शिव स्तुति से जुड़ी है नुआला परंपरा

By: Oct 12th, 2019 12:10 am

देवभूमि हिमाचल के हर क्षेत्र में लोगों की परंपराओं और रीति-रिवाजों में काफी अंतर है। यहां तक देव पूजन की परंपराओं को भी लोग अपने ही तरीकों से निभाते हैं। अगर हम नुआला परंपरा की बात करें, तो यह विशेषकर गद्दी समुदाय से जुड़ी एक प्राचीन परंपरा है, जिसे आज भी चंबा घाटी के लोग पूरी श्रद्धा के साथ निभाते हैं। यूं तो इस संदर्भ में कई दंतकथाएं प्रचलित हैं, लेकिन चंबा घाटी के लोगों से बातचीत करने पर उन्होंने नुआले के संदर्भ में अपने कई विचार प्रकट किए। नुआला मतलब नौ व्यक्तियों द्वारा भगवान भोले शंकर की स्तुति या भोले की महिमा का गुणगान करना होता है। जिसे केवल गद्दी समुदाय के लोग ही गाते हैं। बताया जाता है कि इन 9 व्यक्तियों को अलग-अलग कार्यभार सौंपा गया होता है। इनमें शामिल 4 लोगों को बंदे कहा जाता है, जो पूरी रात भोलेनाथ की स्तुति या उनकी महिमा का गुणगान करते हैं। इनके साथ पांचवां व्यक्ति कुटआल और छठा बुटआल होता है। कुटआल का काम सारी रात जागकर शिव का गुणगान करने वाले 4 बंदों की सेवा करना होता है और बुटआल का काम लोगों में प्रसाद आदि बांटना होता है। इस रात को चार हिस्सों में बांटा जाता है और बुटआल रात को चार बार प्रसाद बांटता है। सातवां व्यक्ति नुआले के लिए मंडल बनाता है और इसके समीप बैठकर सारी रात धूप-दीप जलाता है। आठवें व्यक्ति को चेला कहते हैं, जिसे किसी भी देवता की पौण या खेल आ सकती है। नौवां व्यक्ति रसोइया होता है, जो खाना बनाता है और लोगों को खिलाता है। नुआले की विधि- नुआला शुरू करने से पहले फूलों की माला बनाई जाती है। इसके बाद गेहूं या मक्की के आटे से जमीन पर मंडल की सरंचना की जाती है। मंडल में 32 कोठे बनाए जाते हैं। इसके बीच में 4 छोटे कैलाश और बीच में एक बड़ा कैलाश पर्वत बनाया जाता है। मंडल में बनाए गए 32 कोठों पर चावल व उड़द के दाने डाले जाते हैं। इसके साथ 32 दाल के बड़े व 64 बबरू साथ में चढ़ाए जाते हैं। हर कोठे पर एक दाल का बड़ा और 2 बबरू चढ़ाए जाते हैं। इसके साथ ही धूप-दीप जलाया जाता है। अगर नुआला वैष्णव है, तो मंडल में मीठा प्रसाद व फल आदि चढ़ाया जाता है। अगर पैरू अर्थात भेडू देना है, तो मंडल के पास भेडू की मुंडी या पंजा रखने की परंपरा भी कहीं-कहीं निभाई जाती रही है। हालांकि बलि प्रथा पर प्रतिबंध के चलते अब लोग वैष्णव नुआला को तवज्जो देने लगे हैं। मंडल संरचना के बाद 4 लोग, जिन्हें बंदे कहा जाता है, वे शिव की अराधना ऐंचली से शुरू करते हैं। इसके बाद निभाई जाती है नुआले की आगे की परंपरा अर्थात विधि के अनुसार रात के चार हिस्सों में शिव की स्तुति क्रमवार की जाती है। शिव की आराधना के साथ ही भोलेनाथ का आह्वान किया जाता है और उन्हें मंडल में विराजमान होने के लिए आमंत्रित किया जाता है।  