मशीनों ने छीनी हाथों की कारीगरी

By: Oct 29th, 2019 12:20 am

धीरे-धीरे पहचान खो रहा हस्तशिल्प कारोबार,संग्रहालय में शोपीस बनकर रह गई पर्यावरण प्रिय वस्तुएं

पतलीकूहल  –मशीनी युग में जहां मानव शक्ति का हुनर व कारीगरी दिन प्रतिदिन संसाधनों की कमी के कारण घटने लगी है इसके कद्ररदान भी इससे नाता तोड़ने लगे हैं जिससे यह हस्तशिल्प उद्योग धराशायी होने लगा है। पिछले दस सालों में जिस तरह से हस्तशिल्प कारोबार कम हुआ है उससे मशीनों से तैयार होने वाली वस्तुओं ने उसका स्थान ले लिया है। कारण आज पर्यावरण प्रिय वस्तुएं संग्रहालय में शोपीस बनकर रह गई है। जहां एक ओर भारत सरकार पर्यावरण को बचाने की मुहीम में लगी हैं यदि वहां पर बांस की खेती को बढ़ावा मिले तो इससे बनने वाली वस्तुएं पर्यावरण को संतुलित रखने में खरी उतरेगी मगर इसके लिए एक योजना बनाने की जरूरत है जिसके लिए उन कारीगरों को रोजगार तो मिलेगा ही साथ ही परिवार का पालन-पोषण भली-भांति करने में सक्षम होंगे। खेतीबाड़ी व रोजमर्रा की जिंदगी में किसानों द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाले बांस के किल्टे, टोकरी, शूप और कई प्रकार की ऐसी चीजें जो पर्यावरण प्रिय रही हैं उसका प्रचलन अब प्लास्टिक से तैयार होने वाली चीजों ने ले लिया है। यहां तक गर्मी के दिनों में मिट्टी के घड़ों में रखे जाने वाले पानी के लिए भी अब लोग प्लास्टिक के बने बरतने को तरजीह देने लगे है। मशीनों से तैयार होने वाली वस्तुएं जहां बाजार में सुगमता से उपलब्ध होने लगी है उससे हस्तशिल्प का कारोबार एक दम चौपट हो गया है। कुल्लू दशहरे में हस्तशिल्प की दुकान लगाए बैठे चंदे राम ने बताया कि पिछले 18 वर्षों से हाथों से बनने वाली वस्तुओं की दुकान लगा रहें हैं लेकिन उन्हें दुखः है कि बड़ी तीव्रता से हस्तशिल्प का कारोबार हिचकोले खाने लगा है। यहां तक की बांस से बनने वाली कई प्रकार की वस्तुएं आज की आधुनिकता की दौड़ में मशीनों के आगे नतमस्तक हो गई हैं। मिट्टी से बनने वाले बरतन लकड़ी से बनने वाली हर प्रकार की चीजें जो किसान लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी व खेती बाड़ी के  कार्य में प्रयोग होती रही हैं प्लास्टिक के इस दौर में फीकी होती जा रही है। चंदे राम ने बताया कि जिस तरह से हस्तशिल्प से तैयार होने वाली वस्तुओं के लिए संसाधन जुटाना दुर्लभ हो गया है उससे इसके बनाने वाले भी इससे जी चुराने लगे हैं क्योंकि उनके हुनर व कारीगरी के कद्ररदानों की भारी कमी आ गई है। हस्तशिल्पियों के लिए जहां इस कारोबार की कमी खलने लगी हैं वहीं पर वह भी इन चीजों को बनाने से मुंह मोड़ने लगे हैं। हालंाकि अधिकाधिक तौर पर दशहरा 14 अक्तूबर को समाप्त हो गया है लेकिन ढालपुर मैदान में अस्थायी दुकानदार अभी भी हस्तशिल्प कद्ररदानों की राह देख रहें हैं।

 

 


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