‘भावनात्मक स्वच्छता’ को करें प्रोत्साहित
चितकारा विश्वविद्यालय में दलाई लामा बोले, क्रोध-ईष्या से बचाएं बच्चों को
चंडीगढ़ – भविष्य का आकार हमारे हाथों में है और 21वीं शताब्दी के शिक्षक और शिक्षार्थी मिलकर एक ऐसी दुनिया का निर्माण कर सकते हैं, जो अधिक खुश और अधिक शांतिपूर्ण होगी। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि हमें अपने शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों में दूसरों के लिए दया और चिंता जैसे मूल्यों को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए। हिज होलीनेस दलाई लामा ने कहा कि बचपन से ही हम एक शिशु को शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए उसकी शारीरिक स्वच्छता के लिए आमतौर पर प्रोत्साहित करते हैं, मेरे अनुसार इतना ही आवश्यकता उन्हें बचपन से ही क्रोध, ईर्ष्या और भय जैसी विनाशकारी भावनाओं से निपटने के लिए ‘भावनात्मक स्वच्छता’ के लिए प्रोत्साहित करना भी है। यह कहना है तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष और आध्यात्मिक गुरू 14वें दलाई लामा का। वह यहां चंडीगढ़ के नजदीक बनूर कस्बे स्थित चितकारा विश्वविद्यालय में हुए एक भव्य समारोह में 14वें दलाई लामा को डॉक्टरेट की मानद उपाधि, डाक्टर ऑफ लिटरेचर (डी लिट) से सम्मानित किए जाने के मौके पर छात्रों को संबोधित कर रहे थे। उन्हें विश्विद्यालय की ओर से समाज व मानवता की भलाई, विश्व में शांति व शिक्षा और उनके आध्यात्मिक नेतृत्व के लिए दिए गए योगदान के लिए सम्मानित किया गया। धर्मगुरु दलाई लामा को चितकारा यूनिवर्सिटी आयोजित ‘ग्लोबल वीक 2019’ में शामिल होने के लिए यूनिवर्सिटी के पंजाब कैंपस में निमंत्रित किया गया था। यहां पर उन्होंने हजारों छात्रों व फेकल्टी सदस्यों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि आज के समय की चुनौती का सामना करने के लिए मनुष्य को सार्वभौमिक उत्तरदायित्व की व्यापक भावना का विकास करना चाहिए। हम सबको यह सीखने की जरूरत है कि हम न केवल अपने लिए कार्य करें, बल्कि पूरे मानवता के लाभ के लिए कार्य करें। मानव अस्तित्व की वास्तविक कूंजी सार्वभौमिक उत्तरदायित्व ही है। दलाई लामा ने ‘दि नीड फॉर यूनिवर्सल एथिक्स इन एजुकेशन’ विषय पर भाषण दिया। दलाई लामा को पूरी दुनिया में विश्व शांति व अहिंसा के लिए जाना जाता है।
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