पुत्र प्राप्ति के लिए विख्यात है धारा गांव की माता चामुंडा

कुल्लू-अगर पुत्र प्राप्ति नहीं हो तो भटकें नहीं, सीधे धार्मिक नगरी मणिकर्ण घाटी के एक छोर में धारा नामक स्थान पर बसी जगत जननी माता चामुंडा के दर जाएं, यहां आवश्य पुत्र प्राप्ति होगी। यही नहीं, किसी भी इंसान को अगर भूत-प्रेतों का साया पड़ा हो, उसे भी डरने की जरूरत नहीं है। वह माता चामुंडा के दर जाकर सुकून प्राप्त कर सकता है। भूत-प्रेतों को भगाने में भी धार्मिक एवं तीर्थ नगरी से विख्यात मणिकर्ण घाटी के धारा गांव में विराजमान माता चामुंडा माहिर हैं। माता जब कांगड़ा से धारा गांव पहुंची थी तो चलणी खानदान को सबसे पहले प्रकट हुई थी। बता दें कि देवभूमि कुल्लू के लोगों का देवी-देवताओं की शक्ति पर अटूट विश्वास होने के कारण ही आज के इस युग में भी देवी-देवताओं कि शक्तियां साक्षात देखने को मिलती है। माता चामुंडा मंदिर कमेटी के सदस्य झाबे राम के अनुसार धारा गांव में विराजमान माता चामुंडा कांगड़ा जिला से आई है। चामुंडा का पौराणिक कथानक एवं इतिहास दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में स्पष्ट हुआ है। माता की प्राचीन परंपरा एवं भौगोलिक स्थिति अद्भुत और अलौकिक है। चंड-मुंड राक्षस देवी से युद्ध करने आए थे तो माता ने उनका वध किया। अंबिका की भृकुटि से प्रादुभूर्त कालिका ने जब चंड और मुंड के सिर उसको उपहार स्वरूप भेंट किए तो अंबा ने प्रसन्न होकर वर दिया कि तुमने चंड और मुंड का वध किया है, अतः संसार में तुम चामुंडा नाम से विख्यात हो जाओगी। मां चामुंडा देवी की प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक समय धरती पर शुंभ और निशुंभ नामक दो दैत्यों का राज था। इन दोनों राक्षसों ने स्वर्ग लोक और देवलोक को भी पराजित कर धरती और स्वर्ग वासियों पर अत्याचार करने लगे देवता मारे-मारे इधर-उधर भटकने लगे। इस समस्या के निवारण हेतु वे भगवान शिव की शरण में गए और भगवान शिव से राक्षसों से रक्षा बिनती करने लगे, तब भगवान शंकर ने उन्हंे देवी दुर्गा मां की अराधना कर प्रसन्न करने की युक्ति सुझाई। तब तब मनुष्य और देवताओ ने देवी मां दुर्गा की आराधना कर देवी मां को प्रसन्न किया, तब देवी दुर्गा ने उन सभी को वरदान दिया कि वह अवश्य ही उन दोनों दैत्यों से उनकी रक्षा करेगी। इसके पश्चात देवी दुर्गा ने कोशिकी नाम से एक सुंदर स्त्री के रूप में अवतार ग्रहण किया। माता चामुंडा का देवी दुर्गा रूप भी माता जाता है।