पहले मंडियों का पल पल रेट परखें फिर खेत से ही बेच दें फसल

By: Oct 6th, 2019 12:05 am

हिमाचल में किसानों को अकसर यह शिकायत रहती है कि मंडियों में उन्हें रेट नहीं मिलता। या फिर मंडी दूर होने से टाइम बर्बाद हो जाता है। तो अपनी माटी में हाजिर है वह समाचार,जो किसी न किसी तरह प्रदेश के 10 लाख किसानों से जुड़ा हुआ है। इसके लिए किसानों को राष्ट्रीय कृषि बाजार यानी ई नाम  से जुड़ना होगा।  ई-नाम देश भर में किसानों के लिए चलने वाली आनलाइन सेवा है। इसके लिए किसानों को गूगल प्ले स्टोर में जाकर ई नाम ऐप को डाउनलोड करना होता है। उसके बाद इसमें रजिस्टर्ड किसान देश भर की मंडियों के रेट देख सकते हैं। इस सेवा से प्रदेश की एकमात्र सब्जी मंडी सोलन जुड़ी हुई है।  सोलन के 316 किसान-बागबान अब तक ई नाम से जुड़कर खूब लाभ कमा रहे हैं। मंडी समिति द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि  ई-ट्रेडिंग के तहत 10 हजार 785 क्ंिवटल फसलों का व्यापार किया गया, जो कि कुल ट्रेडिंग का 68 प्रतिशत है। इसके अलावा पहली सिंतबर से अब तक 3 करोड़ 63 हजार रुपए की पेमेंट किसानों को की गई है। हमने कृषि उपज मंडी समिति के सचिव रविंद्र शर्मा से बात की। उन्होंने कहा कि ई नाम से किसानों और बागबानों को बड़ा फायदा मिल रहा है।

-रिपोर्ट सुरेंद्र मामटा,सोलन

कांग्रेस का सवाल, कब दोगुनी किसानों की आय

जिला किसान कांग्रेस विभाग  के अध्यक्ष जोगिंदर गुलेरिया ने अध्यक्ष पद पर अपनी नियुक्ति के लिए कांग्रेस किसान विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष नाना पटोले आदि  का आभार प्रकट किया है। पद्धर में आयोजित पत्रकार वार्ता में गुलेरिया ने कहा कि बार केंद्र में मोदी सरकार बनी है तो इन्होंने वर्ष 2017 में किसानों की आय दोगुना करने की बात कही। और दुसरी बार 2022 का टारगेट रखा गया। आखिर कब होगी किसानों की आय दोगुनी।  आज देश के अन्नदाता भयंकर संकट से झूझ रहा है।

