भगवान की पूजा

By: Oct 12th, 2019 12:05 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

महाराज बहादुर जोर -जोर से हंस रहे थे, यह देखकर स्वामी जी आश्चर्य से उन्हें देखते हुए बोले, महाराज लगता है कि आप मेरे साथ मजाक कर रहे हैं। महाराज का मुख फौरन गंभीर हो गया। उन्होंने शर्मिंदगी के साथ कहा, नहीं-नहीं स्वामीजी वास्तव में मैं लकड़ी, मिट्टी, कागज, पत्थर या धातु की बनी मूर्तियों के प्रति अन्य साधारण व्यक्ति की तरह श्रद्धा भक्ति नहीं कर सकता। क्या इसके लिए मुझे परकाल में कठोर सजा भुगतनी पड़ेगी। अपने यकीन के साथ पूजा करने पर परकाल में सजा क्यों मिलेगी? मूर्ति पूजा में आपका विश्वास नहीं है, तो क्या हुआ? स्वामीजी का उत्तर सुनकर वहां मौजूद सभी लोग हैरत के साथ सोचने लगे कि ये वही स्वामीजी हैं, जिन्हें उन्होंने कई बार श्री बिहारी जी के मंदिर में मूर्ति के सामने भजन गाते-गाते भावेश में आंसू बरसाते और अष्टांग होकर गिरते देखा है। उन्हीं स्वामीजी ने मूर्ति पूजा के समर्थन में दलील पेश क्यों नहीं की? क्या इसका कारण उनका महाराज से भयभीत हो जाना है। तरह-तरह के संदेश उनके हृदय में उठने लगे। स्वामीजी की नजर तभी महाराज के एक चित्र पर पड़ी जो दीवार पर टंगा था। स्वामीजी ने फौरन उस चित्र को वहां से हटा दिया और उसे हाथ में लेकर दीवान बहादुर से पूछा क्यों क्या ये महाराज बहादुर का ही चित्र है? दीवान बहादुर ने इशारे में सिर हिलाया। स्वामीजी बोले, बहुत अच्छा और फिर उस तस्वीर को भूमि पर रखकर दीवान बहादुर से कहा, अब जरा आप इस पर थूक दीजिए। दीवान बहादुर आश्चर्य से स्वामीजी की तरफ देखने लगे। अन्य सभी मौजूद लोग भी इसका कारण समझ नहीं पाए थे। तब स्वामीजी ने जरा ऊंची आवाज में कहा, आपमें से कोई भी इस पर थूक दीजिए। महाराज का चित्र होने से इसमें क्या खास है? इसमें महाराज खुद तो मौजूद नहीं हैं। यह तो सिर्फ एक टुकड़ा कागज है। यह महाराज की तरह हिल-डुल नहीं सकता और न ही बातचीत कर सकता है, फिर भी आप लोग चुप क्यों हो? तभी स्वामीजी ने जोर से ठहाका लगाया और बोले, मैं जानता था कि आप लोग इस पर नहीं थूक सकते। क्योंकि  आप लोग समझ रहे हैं कि इस पर थूकने से महाराज का अपमान होगा। क्या सही कहता हूं न। इतना सुनते ही सभी उपस्थित व्यक्तियों ने कुंठित आनंद और नीची दृष्टि से स्वामीजी के कथन का समर्थन किया। अब स्वामीजी महाराज की ओर देखते हुए बोले, देखिए महाराज एक नजर इस पर डालिए। ये आप नहीं, पर अगर दूसरे तरीके से विचार किया जाए, तो इस चित्र में भी आपका अस्तित्व है और यही वजह है कि इस पर किसी ने नहीं थूका। क्योंकि ये सभी लोग आपके सेवक हैं। ऐसा कोई भी काम जिसमें आपकी बेइज्जती हो,यह नहीं कर सकते। ये लोग आपको और इस तस्वीर को एक नजर से देख रहे हैं। ठीक इसी प्रकार पत्थर या धातु से बनी भगवान की मूर्तियां भी गुणवाचक होती हैं। उन्हें देखते ही भक्त के मन में उसी भगवान की बातें जाग उठती हैं। भक्तजन मूर्ति के जरिये भगवान की पूजा करते हैं, वे धातु या पत्थर की पूजा नहीं ेकरते। मैं अनेक स्थानों पर गया हूं, लेकिन कभी किसी हिंदू को यह कहते हुए नहीं सुना कि हे पत्थर, हे धातु, मैं तुम्हारी पूजा कर रहा हूं। तुम मुझ पर खुश हो जाओ। महाराज, उन्हीं एक अनंत भावमय भगवान की,जो सभी के उपास्य तथा सच्चिदानंद रूप हैं।


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