ओफ्आ! ये डाटा भी न…

By: Nov 6th, 2019 12:05 am

अशोक गौतम

साहित्यकार

अब गोलो की कुत्ता साहब का था तो सवाल ही नहीं उठता था कि कोई उनके घर उनके कुत्ते के दुःख में डूबे साहब को सांत्वना देने न जाए। ….और मैं चेहरे पर साहब के कुत्ते के मरने का दुःख बाबा की ऑर्गेनिक भैंस के गोबर सा मल उनके फ्लैट पर जा पहुंचा दुम हिलाता हालांकि उन्होंने मेरी दुम को कभी अहमियत नहीं दी। पर फिर भी साहब! मातहत हूं। अपना अपने साहब के प्रति मूक कर्त्तव्य निभाता रहूंगा, जब तक नौकरी में हूं। वहां पहुंचा तो उनके खास-खास उनके हरामी दिवंगत कुत्ते की फोटो को गंगाजल से नहला रहे थे। नहलाने के बाद उसकी पूंछ के नीचे वाल जगह पर चंदन का लेप लगाने को मिक्सी में चंदन का लेप बना रहे थे। पूरा फ्लैट कुत्ता शोक में डूबा हुआ। पर वे कहीं नहीं। जब साहब कहीं नहीं दिखे तो मैंने उनकी बीवी से रोते रोते पूछा, ‘हे उनकी सरकार! हमारे सरकार कहां हैं?’ ‘अंदर अंधेरे में ! पता नहीं वहां सारा दिन क्या करते रहते हैं? यह भी नहीं सोचते कि अभी उनकी बीवी तो जिंदा है, उनके बताए कमरे की ओर गया तो वे जीरो वाट के बल्ब की रोशनी में हाथ में मोबाइल लिए कुछ करते हुए। पहले तो मैंने सोचा कि वे किसी ऐप के माध्यम से कुत्ते की आत्मा को ट्रेक कर रहे होंगे कि वह अब कहां पहुंची, अब कहां पहुंची। पर जब नजदीक जाकर देखा तो वे अपने मोबाइल पर नेट चला रहे थे। पता नहीं उस पर क्या देख रहे थे? देख रहे होंगे वही जो सारा दिन आफिस के नेट पर देखते रहते हैं। अपने साहब जी सरकारी पैसे और नेट को खर्च करने के मामले में बड़े दिलेर हैं। हर दिन का डाटा उसी दिन वे खत्म करके ही रात को बारह बजे के बाद सोते हैं। नींद जाए पर डाटा न जाए ! जब-जब मैं उनसे उनके गोलो की कुत्ते के शोक के बारे में बात करना चाहूं, पर वे मेरी तरफ  देखें भी नहीं। रात के आठ बजे…. मैं उनके आगे हाथ जोड़े। …..ज्यों ही रात के बारह बजे तो उन्होंने कुर्सी पर पासा पलट चैन की सांस ली, ‘लो यार! ये काम भी हो गया! आज का डाटा खत्म हुआ। जब तक साला रोज का डाटा रोज खत्म न हो, खोती नींद ही नहीं आती।’ ‘अब तो खत्म हो गया न साहब जी’ ‘हां यार! ये डाटा भी न!’ आंखों पर चश्मा लग गया पर ….यार! आज की तारीख में सबसे मुश्किल कोई काम है तो बस डेली का डेली डाटा खत्म करना। कहो कैसे आए….. ‘साहब जी ! आपके जिगर के टुकड़े के स्वर्ग सिधारने पर….. सोचा, आपसे उसका सारा दुःख अपने साथ ले जाऊं तो…. ‘हां यार! जो आया है, वह एक दिन तो जाएगा ही। क्या स्वदेशी तो क्या विदेशी! क्या कुत्ता तो क्या कुत्ते का मालिक! अच्छा तो यह बताओ, तुम्हारे पास कौन सा नेट प्लान है? क्या सारा डाटा रोज के रोज कंज्यूम कर लेते हो या…. देखो ए खरीदा डाटा रोज के रोज कंज्यूम हो जाना चाहिए। ऐसा होने पर इस बात का कतई गम नहीं होता कि आज का डाटा बेकार हो गया। आटा दूसरे दिन भी चल पड़ता है, पर बचा डाटा रात के बारह बजे के बाद मर जाता है। हे दुमजीवी! अब आफिस आने पर तुम्हारी सांत्वना लेते हैं प्लीज!’ ‘पर साहब वहां भी तो आप….’ ‘देखो शर्मा! कितनी बार कहा, चोरी छिपे मेरी हरकतों को नोट करना छोड़ दो वर्ना किसी दिन ऐसी करूंगा कि…..


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