प्रतिस्पर्धी संसार के बीच

By: Oct 19th, 2019 12:05 am

हिमाचल के पांव देश-विदेश को मापने लगे हैं, लिहाजा प्रदेश के दृष्टिकोण में युवा सशक्तिकरण स्पष्ट है। विडंबना यह है कि खेल विभाग में फंसा युवा दायित्व यह समझने में नाकाम रहा कि हिमाचल की युवा पीढ़ी के मंतव्य किस दिशा व रफ्तार से बदल रहे हैं। ऐसा कोई अध्ययन उपलब्ध नहीं, जिसके आधार पर हिमाचली युवा के मंतव्य को मापा जाता। ऐसे में युवा विभाग को अलग व स्वतंत्र रूप से विकसित करते हुए, प्रदेश के युवा चिंतन-मनन को आशावादी माहौल तक पहुंचाने का जरिया बनाना होगा। हिमाचल में युवा मन के भीतर दो तरह के विभाजन स्पष्ट हैं। इनमें से बहुतायत तो इस फेर में रहते हैं कि किसी भी स्थिति में सरकारी नौकरी मिल जाए। युवाओं का यह वर्ग क्षमताहीन, कार्य संस्कृतिविहीन तथा मानसिक संकीर्णता के भंवर में फंसा है, जबकि नए क्षितिज छूने को हर साल हजारों युवा प्रदेश छोड़कर बाहर निकल रहे हैं। यहां सरकारों की नीतियों की परख होती है। हिमाचल में सरकारी नौकरी का झांसा देकर युवाओं को रोकने से बेहतर होगा कि हम उन्हें राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के काबिल बनाएं। मानव संसाधन के निर्यात की क्षमता में अब तक की सफलताएं निजी हैं और अगर सरकार भी इस नजरिए से देखे, तो हिमाचली युवाओं के लिए माहौल पैदा करने के साथ-साथ शिक्षा के स्तर और गुणवत्ता के हिसाब से विशेष प्रयास करने होंगे। प्रदेश से बाहर निकल रहे युवाओं के साथ जो बहारें लौट रही हैं, उनका भी मूल्यांकन करना होगा या यूं कहें कि इस प्रक्रिया में पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं, बल्कि जीवन के लक्ष्य बदल रहे हैं। दिल्ली, चंडीगढ़, अमृतसर और धर्मशाला हवाई अड्डों पर उतरते युवाओं की क्षमता के बीच उस उभरते हिमाचल के दीदार अवश्य करें, जो देश-विदेश की मंजिलों पर अपना ठिकाना ढूंढ रहा है। चंडीगढ़ से दिल्ली तक की अकादमियों में प्रशिक्षण ले रहे ज्ञान को पहचानो, जो प्रादेशिक वर्जनाओं के बाहर अपनी दुनिया तराश रहा है। पिछले दस सालों में अगर एक लाख से ऊपर हिमाचली युवा प्रदेश के बाहर पहुंच गए, तो यह उस आकाश का मुआयना है, जो हिमाचल में दिखाई नहीं देता। सरकारें जिस हिमाचली युवा को झांसे में रख रही हैं, उसकी क्षमता का प्रदेश शायद ही फायदा उठा पाएगा। प्रदेश के शिक्षा विभाग ने भी बचपन से जवानी तक की उम्मीदों को न खुलने का खेलने के लिए तैयार किया। हिमाचली युवाओं में संकट उठाने की क्षमता का विस्तार ही उन्हें प्रतिस्पर्धी संसार के बीच जगह देगा, वरना एक विचित्र मोहजाल में आश्रित होते युवाओं को केवल आश्वासन ही मिलेंगे। ऐसे में हिमाचली युवाओं का बाहरी दुनिया सें संपर्क बढ़ाने के लिए प्रदेश सरकार को चंडीगढ़-दिल्ली, बंगलूर तथा पुणे जैसी जगहों पर यूथ फसिलिटेशन सेंटर कम होस्टल विकसित करने चाहिएं ताकि किसी तरह की प्रतिस्पर्धा में उतरने से पहले राज्य का स्पर्श मिलता रहे। प्रदेश सरकार अगर गुजरात में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के पास हिमाचल भवन के निर्माण पर करीब तेरह करोड़ खर्च करने की हिम्मत दिखा रही है, तो युवाओं के करियर निर्माण में देश के विभिन्न शहरों में परिसर विकसित करके कोचिंग लेने से नौकरी पाने तक मददगार साबित हो सकती है। हिमाचल भवन की तर्ज पर युवा भवनों का निर्माण उन कदमों की आहट को तीव्र करेगा, जो हिमाचल से निकलकर करियर या रोजगार की परिक्रमा कर रहे हैं। हिमाचली युवा को आकाश भर दिखाने की जरूरत है, वह अपने मकसद को मंजिलों से जोड़ने की क्षमता रखता है।


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