साधक जीवन की क्रियाओं को नियमित बनाएं

By: Oct 12th, 2019 12:05 am

अर्थात हाथों के अगले भाग में लक्ष्मी, मध्य भाग में सरस्वती और मूल में ब्रह्मा जी स्थित हैं। इसलिए प्रातःकाल उठते ही सर्वप्रथम अपने हाथों के दर्शन करें। इसके पश्चात निम्नवत प्रार्थना करके भूमि पर पांव रखें : हे विष्णुपत्ने, हे समुद्र रूपी वस्त्रों को धारण करने वाली तथा पर्वत रूपी स्तनों से युक्त देवी, तुम्हें नमस्कार है। मेरे पैरों के नीचे स्पर्श को क्षमा करो। इसके बाद मुंह धोकर, कुल्ला करके श्री गणेश, लक्ष्मी, सूर्य, तुलसी, गौ, गुरु, माता-पिता और वृद्धजनों का स्मरण करके उन्हें नमस्कार करें। तदनंतर मल-मूत्र त्यागकर दातुन करें। फिर स्वच्छ-शीतल जल से स्नान करें…

-गतांक से आगे…

किसी भी तंत्र साधना को आरंभ करने से पहले उससे संबंधित महत्त्वपूर्ण बातों की जानकारी प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक है। इसके साथ ही साथ यह भी अत्यावश्यक है कि साधनारत होने से पहले साधक अपने जीवन की समस्त क्रियाओं को नियमित बनाए क्योंकि नियमितता मानव-जीवन की एक अपूर्व साधना है। इसके द्वारा ही प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती है। प्राचीन आचार्यों ने इसी बात को ध्यान में रखकर निम्नलिखित निर्देेश दिए हैं ः सूर्योदय से प्रायः दो घंटे पहले ब्रह्म मुहूर्त होता है। तंत्र साधक इस मुहूर्त में उठकर सर्वप्रथम अपने दोनों हाथों को हथेलियों की ओर से देखे।

कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।

करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम।।

अर्थात हाथों के अगले भाग में लक्ष्मी, मध्य भाग में सरस्वती और मूल में ब्रह्मा जी स्थित हैं। इसलिए प्रातःकाल उठते ही सर्वप्रथम अपने हाथों के दर्शन करें। इसके पश्चात निम्नवत प्रार्थना करके भूमि पर पांव रखें ः हे विष्णुपत्ने, हे समुद्र रूपी वस्त्रों को धारण करने वाली तथा पर्वत रूपी स्तनों से युक्त देवी, तुम्हें नमस्कार है। मेरे पैरों के नीचे स्पर्श को क्षमा करो। इसके बाद मुंह धोकर, कुल्ला करके श्री गणेश, लक्ष्मी, सूर्य, तुलसी, गौ, गुरु, माता-पिता और वृद्धजनों का स्मरण करके उन्हें नमस्कार करें। तदनंतर मल-मूत्र त्यागकर दातुन करें। फिर स्वच्छ-शीतल जल से स्नान करें। स्नान के जल में पुष्कर आदि तीर्थों का आवाहन निम्नवत श्लोक के उच्चारण द्वारा करते हुए भावना करें कि यह जल सभी तीर्थों के जल के समान पवित्र है ः

पुष्कराद्यानि तीर्थानि गंगाद्याः सरितस्तथा।

आगच्छंतु पवित्राणि स्नानकाले सदा मम।।

स्नान के अनंतर धुले हुए वस्त्र धारण करें। मुख्य रूप से पूजा एवं जप आदि के समय दो वस्त्र- अधोवस्त्र धोती और ऊर्ध्ववस्त्र अंगोछा (या दुपट्टा) धारण करने की शास्त्रों में आज्ञा है। यदि ये वस्त्र रेशमी अथवा ऊनी हों तो अति उत्तम है। यदि सूती वस्त्र हों तो सिले, फटे अथवा नील या मांड लगे हुए न हों। यदि नया वस्त्र हो तो उसे धोकर पहनना चाहिए। इस प्रक्रिया के बाद षोडशोपचार पूजा की विधि भी जान लेनी चाहिए जो निम्नलिखित है ः

आवाहन

इस क्रिया में सर्वप्रथम देवी या देवता का आवाहन किया जाता है अर्थात उसे आमंत्रित किया जाता है।


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