इसके साथ ही भोलेनाथ से यह भी अनुमति ली जाती है कि हे भोलेनाथ आज सारी रात आपके ये चार बंदे आपकी स्तुति अर्थात नुआला करेंगे और आप अपनी मौजूदगी में इस कार्य को सफल करें एवं अपना आशीर्वाद यहां मौजूद लोगों को भी प्रदान करें। रातभर चार पहरों के दौरान चार बार प्रसाद बांटा जाता है। पहले पहर में भोले के आमंत्रण एवं स्वागत में गीत गाए जाते हैं। दूसरे पहर में भी भोलेनाथ की स्तुति या शिव लीला के अलावा रामायण भी गा सकते हैं। तीसरे पहर में महाभारत या पंडवीण व चौथे पहर में कृष्णलीला भी गा सकते हैं। चौथे पहर में शिवपूजन करके भोलेनाथ को विदाई दी जाती है और उनकी विदाई में गीत गाए जाते हैं। इसके बाद प्रसाद बांटकर सभी लोगों में धाम परोसी जाती है। कैसे शुरू हुई थी नुआला परंपरा- एक दंतकथा के अनुसार सूर्यवंशी राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार करने के लिए ब्रह्मा की आराधना की और गंगा को पृथ्वी लोक में आने के लिए कहा। गंगा आने के लिए तैयार हो गई, लेकिन उनके वेग को संभाल पाना मुश्किल था। इसलिए ब्रह्मा ने भगीरथ से कहा कि गंगा के वेग को तो भोलेनाथ ही रोक सकते हैं। उन्होंने भगीरथ को भोलेनाथ की आराधना करने को कहा। भगीरथ ने भोलेनाथ की आराधना की। भोलेनाथ के प्रकट होने पर भगीरथ ने उनसे गंगा के वेग को कम करने के लिए कहा। भोलेनाथ ने भगीरथ की बात मान ली और कहा, ठीक है मैं गंगा के वेग को कम कर दूंगा और अपनी जटाओं में समा लूंगा। उन्होंने कहा कि इस दौरान पृथ्वी लोक में चार चेलों को मेरा गुणगान करना होगा। तभी से नुआले की शुरुआत मानी जाती है। कहा जाता है कि गंगा के वेग को रोकने के लिए नुआले के दौरान 32 कोठे आटे के बनाए जाते हैं। इस दौरान शिव भक्त भोलेनाथ की महिमा का गुणगान करते हैं और नाच गाकर अपना भक्तिभाव व श्रद्धा प्रकट करते हैं। एक अन्य दंतकथा के अनुसार यह भी बताया जाता है कि जब गंगा ब्रह्मा के करमंडल से निकलकर आई, तो सीधे शिवजी की जटाओं में समा गई थी और इसके बाहर न निकलने पर भगीरथ परेशान हो गए थे। उन्होंने सोचा अगर गंगा जटाओं से बाहर न निकली और पृथ्वी लोक में न आई, तो उनके पूर्वजों का उद्धार कैसे होगा। इसके बाद भगीरथ मां गौरी के पास गए और उनसे कहा कि भोलेनाथ की जटाओं में गंगा समाई हुई है। माता को शक हो गया कि आखिर भोलेनाथ खाना खाते वक्त एक ग्रास अपनी जटाओं में क्यों रखते हैं। इस सवाल के पूछने पर भोलेनाथ ने गौरां से कहा कि मेरी जटाओं में मेरे ठाकुर रहते हैं। इस पर गौरां ने जिद की कि उसने भोलेनाथ के ठाकुर को देखना है। भोलेनाथ ने कहा कि मेरे ठाकुर औरत का मुंह नहीं देखते। इस पर गौरां ने भोलेनाथ से पूछा कि आपसे बड़ा कौन है। भोलेनाथ ने कहा कि मेरे से बड़ी तो पृथ्वी है। गौरां ने पृथ्वी से पूछा और फिर बारी-बारी सबसे पूछा। आखिर में सबने भोलेनाथ का नाम लिया और कहा शिव ही सर्वोत्तम एवं सर्वव्यापी और सबसे बड़े हैं।  भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी लोक पर छोड़ दिया ताकि उसके पूर्वजों का उद्धार हो सके। कहा जाता है कि नुआले का आधार इसी दंतकथा से जुड़ा माना गया है।

 -कपिल मेहरा, जवाली


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