रिपोर्ट नवीन शर्मा,पद्धर

पच्छाद में हरड़ की खेती बर्बाद, उपचुनाव में गरमाया मुद्दा

धर्मशाला और पच्छाद में हो रहे उपचुनाव के दौरान किसानों के मुद्दे बुलंद हो गए हैं। सिरमौर जिला के पच्छाद पहुंचे हैं और मसला है औषधीय फल हरड़ का। पच्छाद के घिन्नीघाड़ इलाके के 25 किलोमीटर दायरे में हरड़ की खेती उस समय से होती है,जब समाज में वस्तु विनिमय प्रणाली थी। कहते हैं कि पंजाब-हरियाणा के कारोबारी गुड-चीनी के बदले हरड़ ले जाते थे। हजारों किसान इस व्यवसाय से जुड़े हुए थे।  बुजुर्ग किसान कहते हैं कि कितना अच्छा था वह दौर,जब महज 50 रुपए से हरड़ बेचने का परमिट मिलता था, आज हाल ये हैं कि पांच फीसदी जीएसटी और अन्य टैक्स  के चलते कई किसान हरड़ के कारोबार को तौबा कर चुके हैं। अब एक क्विंटल हरड़ पर कुल 500 रुपए टैक्स है,लेकिन सरकार किसानों को न तो मार्केट दे पाई है न ही मिनिमम प्राइस। किसानों ने बताया कि पहले ग्रीन हरड़ बिक जाती थी, बाद में हरड़ को सुखाकर बेचने का ट्रेंड आया और किसानों ने इसे सुखाकर रेत में भून कर बेचना शुरू कर दिया । इसके लिए कारीगरों द्वारा पांच लाख कीमत तक बांस व टीन से बने शेड तैयार किए जाते थे, जिन्हें स्थानीय भाषा में टाठा कहते हैं, लेकिन आज नेताओं की बेरूखी से कारोबार हांफ गया है। एक दौर वह था जब उत्पादकों को इसको बेचने के लिए परमिट जारी किय जाते थे, लेकिन अब हरड़ के कारोबार के लिए पहले आवेदन करना पड़ता है, उसके बाद विभागीय फील्ड अधिकारी मौका कर  रिपोर्ट तैयार करता है और रिपोर्ट को सब डिवीजन में भेजा जाता है । फिर परमिट जारी किया जाता है, ये वे झंझट हैं, जिन्होंने इस कारोबार का भटठा बिठा दिया है।  किसान कहते हैं कि हरियाणा में हरड़ को सब्जी की श्रेणी में रखा गया है। वहां इस पर कोई टैक्स  हरियाणा में एक किलो हरड 12 रुपए में बिक रही है,जबकि प्रदेश में पांच रुपए किलो। किसान कहते हैं कि अब बताओ कौन इस कारोबार को करेगा। फिलहाल सैकड़ों किसानों ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और कृषि मंत्री रामलाल मारकंडेय से मांग की है कि हरड़ पर टैक्स हटाकर उन्हें बाकायदा मार्केट मुहैया करवाई जाए। साथ ही इसे सब्जी की श्रेणी में लाया जाए। उम्मीद है कि कम से कम इन चुनावों में जयराम सरकार तक जरूर उनकी गुहार पहुंचेगी। 

रिपोर्ट संजय राजन, सराहां (सिरमौर)

तरड़ी उगाने का एक तरीका यह भी

यमी सब्जी की कई जगली प्रजातियां प्रदेश भर में मिलती है जिनमें से दो प्रजातियां प्रदेश के किसान आसानी से अपने खेतों में या घर के आस पास उगा सकते हैं। इन यम प्रजातियों को नई वाणिज्यिक फसल के रूप में बिना कोई खर्च किए आसानी से विकसित कर सकते हैं। खास बात यह है कि जमीन के नीचे उगने वाले इनके कंद और आसमान में उगने वाले बुलबिल जो कि आसमानी आलू कि भांति प्रतीत होते हैंए दोनों को ही सब्जी के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इनकी बेल पेड़ या किसी अन्य ढांचे पर आसानी से फैलती है। ये यम सब्जियां अपने स्थानीय नाम तरडोलू और दरेगल से प्रदेश भर मैं प्रसिद्ध हैं और कई सदियों से सब्जी के रूप में प्रयोग होती आ रहे हैं। यम सब्जी की ये दोनों ही किस्में वानस्पतिक परिवार डायोस्कोरासी के जीनस डायोस्कोरिया की सदस्य है। तरड़ी और दरेगल के पौधे तरडोलू तथा दरेगल बुलबिल को जमीन में दबा कर बिना कोई रासायनिक खाद का प्रयोग किए आसानी से उगाया जा सकता है। तरड़ी उगाने में एकमात्र समस्या यह है कि इसकी जड़ों की गहराई बहुत अधिक होती है। इस कारण कंद को जमीन से निकालना काफी मुश्किल होता है। इसलिए लोग इसे पुराने कोयले के टारण् ड्रम जैसे बड़े बरतनों में या 40 से 24 सेंटीमीटर गहरे सीमेंट कंक्रीट या कुछ कठोर पदार्थों मैं तैयार करके आसानी से प्रयोग कर सकते है। इससे जड़ों को नीचे जाने से रोका जा सकता है और कंदों की खुदाई आसानी से हो सकती है। मंडी शहर के आस पास के गांवों के लोग पहले से ही इस तकनीक को अपनाकर तरड़ी यम को विकसित करने में कामयाब रहे हैं।  डिग्री कालेज मंडी में संगीत विभाग के प्रोफेसर दीपक गौतम, जो रासायनिक मुक्त प्राकृतिक  सब्जियां खाने के लिए हमेशा उत्साहित रहते हैं, मिट्टी के बरतनों, प्लास्टिक कंटेनर और यहां तक कि गत्तों में पिछले 5 वर्षों से अपने घर के आंगन में यम सब्जियों को सफलतापूर्वक उगा रहे हैं।

