कोल डैम विस्थापितों को कब मिलेंगी सुविधाएं

जुखाला – प्रदेश के चार जिलों की सीमाओं पर लगी 800 मेगावाट की कोल डैम बिजली परियोजना से भले ही देश को लाभ पहुंचा हो, लेकिन इस बांध के लिए अपनी सोना उगलती जमीनें कुर्बान करने वाले हजारों विस्थापितों के लिए आज भी मूलभूत सुविधाएं मुहैया करवा पाने में सरकारें नाकाम रही हैं। हालात यह है कि परियोजना लगने के 16 वर्ष बीतने के बाद भी विस्थापितों के गांव तक जहां पक्की सड़क नहीं बन पाई है, वहीं इनके लिए कोई भी सरकारी बस की सुविधा भी सरकार नहीं दे पाई है। जिस कारण आज भी क्षेत्र के हजारों विस्थापित ग्रामीण महिलाएं, बच्चे, बूढ़े लोग समस्या से जूझ रहे हैं। 800 मेगावाट क्षमता वाले कोलडैम परियोजना की आधारशिला तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई द्वारा पांच जून  2013 को रखी गई थी, जिसके बाद इसकी देश की नवरतन कंपनी एनटीपीसी द्वारा क्षेत्र में निर्माण कार्य शुरू किया गया। कोलडैम बनने के दौरान बिलासपुर जिला का बाहौट कसोल गांव सबसे ज्यादा विस्थापन की चपेट में आया, जिसमें हजारों लोगों की सोना उगलती जमीनें इस प्रोजेक्ट की भेंट चढ़ी। उस दौरान भोले भाले लोगों को हर तरह की सुविधाएं प्रदान करने के कई तरह के वादे किए गए लेकिन आज 16 वर्ष बीतने के बाद भी विस्थापित गांव अपनी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं। करीब 1200 की आबादी वाले विस्थापित गांव कसोल से लेकर बाहौट गांव तक बनाई गई महज एक किलोमीटर सड़क आज भी वैसी ही कच्ची व टूटी फूटी है, जबकि इसी गांव के लिए सरकारी बस सुविधा भी नाममात्र ही है। गांव में कोई भी सार्वजनिक शौचालय तक नहीं है। उधर, 71 वर्षीय अनंत राम का कहना है कि गांव के सभी बुजुर्गों को टूटी हुई सड़क पर चलने में काफी दिक्कत आती है। विस्थापित होने के बावजूद हमें सड़क तक मुहैया नहीं है। सरकार को तुरंत विस्थापित गांव की सुध लेनी चाहिए।