहां समय नहीं होगा। अब समय नहीं होगा का अर्थ यही है कि वहां कोई वासना अथवा इच्छा नहीं होगी, जिसके लिए समय की कोई आवश्यकता पड़े जहां वासना अथवा इच्छा नहीं होगी। वहां कल होगा ही नहीं, तो फिर वहां पुनर्जन्म नहीं होगा, वहां केवल आज ही होगा। इस क्षण का कोई छोर नहीं होगा। शायद आज कहना ठीक नहीं होगा, बल्कि अभी ही होगा। बस यही क्षण होगा, इस क्षण का कोई प्रारंभ नहीं होगा, मानो समय वहां नहीं होगा। अब समय की आवश्यकता इसलिए है कि अधूरी इच्छा है,वासना है, इच्छा अथवा वासना को पूरा करने की दौड़ के लिए समय चाहिए क्योंकि इच्छा अथवा वासना दौड़ती है समय में। अब शरीर को दौड़ना है तो स्थान और समय दोनों की आवश्कयता पड़ेगी और यदि हमारे मन के लिए दौड़ना है, तो उसके लिए स्थान की कोई आवश्यकता नहीं बस केवल समय ही काफी है। उदाहरण के तौर पर हम स्वप्न में भी दौड़ सकते हैं और स्वप्न के लिए कोई जगह नहीं होती, लेकिन समय होता है। अब सब करते, सब पाते, चलते, दौड़ते इच्छाओं अथवा वासनाओं के पीछे हारे, जीते भीतर कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि शांति का क्षण, विश्राम का एक पल, आनंद की एक छोटी सी किरण भी अंकुरित होती हो अपितु सदैव ऐसा प्रतीत होता है कि कल मिलेगा आनंद, आज तो दुख ही है। अगर आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो यह कल बहुत भयानक है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह केवल आज को भुलाने का उपाय मात्र है, क्योंकि आज इतने दुखों से भरा है कि कल की आशा में ही हम इसे भुला सकते हैं। अब मजे की बात यह है कि बीते कल में भी हमने ऐसा ही किया था, जिसे हम आज कह रहे हैं और आज भी यही कह रहे हैं और आने वाले कल में भी यही कहेंगे। वास्तविकता तो यह है कि जो व्यक्ति आज को कल पर टाल रहा है वह अगले जन्म की तैयारी कर रहा है। परंतु यदि हम पूर्ण सतगुरु की कृपा से भविष्य से मुक्त होने की कला सीख लेते हैं तो फिर हम समय से पार हो जाते हैं।

न अब खुशी की खुशी है न गम का गम बेदिल।

तलब की कौन सी मंजिल पे आ गया हूं मैं।


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