बिलासपुर के राजा अजमेर चंद (1712-1741 ई.) ने हिंदूर की सीमा पर एक किला अजमेरगढ़ बनवाया था। जब हिंदूर राजा तथा उसके पुत्र की पदम चंद ने हत्या कर दी, तो राज्य को चलाने हेतु हिंदूर की प्रजा ने कहलुरिया राजा देवी चंद पुत्र अजमेर चंद को हिंदूर आने का न्योता दिया जिसे राजा ने अस्वीकार कर दिया परंतु हिन्डूरिया वंशज गजे सिंह को सिंहासन पर बैठा कर राज्य में व्यवस्था स्थापित की। …
गतांक से आगे …
बिलासपुर के राजा अजमेर चंद (1712-1741 ई.) ने हिंदूर की सीमा पर एक किला अजमेरगढ़ बनवाया था। जब हिंदूर राजा तथा उसके पुत्र की पदम चंद ने हत्या कर दी तो राज्य को चलाने हेतु हिंदूर की प्रजा ने कहलुरिया राजा देवी चंद पुत्र अजमेर चंद को हिंदूर आने का न्योता दिया जिसे राजा ने अस्वीकार कर दिया परंतु हिन्डूरिया वंशज गजे सिंह को सिंहासन पर बैठा कर राज्य में व्यवस्था स्थापित की। इसके उपरांत हिंदूर का वंश गजे सिंह से प्रारंभ हुआ माना जाता है।
गजे सिंह (1761-1788 ई.)
इस राजा की गद्दी प्राप्ति तथा शासन व्यवस्था संबंधी अलग-अलग वर्णन मिलते हैं। एक वर्णन के अनुसार हरिपुर महलोग के भाई खड़क सिंह ने सभी गुटबंदियों में समझौता कराके और दान सिंह के पुत्र गजे सिंह को प्रभावित करके राज्य का कार्यभार संभालने के लिए राजी किया। परंतु कहलूर-बिलासपुर के इतिहास में उल्लेख मिलता है कि हिंदूर में मार-धाड़ के पश्चात वहां के लोग कहलूर के राजा देवी चंद (1741-78) के पास गए और हिंदूर का राज्य संभालने के लिए अनुरोध किया। परंतु राजा देवी चंद ने उनके इस अनुरोध को मानने से इनकार कर दिया। उसने वहां के राज परिवार के एक व्यक्ति गजे सिंह हिन्डूरिया को हिंदूर की राजगद्दी पर बैठाया। इस कार्य के लिए कहलूर के राजा देवी चंद के बघाट के तात्कालिक राणा रघुनाथपाल से सहायता की। बघाट के इतिहास के अनुसार उसके राणा ने पदम चंद को जरजोहरु के पास लड़ाई में पराजित किया। यदि गजे सिंह चाहता तो उस समय वह अपना नाम गजे चंद रख लेता, लेकिन उसने नाम के साथ ‘चंद’ न लगाकर सिंह ही रहने दिया। तभी से लेकर अब तक वहां के राजाओं के नाम में ‘सिंह’ शब्द लगता है। गजब सिंह के गद्दी पर बैठने के पश्चात कई एक हकदार खड़े हो गए। उन्हें कहलूर-बिलासपुर के कुछ लोगों से भी सहयोग मिला और झगड़े पैदा करने लगे। हिंदूर पर दूसरी ओर से भी आक्रमण होने लगे। गांव ‘बारिया’ का क्षेत्र राज्य के हाथ से निकल गया। चंबागढ़ मलोण और रामगढ़ के किले हाथ से निकल गए। धर्मपुर का परगना वहां के वजीर अगडू ने हथिया लिया और स्वयं उस पर राज करने लगा। गलरवाला का परगना मतेलोह के कनैतों ने आनंदपुर के सीढि़यों के साथ मिलकर सिखों को दे डाला। गजे सिंह के पुत्र राम सरन सिंह के पास केवल किला पलासी, नालागढ़ और आवान कोट रह गए थे। गजे सिंह के पुत्र राम सरन सिंह का विवाह पठानकोट से हुआ था। विवाह के पश्चात खर्च बढ़ गया जिसे आय न होने के कारण चलाना कठिन हो गया। अतः राजा ने अपने पुत्र राम सरन सिंह को कहला भेजा कि वह अपना काम स्वयं चलाए। यह बात उनके मन को लग गई। वह सैनिकों को जोड़कर घर से निकल पड़ा। – क्रमशः