लंका नरेश रावण का साधना स्थलः राक्षसताल

By: Oct 5th, 2019 12:20 am

तंत्र-मंत्र में रुचि के कारण रावण का साधना-स्थल तो तुमको देखना ही चाहिए। कोई जाए या न जाए, तुम तो चलो। मानसरोवर की यात्रा तो सभी करते हैं, पर राक्षस ताल…अरे, इसी बहाने मैं भी देख लूंगा। शायद रावण की आत्मा भटकती मिल जाए।’ मैं खिलखिलाकर हंस पड़ा और बोला, ‘वामाखेपा, रावण की आत्मा भला क्यों भटकेगी…उसे तो राम के हाथों मुक्ति मिल गई थी।’

-गतांक से आगे..

मैं मौन रह गया तो वामाखेपा बोलते गए, ‘यहां तक आ ही गए हो। मैं मानसरोवर जा ही रहा हूं, तुम साथ दो तो राक्षस ताल भी हो आएं।’ मैं मौन तो रह गया था, पर भैरवी का कथन मन मथ रहा था, ‘अवसर आते नहीं हैं, उन्हें बनाना पड़ता है। क्या इस अवसर को बना लिया जाए। वामाखेपा का साथ है। ऐसा अवसर शायद फिर हाथ न आए?’ फिर भी मन बेतरह कसमसा रहा था। अभी मैं यह सोच ही रहा था कि वामाखेपा के स्वर मेरे कानों में पड़े- ‘बोलो, क्या कहते हो। तंत्र-मंत्र में रुचि के कारण रावण का साधना-स्थल तो तुमको देखना ही चाहिए। कोई जाए या न जाए, तुम तो चलो। मानसरोवर की यात्रा तो सभी करते हैं, पर राक्षस ताल…अरे, इसी बहाने मैं भी देख लूंगा। शायद रावण की आत्मा भटकती मिल जाए।’ मैं खिलखिलाकर हंस पड़ा और बोला, ‘वामाखेपा, रावण की आत्मा भला क्यों भटकेगी…उसे तो राम के हाथों मुक्ति मिल गई थी।’ ‘यह मुक्ति और आवागमन का चक्र तुम जानो। चलना है तो बोलो।’ अंततः मैंने वामाखेपा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस अवसर का लाभ उठा ही लेना चाहिए। अलमोड़ा से हम दीनापानी आए। दीनापानी से कापड़खान होकर बिनसर आ गए। बिनसर की जलवायु बहुत अच्छी है। यहां पर तपेदिक के रोगियों का एक अच्छा अस्पताल है। यहां पर विश्राम करके लंबी ढलान वाला मार्ग तय कर हम बमौली आ गए और इस गांव में ठहर गए। फिर देवलकर होते हुए बिलनसेरा आ गए। आगे का सारा रास्ता दूर-दूर तक या तो बहुत नीचा था या फिर दूर-दूर तक ऊंची चढ़ाइयों वाला था। फिर भी हम बराबर आगे बढ़ रहे थे। इस मार्ग पर केवल हम ही नहीं थे, बल्कि और भी यात्रियों के छोटे-बड़े दल थे। मानसरोवर तक बराबर यात्री मिले। ‘इसी मौसम में मानसरोवर की यात्रा सुविधाजनक रहती है।’ वामाखेपा ने बतलाया। कभी हम यात्रियों के साथ चलते, कभी आगे-पीछे हो जाते। यात्रियों में बूढ़े, स्त्रियां, जवान सभी थे। सभी पुण्य तीर्थ मानसरोवर में स्नान कर जीवन को सार्थक बनाना चाहते थे। बागेश्वर, कापकोट, श्यामाधुरा होते हुए हम तेजाम आ गए। यहां से जाकुल लगभग एक किलोमीटर दूर है। यहीं से सब रामगंगा पार करते हैं। पुल पार करते समय बड़ा डर लगता है। धीरे-धीरे पुल पार करना पड़ता है। खाना खाकर दोपहर में ही हम जाकुल से चल दिए। धीरे-धीरे पुल पार किया। एक तो वह पुल बेहद हिलता था, फिर रस्सियों से बंधे पटरों पर पैर संभालकर रखना पड़ता था।               


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