शहनाज का भविष्य पति-पत्नी में टकराव का कारण बना

By: Oct 19th, 2019 12:14 am

सौंदर्य के क्षेत्र में शहनाज हुसैन एक बड़ी शख्सियत हैं। सौंदर्य के भीतर उनके जीवन संघर्ष की एक लंबी गाथा है। हर किसी के लिए प्रेरणा का काम करने वाला उनका जीवन-वृत्त वास्तव में खुद को संवारने की यात्रा सरीखा भी है। शहनाज हुसैन की बेटी नीलोफर करीमबॉय ने अपनी मां को समर्पित करते हुए जो किताब ‘शहनाज हुसैन ः एक खूबसूरत जिंदगी’ में लिखा है, उसे हम यहां शृंखलाबद्ध कर रहे हैं। पेश है उन्नतीसवीं किस्त…

-गतांक से आगे…

‘वह लड़का नहीं है’, उन्होंने नरमाई से शौहर को अपनी बात समझाने की कोशिश की। ‘मैं जानती हूं कि आप कैम्ब्रिज से पढ़े हैं, लेकिन हमारे खानदान में लड़कियां बिना किसी बंधन के घर छोड़कर नहीं जातीं। आप उसे अकेली किसी विदेशी जमीन पर भेजने की सोच भी कैसे सकते हैं? आप उसकी जगह वल्ली को भेजने की क्यों नहीं सोचते? वह लड़का है और उसे अच्छे कैरियर की जरूरत है।’ ‘तो क्या हुआ अगर वह लड़का नहीं है तो? उसे भी बराबर के मौके मिलने चाहिए’, जस्टिस बेग ने सख्ती से कहा। ‘जहां तक वल्ली की बात है, वह नई दिल्ली के सेंट स्टीफंस कालेज जाना चाहता है और मुझे भी लगता है कि वह उसके लिए सही होगा।’ ऐसे आदमी के लिए जिसने शुरुआत में ही अपनी बेगम का पर्दा उठाकर फेंक दिया था, उसके लिए अपनी बेटी की शिक्षा भी उतना ही पाक मकसद था। ‘आपको अहसास भी है कि अगर उसे अकेला रहना पड़े तो वह किस कद्र बेकाबू हो सकती है? आप तो समझ ही नहीं सकते कि मैं किस तरह आपकी बेटी को संभाल रही हूं। नूरां से पूछो, वह बताएगी आपको। इस महीने में मैंने चौथी बार कार के नए परदे खरीदे हैं क्योंकि शहनाज बाहर देखने के लिए उन्हें फाड़ देती है।’ नाराजगी से परे, जस्टिस बेग अपनी बेटी के कारनामों के समर्थन में नजर आए। ‘पहली बात तो तुम कार में परदे लगाती ही क्यों हो? वह बस बाहर दुनिया को देखना चाहती है’, उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा। सईदा बेगम ने अविश्वास से अपने शौहर को देखा। उन्हें लगने लगा कि निकाह ही वह रास्ता है जिससे वह अपनी बेटी को पराए देश की पराई तहजीब में जाने से रोक सकती हैं। शहनाज का भविष्य ही उन दोनों में पहली बार टकराव का कारण बना, जो आगे आने वाले कई सालों तक बरकरार रहा।

‘मोहब्बत बड़े काम की चीज है’

इलाहाबाद का छोटा सा शहर गर्मी से तप रहा था। बढ़ते तापमान ने सभी को घरों में बंद रहने को मजबूर कर दिया था और अकसर व्यस्त दिखने वाली सड़कें बिल्कुल वीरान मालूम पड़ रही थीं। अनगिनत रिक्शा वाले छाया में पड़े सुस्ता रहे थे, देर शाम को ही कुछ आवाजाही संभव हो सकती थी। जस्टिस बेग का घर गीली खस से ठंडा था, जिससे आती ठंडी हवा, मोटे परदे पड़े कमरों को ठंडा रखती थी। मोटे परदे सूरज की तेज रोशनी को अंदर आने से बचाते थे। आम का पन्ना, गुलाब का शरबत और अन्य ठंडे पेय ही गर्मी के प्रभाव को कम करने के लिए उन दिनों लिए जाते थे। और खास चिकनकारी का मलमल का कुर्ता ही उस मौसम की जान थे। यह वह समय होता था, जब उत्तर भारत के संपन्न परिवार पहाड़ों की ठंडी हवा खाने के लिए उधर का रुख करते थे।                       -क्रमशः


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