विषय आसान, पाठ्यक्रम मुश्किल

By: Oct 14th, 2019 12:01 am

उपचुनाव उवाच-23

मेरे चुनावी विषय आसान हैं, लेकिन मुझे यानी धर्मशाला को कठिन पाठ्यक्रम से मोहब्बत रही है। इसलिए कमोबेश हर विधायक का प्रदर्शन कांटों पर रहा या मेरे हिस्से के कांटे आज भी बरकरार हैं। बहरहाल इस बार तो उपचुनाव ही कांटे की तरह है और जहां प्रमुख पार्टियां मछलियां बनकर पानी खोज रही हैं। स्वतंत्र प्रत्याशी राकेश चौधरी के कांटे में कौन फंसता है, यह प्रश्न हर कोई पूछ रहा है, जबकि सरकार पर एतबार करके मेरा वजूद हमेशा पारंगत हुआ। दरअसल इस बार भाजपा ने मेरा माथा पढ़ने में गलती की, तो कांग्रेस न अपना हाथ देख पाई और न ही मेरा। उम्मीदवारों के चयन को आसान विषय मानकर जो गलती कांग्रेस ने की, वहीं भाजपा ने भी उसी की संगत में अपनी व्यूहरचना की। ऐसा क्यों न समझा जाए कि दोनों पार्टियों ने अपने पुराने कांटे (किशन कपूर-सुधीर शर्मा) हटाने के लिए जो सियासी मार्ग प्रशस्त किए, वे कमोबेश एक सरीखे और एक जैसे अनुपात में आमने-सामने खड़े हो गए। मसला संवेदनात्मक हथियार बनकर राकेश चौधरी को ऐसी पहचान दे गया, जो कभी मेरे पाठ्यक्रम में नहीं था। मेरी शान में कल तक जो कसीदे काढ़े गए, वे आज चुनावी बारूद की बदजुबान बन गए। मैं इतना अपभ्रंश उपचुनाव क्यों होने लगा कि मतदाता अब जाति और वर्ग बनकर घूमने लगे। मेरे मुद्दे-मेरे विषय क्यों उपचुनाव के पाठ्यक्रम से बाहर हो गए। मेरे विषयों की एक भाषा तो धर्मकोट के साथ लगते लोगों की जुबान में मतदान के बहिष्कार में सुनी जा सकती है। विषय नगर निगम के आंचल में बहते पसीने से है और उस प्रतिनिधित्व से भी जो मुझे आज भी विकास से महरूम कर रहा है। जो मेरी जनता को संपर्क मार्ग नहीं दे सके, उन्हें क्या नाम दूं। मेरी खूबियों का जिक्र करते कई चुनाव निकल गए, लेकिन पहली बार उपचुनाव चुगली कर रहा है। ये चुगलियां दोनों पार्टियों के लिए घमासान की तरह हैं, लिहाजा मेरे हिस्से का विकास चीख रहा है। अतीत में झांकता हूं, तो जो विषय कांग्रेसी सत्ता को आसान लगे, भाजपा ने अपने पाठ्यक्रम से हटा दिए गए। कांग्रेस पता नहीं क्यों और किस दूसरी राजधानी का विषय चुन रही है, जबकि हकीकत तो धर्मकोट के आसपास के बाशिंदे प्रकट कर रहे हैं। मैं विषयों की खाल में मुजरिम हूं इसलिए सत्ता के खूंटे में भी दर्द लिए हूं। क्या उपचुनाव इन खूंटों से बाहर आएगा या मेरा पाठ्यक्रम इतना विस्तृत हो गया कि अचानक अनेक विधायक मेरी परिक्रमा पर उतर आए। अगर मेरे विषयों का अर्थ सत्ता है, तो मुझे भाजपा का हर वह विधायक कबूल है, जो निचली धर्मशाला में तंबू लगाकर पहरा दे रहा है। सच मानो किसी भी विधानसभा सत्र से कहीं अधिक पहली बार मेरे उपचुनाव में विधायक सक्रिय हुए हैं या जमीन पर खड़े हुए हैं। मैं इन्हें जरूर आशीर्वाद दूंगा कि इसी तरह वापस अपने -अपने विधानसभा क्षेत्र में लौट कर जनता को टटोलना शुरू कर दें, वरना अपने भीतर से ही किसी को राकेश चौधरी बनते देर नहीं लगेगी। मेरा विषय राकेश चौधरी नहीं है, लेकिन अपने पाठ्यक्रम में मैं यानी धर्मशाला दोनों पार्टियों को कुछ मुद्दे रटाना चाहूंगा। ये मुद्दे धर्मशाला से भरमौर या सिरमौर तक एक सरीखे हैं, अंतर सिर्फ इतना है कि कौन कल विधायक पद की शपथ लेकर इनसान बनकर लौटता है और लगातार जमीन का आधार नहीं छोड़ता है।

राजनीतिक शिविर से,

कलम तोड़


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