जिंदगी में कभी किसी को कम न आंकें

By: Nov 27th, 2019 12:22 am

मेरा भविष्‍य मेरे साथ-14

इंडियन मिलिट्री एकेडमी में सभी ट्रेनिंग करने वालों को जेंटलमैन कैडेट या जीसी कहा जाता है। यहां न केवल शारीरिक अभ्यास बल्कि मानसिक विकास भी होता है, कठिन ट्रेनिंग में मन लगाए रखने के लिए हास्य विनोद की बातें चलती रहती हैं, ट्रेनिंग के दौरान पेट दर्द का बहाना  बनाते अगर कोई कैडेट अंग्रेजी में उस्ताद को कहे कि उस्ताद आज ‘स्टमकैक’ है तो जवाब मिलना कि स्टमक  एक हों या दो जब कह दिया कि जीसी रोलिंग करेगा तो करेगा, ड्रिल मैदान में इन फ्रंट आफ बिहाइंड चेटवुड को बिना अंग्रेजी ग्रामर में ध्यान दिए अकसर सुना जाता है। आईएम, ट्रेनिंग का एक बहुत ही अहम हिस्सा जंगल कैंप व रूट मार्च है। एक स्तर जो छह महीने का होता है, उसके अंत में जंगल ट्रेनिंग जिसमें पूरी की गई ट्रेनिंग का प्रैक्टिकल के रूप में निचोड़ होता है, जंगल कैंप को रूट मार्च के साथ खत्म किया जाता है और रूट मार्च की मुश्किल एवं दूरी कैडेट की सीनियोरिटी के साथ बढ़ती जाती है। आखिरी दो टर्म के जंगल कैंप व रूट मार्च बहुत ही महत्त्वपूर्ण होते हैं और इनमें शामिल होना हर किसी के लिए मैंडेटरी होता है। इसमें सीखी बातें न केवल अफसर बनने के बाद बल्कि सिविल जिंदगी में बहुत काम आती हैं। आखिरी रूट मार्च एक कंपीटीशन के तौर पर होता है जिसमें प्रथम आने वाले को इनाम के तौर पर ट्रॉफी के साथ-साथ कुछ प्वाइंट्स दिए जाते हैं, जो कैडेट की मैरिट में सुधार लाते हैं और उसी आधार पर मनपसंद कोर या रेजिमेंट मिलने के आसार बढ़ते हैं। रूट मार्च को आठ से दस कैडट के समूह या सिंडीकेट में किया जाता है,  हर सिंडीकेट में उनकी रक्षा के लिए जरूरी हथियार, बारूद , पीने के लिए पानी तथा सर्वाइवल के लिए बेयर मिनिमम चीजें देकर छोड़ा जाता है, आखिरी रूट मार्च करीब साठ किलोमीटर का होता है, जो एक बार रास्ता भटकने या भूलने से दस किलोमीटर बढ़ जाता है, इस दौरान कैडेट्स को जंगल, नदी, पहाड़, खेत, नालों व मुश्किल दर्रों से  गुजरना होता है। स्टार्टिंग प्वाइंट से फिनिशिंग प्वाइंट यानी आईएम के बीच में चार से पांच रिपोर्टिंग प्वाइंट बनाए जाते हैं, जिससे हर सिंडीकेट की पोजीशन का पता चलता रहे। हिमाचली कैडेट जिन्हें  जंगल, नदी, नालों व दर्रों का  बचपन से ही अच्छा अनुभव होता है, रूट मार्च के दौरान सिंडीकेट के लिए सबसे ज्यादा डिमांड में रहते हैं। इस अभ्यास का चयन पूर्णिमा और अमावस के बीच के दिनों में किया जाता है ताकि  कैडेट्स  चांदनी में कुछ देर तारों की मदद से चलने के बाद अंधेरी रात में नदी व पहाडि़यों तथा नालों की लय से रास्ता पढ़ने एवं दिशा का अंदाजा लगाने का अनुभव ले सकें। हमारे फाइनल टर्म के रूट मार्च से ठीक पहले हम में से कुछ लड़कों को सिंडीकेट लीडर बना कर हमें अपनी पसंद के आठ लड़के चुनने को कहा गया। हर लीडर ने बढि़या  गु्रप बनाने के उद्देश्य से इंटेलिजेंट जो मैप पढ़ना जानते हों तथा ताकतवर थे, जो रात को सामान कैरी करने में सक्षम हों, उन्हीं कैडेट को चुना। कुछ कमजोर एवं पढ़ने में ज्यादा ध्यान न देकर हंसी मजाक करने वाले कैडेट्स को किसी ने नहीं चुना। तब उस्ताद ने सारे सिंडीकेट में दो इंटेलीजेंट, दो बलशाली, दो कमजोर एवं दो मजाकिया कैडेट्स का ग्रुप बनाते हुए कहा कि एक बात याद रखना कि जिंदगी में कभी किसी को कम मत आंकना, सूई और तलवार दोनों की अपनी महत्ता है। रूट मार्च के दौरान उस्ताद की बात प्रमाणित हुई और हमें यह सीखने को मिला कि कभी भी अकेला कैडेट अपने बल पर इस रूट मार्च को कंप्लीट नहीं कर सकता। रास्ते में दर्रे से गुजरने के लिए पहाड़ी की चोटी पर पेड़ से रस्सी बांधने का काम सिंडीकेट का सबसे कमजोर और हल्का कैडेट जिसे ताकतवर अपने कंधों पर उठाता था पहले जाता था, मैप देखना और उस तरह से जमीन को पढ़ना सबसे इंटेलिजेंट कैडेट करता था और चलते-चलते जब ऊब जाते तो कोई न कोई मजाकिया या फिर गाना गाने वाला कैडेट हौसला बढ़ाता था। करीब 15 से 20 घंटे का रूट मार्च जिसमें अमूमन हर सिंडीकेट 60 से 70 किलोमीटर का रास्ता, रात और दिन में तय करता है वह यही सिखाता है, कि कोई किसी से कमजोर नहीं , हर आदमी की अपनी महत्ता है, जिंदगी में बड़े लक्ष्य अकेले नहीं बल्कि मिलकर हासिल होते हैं।


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