क्या शिवसेना की घर-वापसी?

By: Nov 15th, 2019 12:05 am

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत एके एंटनी, वेणुगोपाल, मल्लिकार्जुन खड़गे और मुख्यमंत्रियों में कमलनाथ, अशोक गहलोत आदि नहीं चाहते कि महाराष्ट्र में शिवसेना नेतृत्व की सरकार में शामिल हों अथवा किसी भी तरह का गठबंधन करें। सीधी दलील है कि ऐसा करने से अल्पसंख्यक वोट बैंक नाराज होकर खिसक सकता है। ये सभी नेता कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य हैं, लिहाजा उनकी सोच और दलील बेहद महत्त्वपूर्ण है। बेशक कांग्रेस और एनसीपी ने सरकार की संभावना और साझा कार्यक्रम तैयार करने को टीम बनाई है। उसे एक आवरण माना जा सकता है, लेकिन सरकार बनाने की कोई ठोस कवायद सामने नहीं आई है। सवाल यह है कि क्या इन बड़े नेताओं के रुख की अनदेखी कर शिवसेना से समझौता किया जा सकता है? सवाल यह भी है कि सरकार में शामिल होने के मद्देनजर कांग्रेस में अनिर्णय की स्थिति क्यों है? कांग्रेस-एनसीपी के इस रुख को लेकर शिव सैनिकों की प्रतिक्रियाएं भी सार्वजनिक होने लगी हैं। कुछ टीवी चैनलों पर शिव सैनिकों को यह कहते हुए सुना है कि कांग्रेस-एनसीपी ऐसा करके सरकार बनाने की प्रक्रिया को टाल रही हैं। इन नेताओं का साफ  कहना था कि भाजपा और शिवसेना एक ही परिवार की सदस्य हैं। वर्षों से एक साथ रही हैं। आपस में लड़ेंगे-भिड़ेंगे, लेकिन रहना साथ ही है, लिहाजा शिवसेना की फिर घर-वापसी संभव है। शिवसेना, अंततः,भाजपा की ओर जा सकती है। हमारी जो भी मांगें होंगी, उन पर एक बार फिर भाजपा के साथ विमर्श किया जा सकता है। बेशक शिवसेना में ऐसे नेता निर्णायक की भूमिका में नहीं होंगे, लेकिन शिव सैनिकों का मूड अब स्पष्ट होने लगा है। क्या उद्धव ठाकरे लंबे समय तक इसे नजरअंदाज कर सकते हैं? दरअसल महाराष्ट्र में गली-गली  में भाजपा और शिवसेना के काडर साथ-साथ सक्रिय रहे हैं। दोनों हिंदूवादी हैं और अयोध्या में विवादित ढांचा गिराने पर उनके खिलाफ  कांग्रेस सरकारों के दौरान आपराधिक केस बनाए गए थे। कई मामलों में अब भी वे अदालतों के चक्कर काट रहे हैं। गली-मुहल्ले के इन शिव सैनिकों को खुद बाल ठाकरे ने गढ़ा था। ये शिवसैनिक किसी भी तरह का राजनीतिक समझौता स्वीकार करते हैं, तो बुनियादी जनाधार खिसक सकता है और भाजपा की तरफ  जा सकता है। बेशक मुख्यमंत्री पद उद्धव ठाकरे को प्रिय होगा, लेकिन गली-गली का यह काडर कांग्रेस-एनसीपी विरोधी मानस का है। एक मुख्यमंत्री पद के लिए इतनी कुर्बानी संभव नहीं है। फिर सवाल यह भी है कि क्या शिवसेना कांग्रेस-एनसीपी के अनिश्चित समर्थन के लिए राम मंदिर और वीर सावरकर सरीखे मुद्दे त्याग सकती है। शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे कहा करते थे कि यदि शिव सैनिकों पर बाबरी मस्जिद ढहाने के आरोप हैं, तो मुझे उन पर गर्व है।’ एक तरफ अयोध्या में राम मंदिर बनेगा और दूसरी तरफ  सरकार के लिए शिवसेना हिंदुत्व त्याग रही होगी, तो ठाकरे की आत्मा को कैसा लगेगा? बहरहाल शिवसेना को घर-वापसी करनी है, तो अब पहल उद्धव ठाकरे को करनी होगी। लेकिन दूसरी तरफ भाजपा अध्यक्ष एवं गृह मंत्री अमित शाह ने एक साक्षात्कार में साफ  किया है कि शिवसेना की मांगें ऐसी थीं,जिन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता था। चुनाव के दौरान मैंने और प्रधानमंत्री मोदी ने कई बार स्पष्ट किया था कि यदि एनडीए को बहुमत मिला, तो फड़णवीस ही मुख्यमंत्री होंगे। शिवसेना ने भी फड़णवीस के नाम पर वोट लिए हैं। यदि अब विपक्ष के पास नंबर हैं, तो राज्यपाल के पास जाएं और सरकार बनाने का दावा पेश करें। बहरहाल महाराष्ट्र में स्थितियां रोचक हो गई हैं। सतही तौर पर अंकगणित शिवसेना,एनसीपी, कांग्रेस के पक्ष में लगता है,तो फिर सरकार बनाने की पहल क्यों नहीं की जाती? जनता को लंबे समय तक सरकार के बिना नहीं रखा जा सकता। लोकतंत्र और चुनाव के मायने यही हैं कि अंततः सरकार बनाई जाए।


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