नानकमत्ता साहिब गुरुद्वारा

By: Oct 19th, 2019 12:21 am

उत्तराखंड सितारगंज में नानकमत्ता एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगर है, जो गुरुद्वारा नानक साहिब से जुड़ा हुआ है। असल में कैलाश पर्वत की यात्रा के समय गुरुनानक देव जी यहां पर आए थे। गुरुद्वारे के अंदर एक पीपल का पेड़ है। ऐसी मान्यता है कि यह पीपल का पेड़ गिरा हुआ था फिर गुरुनानक देव जी ने इसे अपने प्रताप और चमत्कार से पुनः खड़ा कर दिया। साथ ही खास बात यह है कि इस पीपल के पेड़ का आधार मतलब जडें़ पृथ्वी पर नहीं हैं, यह उससे ऊपर हैं। ऐसा देखा गया है कि पीपल के आसपास चबूतरा बनवा देने पर अकसर जडं़े निकलने से वे टूट जाती हैं, लेकिन यहां लंबे समय से बने चबूतरों में जड़ों के कारण ऐसी कोई दरारे नहीं हैं। देखने पर इस पीपल के पत्ते आम पीपल के पत्तों जैसे नहीं नजर आते। गुरुद्वारे के अंदर एक सरोवर है, जहां अनेक श्रद्धालु आकर स्नान करते है फिर गुरुद्वारे में मथा टेकने जाते हैं और बाबा की कृपा पाते हैं तथा प्रत्येक वर्ष यहां दिवाली की अमावस्या से विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। उस समय गुरुद्वारे व नगर की साज- सज्जा देखने लायक होती है। गुरुद्वारे से कुछ ही दूरी पर बोली साहिब स्थित है, जो अपने आप में एक अलग महत्त्व रखती है। यहां से लगभग 150 किलोमीटर दूर सिखों का एक अन्य तीर्थ स्थल रीठा साहिब भी है। नानकमत्ता साहिब गुरुद्वारा में लगने वाला दीपावली का मेला भी इस क्षेत्र का विशालतम मेला माना जाता है। इसमे 5 से 10 लाख लोगों की भीड़ जमा होती है। दस दिनों तक चलने वाले इस मेले का दीपावली से दो दिन पूर्व शुभारंभ हो जाता है। तीन दिनों तक तो सिख पंथ से लोगों के द्वारा बड़े-बड़े दीवान आयोजित किए जाते हैं। जिनमें उच्च कोटि के धार्मिक व्याख्यानकर्ता तथा रागी अपने भजन, कीर्तन तथा व्याख्यान सुनाते हैं। इसके बाद आदिवासी रानाथा जनजाति के लोगों के साथ-साथ इस क्षेत्र के सभी धर्मों के लोग और दूर-दराज से आने वाले दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है। नानकमत्ता साहिब में आधुनिक सुविधाओं से युक्त 200 कमरों की एक सराय भी है। सराय इस समय बिलकुल भरी रहती है। इसके साथ ही मेलार्थियों के लिए अलग से टैंट लगाकर भी रहने की व्यवस्था गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी नानकमत्ता द्वारा की जाती है। गुरु महाराज के दरबार साहिब में बारहों मास तीन स्थानों पर अनवरतरूप से लंगर चलता रहता है। इसलिए इस मेले में खाने का कोई होटल नहीं होता है। सुबह से शाम और रात तक चलने वाले लंगर में लाखों लोग प्रतिदिन प्रसाद के रूप में लंगर छकते हैं। मेले की व्यवस्था सुचारू रूप से चलाने के लिए मेला अवधि में यहां 24 घंटे बाकायदा एक पुलिस कोतवाली अपना काम करती रहती है। आज की तेजी से भागती हुई जिंदगी में भी इस मेले में 3-4 अस्थायी टैंट टॉकीज, 2-3 नाटक कंपनियां, सरकस, 10-15 झूले, मौत का कुआं और इंद्र जाल, काला जादू आदि अनेकों मनोरंजन के साधन यहां पर होते हैं।

 


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