सेल्फी के घातक अंजाम

By: Oct 18th, 2019 12:05 am

हम इसे दुर्भाग्यपूर्ण हादसा माने या एहतियाती विसंगति कि एक और पर्यटक हिमाचल के दृश्यों में सेल्फी की वजह से बह गई। सेल्फी के घातक अंजाम की यह कहानी पार्वती नदी को अभिशप्त करती है, तो पर्यटन असुरक्षा के मातम में एक दर्दनाक चीख बन कर दर्ज हो जाती है। कुल्लू घाटी ऐसी घटनाओं की फेहरिस्त को वर्षों से बढ़ा रही है, लेकिन चेतावनी बोर्ड अक्षम साबित हो रहे हैं। ऐसे पर्यटन को समझे बिना सैलानी संख्या बढ़ाने की योजनाओं को खंगालना होगा, क्योंकि हमारी कहानी कुछ और है और हकीकत का दस्तूर कुछ और। बेशक सेल्फी पर्यटन अब पूरे उद्योग की ब्रांडिंग कर रहा है। हिमाचल के चप्पे की खबर लेता मोबाइल कैमरा अब इतना सक्षम है कि प्रदेश को पर्यटन प्रचार की जरूरत नहीं रहती, बल्कि इस तरह के व्यय को सुरक्षित सेल्फी प्वाइंट बनाने में इस्तेमाल करना होगा। हिमाचल आने वाले अधिकांश पर्यटक मोबाइल के जरिए यह घोषित करना चाहते हैं कि वे यहां हैं और इससे भी आगे बढ़कर यह भी साबित करते हैं कि उनके लिए फोटो ग्राफी जोखिम नहीं, बल्कि हिमाचल के अति दुर्गम स्थलों तक पहुंच कर वे खुद साक्ष्य बनाते हैं। लगातार सेल्फी खींचने के दौरान दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को हम पुलिस व्यवस्था या प्रशासनिक सुरक्षा के मत्थे मढ़ रहे हैं, जबकि इस ट्रेंड को समझते हुए खास प्रकार की अधोसंरचना विकसित करनी होगी। इसका संबंध हाई-वे पर्यटन, ग्रामीण पर्यटन व एडवेंचर टूरिज्म से सदा रहेगा। प्रदेश की पैराग्लाइडिंग एसोसिएशन इस मामले में पर्यटक को सुरक्षित वीडियोग्राफी का मौका देकर अपने पैकेज को मजबूत कर रही है, लेकिन न साहसिक खेल संस्थान और न ही पर्यटन विभाग या निगम बढ़ते सेल्फी क्रेज को दिशा दे पाए हैं। हमारा मानना है कि शीघ्र अतिशीघ्र पर्यटन नीति के तहत ऐसे इंतजाम को बढ़ावा मिलना चाहिए। इन्वेस्टमेंट मीट के जरिए अगर प्रमुख सड़कों के किनारे हाई-वे टूरिज्म की अधिकृत अनुमतियों के साथ मनोरंजन साधनों, ईको टूरिज्म, वाटर स्पोर्ट्स तथा सेल्फी प्वाइंट विकसित करने के लिए छूट मिले तो इस दिशा में ढांचागत विकास होगा। उदाहरण के लिए अगर हर बीस किलोमीटर के बाद हाई-वे टूरिज्म अधोसंरचना का निर्माण ‘वे-साइड अमेनिटीज’ के साथ-साथ प्राकृतिक नजारों की फिल्मांकन सुविधाओं से जोड़ा जाए, तो हर सेल्फी एक संदेश देगी। नदी तट या खड्डों के किनारे पर उतरते जश्न को व्यवस्थित नहीं किया, तो मणिकर्ण जैसी दुर्घटनाएं घटती रहेंगी। ऐसे में पर्यटक स्थलों या डेस्टिनेशन पर्यटन को प्रदेश के प्रवेश द्वारों से ही निर्देशित सुरक्षित तथा सुव्यवस्थित करने की दिशा में नए सिरे से विचार करना होगा। हिमाचल में युवा पर्यटकों की आमद से व्यावहरिक दिक्कतें बढ़ी हैं, अतः समाधानों की द्वष्टि से इन काफिलों को अनुशासित करने की चुनौती भी रहेगी। दूसरी ओर साहसिक गतिविधियों के बढ़ते दायरे तथा युवा सैलानिओं की रुचि को देखते हुए पर्यटन पुलिस की अवधारणा को जमीन पर उतारना होगा तथा यह बंदोबस्त भी करना होगा कि आनंद की अनुभूति घातक अंजाम तक न पहुंचे।

 


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