ऋषि च्यवन हमारे ऋषि-मुनि, भागः 13

By: Nov 9th, 2019 12:15 am

महर्षि च्यवन ने टीला हटाकर बाहर आते हुए कहा, मैं वृद्ध हूं। मुझे सहारे की जरूरत है। इन राजकुमारी का मेरे साथ विवाह कर, इसे मेरे साथ रहने की अनुमति दे दो। सब ठीक हो जाएगा। इसे सुनकर राजा, रानी तथा राजकुमारी ने सहर्ष स्वीकृति दे दी। कुछ दिनों बाद इस दंपत्ति के पास अश्विनकुमार(देवताओं के वैद्य आए) तथा वार्तालाप के बाद उन्होंने च्यवन का बुढ़ापा मिटाकर उन्हें यौवन प्रदान किया…

पुलोमा के पति थे भृगु। जब पलोमा गर्भवती थी, तो एक सूकर उन्हें आश्रम से उठाकर ले गया। यह सूकर वास्तव में प्रलोमा नाम का राक्षस था। भेष बदल रखा था। रोती, चीखती, चिल्लाती ऋषि पत्नी पुलोमा का भागने, छुड़ाने का प्रयत्न करते समय ही गर्भपात हो गया। जैसे ही उनका गर्भपात च्युत हुआ, तभी एक तेजस्वी बालक पैदा हो गया। नाम पड़ा च्यवन। जैसे ही प्रलोमा ऋषि ने इस नवजात शिशु को देखा, वह वहीं तत्काल भस्म होकर राख का ढेर बन गया। इस बालक ने बड़े होते-होते इतना जप-तप किया कि एक बार लंबी तपस्या के समय उनके पूरे शरीर पर दीमकों की बांबी जम गई। टीला सा बन गया और वह अंदर दबे पड़े रहे। हां, पूरा शरीर तो टीले में दब गया, मगर दो आंखें साफ जनर आती रहीं। राहगीर निकल जाते किसी ने ध्यान नहीं दिया।

जब राजकुमारी ने आंखों मंे तेज कांटा चुभो दिया…

इसी वन में एक महराजा शर्याति ने सेना सहित डेरा डाला। परिवार भी साथ था। बेटी थी अति सुंदर। नाम था सुकन्या, वह अपनी सखियों के साथ घूमती हुई उसी टीले पर जा बैठी, जिसमें तपस्वी च्यवन दबे पड़े थे। जब कुछ अंधेरा हुआ, तो दोनों आंखें चमक रही थीं। राजकुमारी ने इन्हें जुगनू समझा, शरारत सूझी। एक तेज कांटा लेकर दोनों आंखों में चुभो दिया। देखते ही देखते वहां से रक्त की धाराएं बहने लगीं, लड़कियां डर गई। घबराकर भाग खड़ी हुईं, जा पहुंची अपने तंबू में, डेरे में जा दुबकीं। मगर किसी को कुछ नहीं बताया।

कहर बरसने लगा डेरे में

कुछ ही देर में राजा उनके परिवार, सैनिक, घोड़ों आदि के मल-मूत्र बंद होने लगे। पीड़ा के साथ सभी करहाने लगे। राजा ने सबसे पूछा इस वन में महर्षि च्यवन का अधिकार है। उनका मंदिर भी हो सकता है। किसी ने उन महर्षि च्यवन के प्रति कोई गुस्ताखी तो नहीं की, उनका मन से या कर्म से अनिष्ट तो नहीं सोचा। तब राजकुमारी ने आपबीती सुनाई। जो हुआ अनजाने में हुआ यह भी कहा, महाराज सब समझ गए। उन्होंेने पूजा की सामग्री, पुरोहित, सेनाध्यक्ष, सेनापति सभी को साथ लिया। आश्रम के उस टीले के सामने जाकर उनकी पूजा की।  क्षमा यांचना की, अपराध के लिए माफी भी मांगी।

च्यवन का हुआ सुकन्या से विवाह

महर्षि च्यवन ने टीला हटाकर बाहर आते हुए कहा, मैं वृद्ध हूं। मुझे सहारे की जरूरत है। इन राजकुमारी का मेरे साथ विवाह कर, इसे मेरे साथ रहने की अनुमति दे दो। सब ठीक हो जाएगा। इसे सुनकर राजा, रानी तथा राजकुमारी ने सहर्ष स्वीकृति दे दी। कुछ दिनों बाद इस दंपति के पास अश्विनकुमार(देवताओं के वैद्य आए) तथा वार्तालाप के बाद उन्होंने च्यवन का बुढ़ापा मिटाकर उन्हें यौवन प्रदान किया। बदले में अश्विनीकुमार यज्ञ का भाग पाने के अधिकारी हो गए। साथ ही उन्होंने आश्रम में रहकर च्यवन का रूप धारण कर परीक्षा भी ली। मगर सुकन्या ने प्रार्थना की आप तीनों एक से लग रहे हैं। मुझे मेरा पति चाहिए। कृपा कीजिए। अश्विनीकुमार तुरंत अदृश्य हो गए। च्यवन तथा सुकन्या आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे।

                           – सुदर्शन भाटिया 


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