चाहे, गलतियां हों पर कुछ न कुछ जरूर करें

By: Nov 20th, 2019 12:21 am

मेरा भविष्‍य मेरे साथ-13

एसएसबी इंटरव्यू में पास एवं भारतीय सेना में अधिकारी ट्रेनिंग के लिए सिलेक्शन का कॉल लेटर मिलने पर मैंने इंडियन मिलिट्री अकादमी यानी आई एमए देहरादून में रिपोर्ट किया। बर्फ  के पहाड़ों से घिरी इस अकादमी में देश के हर कोने से आए युवा अधिकारी बनने की ट्रेनिंग लेते हैं। इंडियन मिलिट्री एकेडमी में अधिकारी ट्रेनिंग के दौरान एक लयवद्ध तरीके से सर्वांगीण विकास होता है, जिसमें शारीरिक व मानसिक तौर पर सुदृढ़ एवं सक्षम बनाने के साथ-साथ रहन सहन तथा व्यवहार के बारे में भी सिखाया जाता है ।

 कैडेट जिस कमरे में रहता है उस कमरे का रख -रखाव जैसे बेड लगाना, एड्रेसिंग टेबल व अलमारी के हर सामान तथा स्टडी टेबल में पेन्सिल, कापी, किताब  आदि  को सलीके से रखना। कमरे से बाहर, यहां तक कि बरामदे में भी प्रॉपर गौउन में आना। ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर के दौरान अच्छी तरह ड्रेस अप होकर मैस में टेबल मैनर्स जिसमें भोजन के विभिन्न हिस्सों या कोर्स के बारे में जानना और उसके अनुसार कटलरी का इस्तेमाल करना,  खाना खाते वक्त टेबल पर बैठे सीनियर और जूनियर के मुताबिक व्यवहार आदि। दूसरा शारीरिक या फिजिकल , जंगल में सर्वाइवल अभ्यास, नक्शा पढ़ना और उसके हिसाब से मार्च करना, विभिन्न किस्म के हथियारों के फायर व मैंटनैस के बारे में  जानना तथा युद्ध तकनीक आदि समझना। ट्रेनिंग का तीसरा महत्त्वपूर्ण हिस्सा था हर शाम को स्टडी पीरियड के बाद सभागार में इकट्ठा होकर दो घंटे के लिए सारे जूनियर एवं सीनियर कैडेट्स का अपनी बारी के अनुसार तीन भाषाओं, जिसमें हिंदी व अंग्रेजी कंपलसरी तथा इच्छा अनुसार तीसरी भाषा में किसी भी टॉपिक पर कम से कम 5 से 10 मिनट बात करना, जैसे-जैसे कैडेट सीनियर होते जाते हैं, टॉपिक भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण व रूचीपूर्ण होता जाता है। धीर-धीरे कैडेट अपना समय लाइब्रेरी में युद्ध, मनोरंजन, फिक्शन, टरू स्टोरी, एतिहासिक, कल्चलरल व अन्य साहित्य की किताबों को पढ़ने में बिताना शुरू कर देते हैं। इसके अलावा सप्ताह में दो बार शाम को 3 घंटे के लिए हर कैडेट अपनी इच्छा से चुने हुए क्लब में समय व्यतीत करता है, जिसमें गाना बजाना, पेंटिंग, फायरिंग, घुड़सवारी, तलवारबाजी, पर्वतारोहण, गोल्फ, पोलो एवं कराटे इत्यादि हर तरह के ऑप्शन होते थे। मिड टर्म ब्रेक के दौरान देश की अलग-अलग संस्थाओं और स्थानों पर जाकर वहां के बारे में जानकारी हासिल करना होता था। मेरे अलावा अन्य हिमाचली युवा जिन्होंने अपना बचपन पहाड़ी क्षेत्र में बिताया था उन्हें शारीरिक या फिजिकल तथा दूसरी चीजें सीखने में कोई मुश्किल नहीं हुई, पर जो थोड़ी दिक्कत थी, वह थी बात करने का लहजा। बात करते वक्त ज्यादातर उत्तर भारतीय भारी और ऊंची आवाज में हर बात पर दबाव और प्रेशर बना कर बोलते हैं, जिस कारण शब्द का उच्चारण व ध्वनि बदल जाती है और उसकी वजह से अन्य युवाओं के लिए हंसी का पात्र बन जाते हैं। ट्रेनिंग के दौरान, इसी कारण डिबेट या डिक्लेमेशन में हिस्सा लेते वक्त मुझे टोन की वजह से रिजेक्ट कर दिया जाता था ।

एक बार डिवेट के लिए कैडेट सलैक्शन के दौरान टापिक का अच्छा ज्ञान होने के बावजूद सिर्फ  टोन की वजह से मैंने हिस्सा लेने से मना कर दिया। तब मुझे अंग्रेजी के प्रोफेसर ने बताया कि जिंदगी में त्रुटिरहित कुछ भी न करने से अच्छा है कुछ त्रुटी पूर्ण ही करना। उन्होंने मुझे टोन व भाषा को एक सभ्य, सिविलाइज्ड और सॉफ्ट तरीके से व्यक्त करने के लिए जीव्हा की एक्सरसाइज करने का तरीका बताया। जिसके लिए मैं दिन में दो घंटे के लिए शीशे के सामने मुंह में छोटे पत्थर और पानी लेकर जोर-जोर से न्यूज पेपर को पढ़ता था। शुरू में तो ये मुश्किल था पर थोड़े अभ्यास के बाद, आवाज और भाषा में समता और सॉफ्टनैस आ गई। उसके बाद मैंने डिवेट, डेवलामेशन के अलावा हर तरह के कम्पीटीशन में हिस्सा लेना शुरू कर दिया, मुझे एक बात समझ आ गई थी कि कोई चीज करने के लिए पर फैक्शन या त्रुटिरहित होने तक का इंतजार करने से अच्छा है कि थोड़ी बहुत गलती के साथ करना शुरू कर देना।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App