भक्ति तो मन का भाव है

By: Oct 19th, 2019 12:15 am

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव

भक्ति कुदरत की तरह है। कुदरत देने में कंजूसी नहीं करती, वह हर चीज में अपने आपको पूरी तरह से समर्पित कर देती है। कुदरत की हर चीज अपनी पूरी क्षमता से देना जानती है। जबकि मनुष्य बचत करने का प्रयास करता है। क्योंकि इनसान खुशी, अपना प्यार और वह सारी बातें, जो उसके लिए बेहद प्रिय व मायने रखती हैं, उन्हें बचाने की कोशिश करता है, इसलिए उसे कई तरह के आडंबर करने पड़ते हैं। अगर मनुष्य सिर्फ चुपचाप बैठकर पूर्ण आनंद में जी सके तो फिर उसे अपना सारा ध्यान रात के खाने और पीने के इंतजार में नहीं लगाना पड़े, लेकिन मनुष्य ने जीवन के प्रति अपना स्वभाव ही ऐसा बना लिया है कि वह हर वक्त अपने को बचाने की कोशिश करता है। हर वक्त इंतजार करता रहता है। कब रात होगी और कब खाना मिलेगा। मेरे लिए शराब की व्यवस्था कब होगी। अगर मनुष्य हर पल अपने आप को आनंद में सरोबार पाता, प्यार में डूबा पाता, भावातिरेक में खो गया होता तो उसका मन रात के खाने, शराब या किसी अन्य भौतिक सुख के इंतजार में व्यर्थ चिंतन करते हुए व्यतीत नहीं होता। इन भौतिक सुखों की सोच में मनुष्य अपने जीवन का ज्यादातर समय बर्बाद नहीं करता।

भक्ति होती ही ऐसी है, जिसमें आपको आत्मसंचयन यानी खुद को बचाने की अपनी हर हद और चारदीवारी गिरा देनी होती है और अपने आपको अपनी सर्वाधिक सीमा तक बहने देना होता है। अगर आप किसी के भी प्रति समर्पित होकर एक बार अपने अस्तित्व के ठोस ढांचे को गिरा देते हैं तो सहसा आप पाएंगे कि जिसके प्रति भी आप समर्पित हैं, उसकी खूबियां आपके भीतर प्रतिबिंबित हो उठेंगी और वहीं खूबियां आप में तब्दील हो जाएंगी। मैंने इसे अपने जीवन में कई रूपों में बेहद नाटकीय ढंग से घटते देखा है। चाहे वह लेखक हो, वैज्ञानिक, खिलाड़ी, घरेलू महिला या कोई अन्य व्यक्ति क्यों न हो, अगर वह अपने काम को पूरे समर्पण के साथ करता है तो उसमें अलग तरह की खूबियां नजर आने लगती हैं। भक्ति होती ही कुछ ऐसी है। अगर आप अपने बनावटी ढांचे को तोड़कर किसी दूसरी चीज में पूरी तरह से डूब जाते हैं और अगर वह चीज काफी प्रभावशाली होती है तो उसकी छाप आप पर पड़ना तय है। भक्ति का भाव भी यही है कि आप वही बन जाएं। आप जो भी चाहते हैं, वह चीज अगर आप में प्रतिबिंबित होने लगती है तो वह इसलिए क्योंकि आप उसके लिए खुद को पूरी तरह से खोल चुके होते हैं। भक्ति में तो वह शक्ति है जो आपको सीधे परमात्मा से जोड़ सकती है। आधुनिक मनुष्य अपने भौतिक सुखों में इस तरह उलझा हुआ है कि उसके पास एक मिनट का समय निकालना भी मुश्किल है। भक्ति तो मन का ऐसा भाव है जो हृदय की गहराइयों को छू जाती है। अपने को भूला कर आप किसी ऐसी दुनिया में प्रवेश कर जाएंगे जिसकी आप ने कल्पना भी नहीं की होगी। भक्ति के भाव जब पैदा होते हैं तो आपको अंदर से सहेज कर रख देते है।


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