सौदा राष्ट्रीय सुरक्षा का…

By: Oct 16th, 2019 12:05 am

कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार में चिदंबरम के कैबिनेट साथी रहे, तत्कालीन नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल भी बेनकाब हुए हैं। वह भी तिहाड़ जेल जाएंगे अथवा नहीं, हम ऐसा कोई दावा नहीं कर सकते, लेकिन मुद्दा पूर्व केंद्रीय मंत्री और अंडरवर्ल्ड डॉन की आपसी सांठगांठ का है। मंत्री पद पर रहते हुए ही प्रफुल्ल पटेल ने एक कथित आतंकवादी के साथ सौदा किया। सौदे के दस्तावेज पर भी 2007 में मंत्री रहते हुए दस्तखत किए गए। आज ये दस्तावेजी कागजात सार्वजनिक हैं। प्रवर्तन निदेशालय ने प्रफुल्ल को समन भेजकर तलब किया है। इकबाल मेमन मिर्ची अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का बेहद करीबी माना जाता रहा है। दोनों 1993 मुंबई बम धमाकों के अभियुक्त हैं। उन सिलसिलेवार धमाकों में 250 से ज्यादा मासूमों की जिंदगी ‘पत्थर’ बन गई थी। क्या तब के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शरद पवार इन ‘आतंकियों’ को नहीं जानते? आज पवार एनसीपी अध्यक्ष हैं, केंद्र में कृषि और रक्षा मंत्री रह चुके हैं, प्रफुल्ल भी इसी पार्टी के कोटे से मनमोहन सरकार में मंत्री बने थे। क्या पवार-पटेल मिर्ची के भयावह सच को नहीं जानते? क्या कोई केंद्रीय मंत्री खनकती दौलत के लिए अंडरवर्ल्ड डॉन से भी तालमेल या सौदा कर सकता है? क्या वह सौदा करके राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं किया गया? चूंकि प्रफुल्ल पटेल यूपीए सरकार में मंत्री थे, लिहाजा तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी को उस सौदे की जानकारी नहीं थी? यदि उन्हें जानकारी थी, तो वे अभी तक खामोश क्यों रहे या देश को जवाब क्यों नहीं दिया? चूंकि 2007 में तत्कालीन मंत्री ने कथित आतंकी के साथ एक आपराधिक भगोड़े के साथ सौदा किया था, तो क्या परोक्ष रूप से उसे भारत सरकार का करार माना जाए? बहरहाल हम उसे राष्ट्रीय सुरक्षा का सौदा मानते हैं, क्योंकि उस डील को पाकिस्तान में छिपा बैठा दाऊद भी जानता होगा! संभवतः पैसा भी उसी का लगा होगा, जिसके आधार पर सौदा किया गया! इन सवालों और संभावनाओं के निष्कर्ष प्रवर्तन निदेशालय की जांच और कार्रवाई के बाद ही सामने आएंगे। फिलहाल प्रफुल्ल पटेल ने तमाम आरोपों को ‘बेबुनियाद’ करार देते हुए उनका खंडन किया है, लेकिन दस्तावेज और दस्तखत को लेकर वह खामोश हैं। उन्होंने सफाई दी है कि उनके परिवार ने 1963 में यह प्रापर्टी (सीजे हाउस) महाराजा ग्वालियर से खरीदी थी। 1978-2005 के दौरान बिल्डिंग का मामला अदालत में चलता रहा, क्योंकि बिल्डिंग के पिछवाड़े कुछ अवैध कब्जे कर लिए गए थे। उन कब्जों के पीछे हुमायूं मर्चेंट बताया जाता है। मर्चेंट और मिर्ची की मुलाकात लंदन में हुई और उसके बाद यह सौदा किया गया। मिर्ची की ओर से उसकी पत्नी हजरा मेमन मिर्ची और ‘मिलेनियम डिवेलपर्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी’ के आधार पर प्रफुल्ल ने हस्ताक्षर किए और ‘डी’ कंपनी के गुरगे को किराएदार बनाने का सौदा हो गया। उपरोक्त कंपनी के प्रमोटर प्रफुल्ल और उनकी पत्नी हैं। बहरहाल ईडी जांच कर रहा है। प्रफुल्ल से सवाल-जवाब के बाद भी कुछ निष्कर्ष सामने आएंगे, लेकिन प्रथमद्रष्ट्या यह मामला देशद्रोह का लगता है। कुछ ‘काली भेड़ें’ चिल्ला रही हैं कि क्या कथित अपराधी के परिवार को सौदा करने का अधिकार नहीं है। हमारा मकसद मिर्ची और पटेल की सांठ-गांठ को टटोलना है। मंत्री बनने के बाद भी घरेलू धंधा किया जा सकता है, यह और भी स्पष्ट होना चाहिए। गौरतलब यह है कि 1996 में गृह मंत्रालय की वोहरा कमेटी ने यह निष्कर्ष दिया था कि शरद पवार के दाऊद इब्राहिम से संबंध हैं। उस रपट का फॉलोअप क्या रहा? पवार आज भी ईडी की जांच तले हैं। फिलहाल उन्हें तलब नहीं किया गया है। ऐसे तमाम कांग्रेसी संस्कारों के नेताओं की आतंकियों, अपराधियों और अंडरवर्ल्ड वालों से सहानुभूति रही है, नतीजतन दाऊद आज भी भारत सरकार की पहुंच से बाहर है। ये समीकरण राष्ट्रीय सुरक्षा को कभी भी खतरे में डाल सकते हैं, लिहाजा ऐसे नेताओं को तो बिल्कुल भी छोड़ना नहीं चाहिए।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App