प्लास्टिक को कहें अलविदा

By: Oct 19th, 2019 12:05 am

राजेंद्र पालमपुरी

लेखक, मनाली से हैं

अगर बात आम जनमानस की हो रही है तो याद आते हैं वह दिन जब बाजार चलती बार घर के सदस्य अकसर आवाज दिया करते थे – जरा देना भई थैला, कुछ सामान-वामान लेते आएंगे और यह हमारे हर घर की बात थी। यही नहीं मैंने देखा है अपनी पाठशाला के गुरुदेव जी को भी और कुछ रहे न रहे, लेकिन उनके कंधे पर कपड़े का थैला रहता ही था हमेशा। जिनका अनुसरण करने की अब हमारी बारी होगी और ऐसा करने में हम सबको आगे आने की भी जरूरत रहेगी…

प्रदेश सरकार की ओर से हरे भरे हिमाचल को जन्नत के दरवाजों की तरफ  रुख करने की जो कोशिशें की जा रही हैं वह तो काबिल-ए-तारीफ हैं ही, लेकिन अब इन कोशिशों में जनसहसोग के मिलने से इस समस्या से निजात जल्द मिलने के आसार भी साफ  होने लगे हैं । यहां अगर बात आम जनमानस की हो रही है तो याद आते हैं वह दिन जब बाजार चलती बार घर के सदस्य अकसर आवाज दिया करते थे – जरा देना भई थैला, कुछ सामान-वामान लेते आएंगे और यह हमारे हर घर की बात थी। यही नहीं मैंने देखा है अपनी पाठशाला के गुरुदेव जी को भी और कुछ रहे न रहे, लेकिन उनके कंधे पर कपड़े का थैला रहता ही था हमेशा। जिनका अनुसरण करने की अब हमारी बारी होगी और ऐसा करने में हम सबको आगे आने की भी जरूरत रहेगी, लेकिन जैसे-जैसे वक्त बदला और कहा जा सकता है कि हमने उन्नति की राह में वायु गति से उड़ना आरंभ किया है। जाहिर है वैसे ही हमारे पर्यावरण प्रदूषण में भी बढ़ोतरी हुई और वातावरण प्रदूषित करने की तोहमत या इल्जाम भी हम सब पर ही आता है, क्योंकि हमने ही नई-नई खोजें करके अपने वातावरण को प्रदूषित करने में कसर ही नहीं छोड़ी। फिर चाहे वह पेड़ों की कटाई ही क्यों न हो। जिसका परिणाम भी हमीं को भुगतना पड़ रहा है, और यह हालात हमने सिर्फ  और सिर्फ  प्लास्टिक का इस्तेमाल करके भी पैदा किए हैं। हमने अपने रोजमर्रा में प्रयोग होने वाले साधनों से लेकर अपनी बेचे और खरीदे जाने वाली चीजों में भी प्लास्टिक का ही लबादा ओढ़ लिया है। मतलब साफ  है कि हमने अपने स्वास्थ्य के साथ-साथ ही वातावरण को जहरीला बनाने में भी कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है, लेकिन अब जबकि प्रदेश  के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने प्लास्टिक को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित करने का बीड़ा उठाया है और जिसके तहत प्रदेश में प्लास्टिक की लगभग 68 फैक्ट्रियों को नोटिस जारी करके उन्हें तीन महीनों में अपना स्टॉक खत्म करने के निर्देश जारी किए हैं।