-तारा सेन ठाकुर, लेखिका वल्लभ महाविद्यालय, मंडी, में वनस्पति शास्त्र  की विभागाध्यक्ष हैं और स्थानीय पेड़ पौधों की विशेषज्ञ है

किसानों को मिलेंगे 5000 नए पोलीहाउस

हिमाचल में किसानों के लिए खास खबर है, क्योंकि उन्हें मॉडल पोलीहाउस मिलेंगे। दरअसल प्रदेश सरकार मुख्यमंत्री नूतन पोलीहाउस परियोजना शुरू करने जा रही है। इस परियोजना के तहत किसानों को 5000 नए नूतन पोलीहाउस मिलेंगे। पहले चरण में दिए जाने वाले इन पोलीहाउस के लिए सरकार 150 करोड़ रुपए का बजट खर्च करेंगी। प्रदेश में अब किसानों को नई पोलीहाउस परियोजना के तहत ही बजट जारी होगा। इसके लिए सरकार ने गाइडलाइन तय कर दी है।  सरकार जल्द नई पोलीहाउस योजना में किसानों को किस आधार पर अप्लाई करना है, इस बारे में अधिसूचना जारी करेगी।  इससे पहले प्रदेश के किसानों के लिए वाईएस परमार किसान स्वरोजगार योजना सरकार ने मार्च में बंद कर दी थी। यही वजह है कि काफी समय से प्रदेश के किसानों को पोलीहाउस के लिए बजट नहीं मिल रहा था। फिलहाल मुख्यमंत्री नूतन पोलीहाउस परियोजना के शुरू होने के बाद किसानों को कई फायदे होंगे। अहम यह है कि मॉडल नूतन पोलीहाउस में लगाए जाने वाले पौधों के लिए पानी की भी कम आवश्यकता होगी। 80 प्रतिशत पानी की कमी को मॉडल पोलीहाउस दूर करेगा। इसके साथ ही इस पोलीहाउस में लेबर भी कम लगेगी। कृषि विभाग के अधिकारियों का दावा है कि नए पोलीहाउस में लगाई जाने वाली विभिन्न फसलों में कीट व बीमारियां भी नहीं लगेंगी।  गौर हो कि प्रदेश के कई ऐसे भी क्षेत्र हैं, जहां पर पानी की कमी होने पर भी किसान खेतीबाड़ी नहीं करते हैं। अब नूतन पोलीहाउस लगने के बाद फसलों को 80 प्रतिशत पानी की आवश्यकता न होना बड़ी खबर है।

हजारों किसान  कर रहे इंतजार

हिमाचल में हजारों ऐसे किसान हैं, जो पोलीहाउस लगाने के लिए बजट का इंतजार कर रहे हैं। दरअसल केंद्र से भी पोलीहाउस योजना के लिए इस बार कम बजट आया है। ऐसे में छह महीने से भी ज्यादा समय से अप्लाई करने वाले किसानों को निराश होना पड़ रहा है।

दो फेज में दी जाएगी सुविधा

बताया जा रहा है कि सरकार दो फेज में प्रदेश में ये पोलीहाउस लगाएगी। इसमें एक फेज के लिए 75 करोड़ तक का बजट कृषि विभाग जारी करेगा।  सुंदरनगर। पिछले कुछ वर्षो से हाईब्रीड मक्की बीज की बदौलत किसानों की आर्थिकी लगातार सुदृड़ हुई है। उन्नत बीजों से हो रही अत्यधिक पैदावार के चलते इस वर्ष प्रदेश के मैदानी व पहाड़ी क्षेत्रों के किसानो ने हाईब्रीड राशि मक्की बीज 4642, 4640 व 3591 के बीजों को हाथो हाथ लेते हुए व्यापक स्तर पर बिजाई की थी। जिसके चलते इस बार किसानों के खेतों में बंपर फसल लहलहा रही है। वहीं किसानों के चेहरे भी खिले हुए है। किसानों का कहना है कि उन्होंने 4642 अति उन्नत हाईब्रीड बीज से एक बीघा क्षेत्र में छह क्विटल तक की पैदावार ली है। जो कि अन्य प्रचलित किस्मों के मुकाबले दो से तीन गुना है। इन दिनों बिलासपुर, सोलन, कांगड़ा, हमीरपुर व विभिन्न जिलो सहित मंडी जिला के सुंदरनगर, गोहर, चैलचौक, स्याज, ख्योड, बल्ह घाटी, जोगिद्रनगर, सरकाघाट, उपरी पहाड़ी क्षेत्रों गोहर, कांढा, बगसाईड, थुनाग, पखाड़ा, ओपा, कांढी, सीकावरी, जाच्छ, सैंज, बथेरी, कोटर्मोस, कटौला, बथेरी, बाली चौकी में फसल ठीक रही है।

