महासेल और खालीपन का खेल

By: Oct 16th, 2019 12:05 am

अशोक गौतम

साहित्यकार

स्वर्ग से लेकर नरक तक सेल की धूम मची हुई है। आटे से लकेर डाटे तक की सेल महासेल चरम पर है। सेल का जादू हर जीव के दिमाग चढ़ खौल रहा है। सेल के बाजार में भीड़ ऐसी कि अभी नहीं तो फिर कभी नहीं। गली मोहल्ले वाले तो गली मोहल्ले वाले, भगवान तक स्वर्ग से टोलियों में उतर-उतर कर सेल की शोभा बढ़ा रहे हैं। कतई जरूरत का सामान भी छूट का लाभ लेने के चक्कर में बस को एयरबस बना रहे हैं। सेल के एक-एक सामान पर दस-दस भिड़ रहे हैं। बाजार सामानों से कम सेलों महासेलों के पोस्टरों से अधिक अटे पड़े हैं। हर दुकान के बाहर सेल के पोस्टर बेचते दुकान में सामान बेचने वालों से अधिक। सेल के इस डरावने मौसम में उपभोक्ता को सोए-सोए भी सेल में घूमने की बीमारी लग गई है। दस बजे तक भी न नहाने वाला जीव इन दिनों सुबह चार बजे ही नहा धोकर आनन-फानन में शाम का जो कुछ बचा हो उसी का ब्रेकफास्ट कर सुपरफास्ट हो सारा दिन सेल महासेल में घूमने के बाद शाम को जब वह जबरदस्ती घर आता है, मत पूछो सेल के सामान से गधे की तरह लदे तब उसे घर आकर अभी भी कितना खालीपन महसूस होता है। उसका बस चले तो वह सेल के इस मौसम में बाजार को ही घर ले आए।  सेल में बावरा हो घूमता, अपने चंचल मन को घुमाता जीव जब शाम को घर आता है तो इतना थक जाता है कि रोटी बनाने को भी उसका मन नहीं करता। और तब वह बिना डिनर लिए ही अगल-बगल सेल में खरीदा सामान धरे सोए-सोए भी सेल में खरीददारी करता रहता है। उसे डर है कि जो सेल उसके सामान खरीदने से पहले खत्म हो गई तो अनर्थ हो जाएगा। सेल ने अपने सेलिया, उपभोक्ताओं की जेब का पूरा-पूरा ध्यान रखते हुए लालची को सेल में लुटने के बीसियों विकल्प दिए हैं। ऐसे नहीं तो वैसे ही सही। वह कैसे न कैसे सेल के महाजाल में एक बार फंसे तो सही। शेष बाजार खुद संभाल लेगा। सेल ऑन लाइन, ऑफ  लाइन जैसे भी उसका दांव लग रहा है सेल के मारे जीवों को फांस रही है। जो टेक्नोलॉजी फें्रडली हैं, वे घर आराम से बैठकर बेकार का सामान भी अपने लिए बहुत जरूरी मान सेल की लूट से अपने घर में भरते हुए सामने कैल्कुलेटर रखे हिसाब लगा रहे हैं कि आज उन्होंने इतने कमाए। और जो मेरे जैसे टेक्नोलॉजी फें्रडली नहीं हैं वे बेचारे फटे जूते चटकाते बाजारों में जा जाकर, एक दूसरे द्वारा एक दूसरे को धकिया, जाने के बाद भी संभलने की शत प्रतिशत असफल कोशिश करते हुए सेल में लगे एक ही पांव के दोनों जूते उलटते-पलटते पैरों का मन बहला रहे हैं। किसी पर एटीएम भारी पड़ रहा है तो किसी पर पेटीएम। डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड। ये कार्ड वो कार्ड सेल में मन के खालीपन को वैसे ही भड़का रहे हैं जैसे घी आग को भड़काता है। जिस तरह से संन्यासी माया से नहीं बच सकता उसी तरह से लाख कोशिश करने के बाद भी गृहस्थी सेल के आकर्षण से नहीं बच सकता। आप में हिम्मत हो तो बच कर देख लीजिए। बच जाएं तो मुझे भी बताइएगा कि सेल के महाखेल से आप बचे तो कैसे? 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App