तो कहना होगा कि सरकार के साथ ही हम सबको भी एकजुट होकर प्लास्टिक मुक्त करना होगा अपना घर और अपना यह हरा भरा प्रदेश और यह तभी संभव होगा जब प्लास्टिक को जड़ से ही खत्म करने के लिए इसे जन आंदोलन बना पाएंगे हम सब। समाचारों में कहीं-कहीं कुछ स्वैच्छिक और निजी संस्थाओं ने कपड़े से बने थैलों को आम लोगों में बांटने का पुनीत कार्य आरंभ करके इसे नई दिशा देने का प्रयास किया है जिसमें इसी कड़ी में हमारे प्रदेश के जिला मंडी में चल रही जलविद्युत परियोजना चरण-2 नगवाई की ओर से ‘स्वच्छता ही सेवा’ कार्यक्रम के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय दशहरा नाटय उत्सव कुल्लू में नॉन बोवेन से बने थैले बांटकर प्रदेश और देश को प्लास्टिक मुक्त बनाने का जो संदेश दिया वह कितना प्रभावपूर्ण और प्रशंसनीय है कहने की आवश्यता नहीं है। यह हम सब जानते हैं इस अवसर पर लोक उद्यम चयन बोर्ड भारत सरकार के अध्यक्ष उनकी सहधर्मिणी और परियोजना के अन्य अधिकारी वर्ग द्वारा कुल्लू दशहरा के प्रगति मैदान में उपस्थित आम लोगों को मुफ्त थैले बांटकर सिंगल यूज प्लास्टिक इस्तेमाल न करने की सलाह और संदेश दिया गया जो सराहनीय कदम कहा जाना चाहिए। यह सही है कि स्वैच्छिक संस्थाएं हमें किसी बड़े पैमाने पर थैले बांट सकती हैं, लेकिन अपने पारिवारिक स्तर पर हमें भी अपना ही सहयोग करने की जरूरत होगी। जैसे, जरा याद करें तो हम अपने फटे पुराने कपड़ों से अपने घरों का कुछ सामान बना लिया करते थे, तो क्यों नहीं हम अपनी वही पुरानी परंपराओं को संजोए रखने के चलते अपने बेकार पड़े कपड़ों से थैले बनाकर और उनका इस्तेमाल कर सिंगल यूज प्लास्टिक को भी ‘बॉय-बॉय’ या ’ अलविदा ’ क्यों नहीं कह देते। यहां यह कहना भी आवश्यक होगा कि हमारा आधुनिक युवा वर्ग और हम शायद ऐसा कुछ कर पाने में कुछ समय लेंगे, लेकिन मैं समझता हूं ऐसा मुमकिन है नामुमकिन नहीं । देश और प्रदेश में ऐसी बहुत कंपनियां हैं जो समूचे प्रदेश में प्लास्टिक के अतिरिक्त नॉन बोवेन जैसी सामग्री से निर्मित बैग-थैले हर घर तक पहुंचाने में सक्षम हैं, फिर वह सब ऐसी पहल करके प्रदेश सरकार के साथ ही आम जनमानस को प्लास्टिक मुक्त क्यों नहीं बना सकती हैं? अवश्य बना सकते हैं हम सब मिलकर प्लास्टिक मुक्त प्रदेश। कहना यह भी जरूरी हो जाता है कि हम आधुनिकता की लौ में बहुत आगे निकल गए हैं जिसमें कपड़े के थैले लिए बाजार में घूमना शायद हमारी युवा पीढ़ी को रास न आए, लेकिन कहना यह भी होगा कि यदि कपड़े के थैलों में आधुनिकता का रंग दिया जाए तो फैशन के इस दौर में प्लास्टिक को अलविदा कहने में रत्ती भर भी देर नहीं लगेगी। मैं तो यह कहने में भी संकोच नहीं करूंगा कि प्रदेश में किसी भी स्थान और पाठशालाओं में होने वाले पारितोषिक वितरण समारोहों में भी इनाम स्वरूप सिर्फ  और सिर्फ नॉन बोवेन या कपड़े के थैले ही दिए जाएं,  लेकिन ऐसा कर दिखाना भी अपने आप में एक उदाहरण होगा जिसे कुछ बिरला लोग ही दिखा पाने में सक्षम होते हैं और उनमें से एक हम भी हो सकते हैं। ऐसे में बस अपने हुनर का इस्तेमाल करें और प्लास्टिक को पूर्ण रूप से कहें ‘बॉय-बॉय’ अलविदा प्लास्टिक।

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे। 

-संपादक


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