भू-डॉन से पदमश्री का सफर

By: Oct 15th, 2019 12:05 am

अजय पाराशर

लेखक, धर्मशाला से हैं

यह तो सभी जानते हैं कि हमारे देश में भू-दान आंदोलन की नींव आचार्य बिनोवा भावे ने रखी थी, लेकिन भू-डॉन आंदोलन के प्रण्ेता को कोई नहीं जानता। वजह जमीनों पर कब्जों का इतिहास उतना ही पुराना है, जितनी हमारी सभ्यता। तारीख गवाह है कि ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ के सिद्धांत को हमेशा बलशालियों ने ही जिया है। गरीब तो हमेशा पिटता-पिसता ही आया है, लेकिन जब कोई गरीब, भू-डॉन होने की ठान ले तो वह भी अपना साम्राज्य कायम कर सकता है। ऐसी ही एक मिसाल हैं पंडित जॉन अली, जो आज प्रदेश के विभ्यात समाज सेवक के रूप में प्रतिष्ठित हैं। यह बात दीगर है कि उन्होंने यह इज्जत गरीब की रोटियां बेचकर कमाई है। गांव चाहे ठेठ देहाती हों या शहरों से लगते, गरीब के खेत उसकी रोटी का जरिया होते हैं। सरकारें तो आती-जाती रहती हैं, लेकिन एक भू-डॉन का राज मुसलसल कायम रहता है। जमीनों पर कब्जे का कारोबार ऐसा है कि माया सदा भू-डॉन की गुलाम बनी रहती है। चूंकि माया ही सरकारें बनाती और बिगाड़ती है। लिहाजा इलेक्शन जीतने से लेकर सत्ता में बने रहने के लिए माया की सख्त जरूरत होती है। पंडित ने यह मंत्र काफी पहले सीख लिया था कि माया के जेब में रहने पर नेता, चम्मचे, अफसर, कारकून, और तमाम इदारे, सब अपने गुलाम होते हैं। लिहाजा मामूली सरकारी ठेकेदारी से अपना सफर तय करते हुए जल्द ही लोक निर्माण सहित तमाम विभागों के अफसरों की औकात समझ ली। जेब में फूटी कौड़ी न होने के बावजूद सरकारी धन के बल पर ही अपना साम्राज्य खड़ा कर लिया। उन्होंने समझ लिया था कि उधार पर जीने वाली सरकारें भविष्य में कंगाल हो सकती हैं, सो ठेकेदारी के साथ आमदनी का स्थायी स्रोत ढूंढ निकाला। पुलिस को हफता बांधने के बाद उन्होंने छल-बल से गरीबों की जमीनों पर कब्जा करना शुरू कर दिया। जमीन नाम चढ़ने तक किस्तों में उसके मालिक को पैसा देते रहते, लेकिन कब्जे के बाद अदायगी बंद कर देते। झगड़े वाली जमीनों में हाथ डालने से पहले उन्होंने राजस्व विभाग और न्यायपालिका में अपनी पैठ बना ली थी। थोड़ा गैया ज्यादा कुंइयां, के सिद्धांत पर काम करते हुए उन्होंने ऐसे दूध से भी मक्खन और घी बनाना सीख लिया, लेकिन लोग उन्हें अब भी मुस्टंडा ही समझते थे। यह भांपते हुए उन्होंने चालाक गीदड़ की तरह नैतिक रूप से मरे हुए नेताओं का शिकार करना शुरू कर दिया और कई मंत्रियों की किचन कैबिनेट के मुखिया हो गए। धीरे-धीरे लोगों में फैला दिया कि फलाने मुख्यमंत्री उनके धर्म भाई हैं। अब अफसर या कारकून खुले मुंह उनसे कुछ न मांग पाते। वह जो फेंक देते, वे उससे गुजारा कर लेते, लेकिन इसके बावजूद वह परेशान रहते। लोग उन्हें अब भी बड़ा गुंडा ही मानते। उन्होंने अपनी बिरादरी की कल्याण सभा गठित की और उसके मुखिया होकर समाज सेवा शुरू कर दी। विवादास्पद जमीनों पर बिरादरी के महान लोगों के नाम पर कई पब्लिक स्कूल, गो तथा वृद्धाश्रम शुरू कर दिए। इन संस्थाओं के शिलान्यास-लोकार्पण समारोहों में वह मंत्रियों और आला अफसरों के साथ सजे नजर आते। अखबारों में कल्याण सभा, स्कूलों और वृद्धाश्रम के फुल पेज इश्तहारों से वह आखिरकार समाज सेवक के रूप में स्थापित होकर, नेताओं की संस्तुति पर पद्मश्री के लिए नामित हुए। भू-डॉनी से वह कब पद्मश्री समाज सेवी हुए, पता ही नहीं चला।            

 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App