बयान

कृषि विभाग किसानो को उच्च गुणवत्ता के बीज अनुदान पर उपलब्ध करवाने को वचनवद्ध है।

– अजीत कुमार, कृषि उपनिदेशक।

200 में बिकने वाला सेब 35 रुपए किलो क्यों बिका

राकेश सिंगा

हिमाचल में इस बार जो सेब 200 रुपए किलो तक बिकना चाहिए था, वह महज 35 रुपए किलो बिका है। इससे बागबानों सहित प्रदेश की आर्थिकी को बड़ा झटका लगा है। किसान सभा का आरोप है कि जयराम सरकार और एपीएमसी की नाकामी से ऐसा हुआ है। प्रदेश में मुद्रास्फीति लगातार बढ़ रही है, जिसपर अंकुश नहीं लग पाया है। सेब ट्रे की कीमतें बढ़ा दी गई हैं। पैकिंग बागबानों को महंगी  हो गई हैं और किसानों को उपलब्ध भी नहीं हो पा रही है। 2016 में नोटबंदी का असर आज देखने को मिल रहा है।  किसान सभा के राज्य सचिव राकेश सिंघा ने कहा कि  हिमाचल के सेब उत्पादक सबसे बुरे आर्थिक सकंट से जूझ रहे हैं। सिंघा ने सरकार से पूछा कि जब  अमरीका से सेब का आयात कम हुआ है और जम्मू कश्मीर में भी हाल खराब हैं, तो ऐसे में हिमाचल के सेब उत्पादकों को मुनाफा मिलना चाहिए था,  मगर उलटे सेब के दाम गिर गए। सरकार बताएगी कि ऐसा क्यों हुआ। कहां तो सेब की कीमत डेढ़ सौ से दो सौ होना चाहिए था, लेकिन आज सेब 25 से 35 रुपए किलो के हिसाब से बिक रहा है जो चिंता का विषय है। इसी तरह बागबानों से लूट भी रुकने का नाम नहीं ले रही है।  उन्होंने सलाह दी कि  सरकार को सीए स्टोर पर बल देना चाहिए । उधर, पूर्व महापौर सजंय चौहान ने कहा कि अगर सरकार उनकी बातों को अनसुना करती है तो किसान सभा एपीएमसी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाएगी।

रिपोर्ट शिमला ब्यूरो

मुंबई के मालेगांव  से धरे दो फरार आढ़ती

बागबानो से सेब खरीदने के बाद पैसे नहीं देने वाले दो आढ़तियों को पुलिस ने मुंबई के मालगांव से गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस एसआईटी की टीम 26 सितंबर को मुंबई में फर्जी आढ़तियें की तलाश के लिए गई थी, जहां पर दो अक्तूबर को दो आढ़तियों को गिरफ्तार करने में कामयाबी मिली है। जानकारी के मुताबिक मोहम्द सलीम और शेख ने सोलन और शिमला से पिछले साल सेब खरीदा, लेकिन बागबानों को पैसे नहीं दिया। करीब एक करोड़ की देनदारियां इन दोनों आरोपियों पर है। । बताया गया कि वर्ष 2018-19 में एपीएमसी के पास किसानों को कमीशन एजेंटों द्वारा राशि नहीं देने के 101 मामले पंजीकृत हुए हैं। कमीशन एजेंटों के पास किसानों का 2.15 करोड़ से अधिक की राशि लंबित हैं। हालांकि प्रदेश से संबंध रखने वाले अधिकांश आढ़तियों ने बागबानों के पैसे जमा कर दिए हैं, लेकिन मोटी रकम हड़पने वाले बाहरी राज्यों के आढ़ती हैं।

बयानः

मुंबई के मालेगांव से दो आढ़तियें को गिरफ्तार किया गया। जिन्हें सोलन कोर्ट में पेश करने के बाद पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया।

-वीरेंद्र कालिया, एएसपी क्राइम

सीधे खेत से

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