तिब्बत में छिपा है तंत्र ज्ञान

By: Nov 9th, 2019 12:20 am

डोलमा राह में बतलाता चल रहा था। ‘उनका स्पष्ट आदेश है। मुगु की तेरहवीं तिथि तक हम सब गोम्फा छोड़कर सामभू चले जाएं।’ मुगु तिब्बतियों के एक माह का नाम है। ‘अब मुगु में केवल दो माह, दस दिन शेष हैं। आप आ गए, बहुत है, वरना फिर न मिल पाते।’ ‘सामभू कहां है?’ ‘भोतान (भूटान) और सक्कम (सिक्किम) के बीच में हमारा हीनी (हीनयान) का गोम्फा है।’ ‘क्यों जाने को कहा है?’ मैंने प्रश्न किया था…

-गतांक से आगे..

तीन-चार माह के लिए ल्हासा और पालपा का संबंध टूट जाता है। ‘हमारे गुरु तो तब भी पालपा जाते थे।’ डोलमा बोला। ‘कैसे? नौका से?’ डोलमा हंसकर बोला- ‘नहीं। वह पानी पर चलकर जाया करते थे।’ ‘पानी पर चलते थे?’ ‘हां, उन्हें विधि का ज्ञान था। उसका प्रयोग करते थे।’ ‘गुरु तो अब जीवित नहीं हैं ना?’ ‘हां। शरीर त्याग दिया है, पर सूक्ष्म रूप से अभी भी वे हम सबके साथ हैं। हमारे गोम्फा में उनकी उपस्थिति का आभास हम सबको बराबर होता है। श्रोष्ठि नोमग्याल का संकट और उलझन के समय वे हमारा मार्गदर्शन करते हैं।’ डोलमा राह में बतलाता चल रहा था। ‘उनका स्पष्ट आदेश है। मुगु की तेरहवीं तिथि तक हम सब गोम्फा छोड़कर सामभू चले जाएं।’ मुगु तिब्बतियों के एक माह का नाम है। ‘अब मुगु में केवल दो माह, दस दिन शेष हैं। आप आ गए, बहुत है, वरना फिर न मिल पाते।’ ‘सामभू कहां है?’ ‘भोतान (भूटान) और सक्कम (सिक्किम) के बीच में हमारा हीनी (हीनयान) का गोम्फा है।’ ‘क्यों जाने को कहा है?’ मैंने प्रश्न किया था। ‘कुछ फूमपाम (उपद्रव) होने वाला है।’ ‘रोक नहीं सकते क्या?’ ‘नहीं, किरया (कर्म) का फल भोगना पड़ता है।’ डोलमा का स्वर गंभीर था- ‘यह पहले से ही निर्धारित था। कुछ खिल (पाप) कर गए हैं, बड़े लामा। उसका फल आएगा। सबको भोगना पड़ेगा। पीले लोग (चीनी) आएंगे यहां।’ डोलमा का स्वर भारी हो गया। ‘फिर तो वापस आओगे?’ ‘क्या पता।’ फिर वे कुछ नहीं बोले। ल्हासा आ गया। मुझे तानपे (अतिथि गृह) में ठहरा दिया गया। वहीं सूर्योदय-सूर्यास्त देखा। सब स्वप्न-सा लगा। निर्धारित समय पर डोलमा आ गया। उसके साथ मैं चैरप (गोम्फा का बाहरी भाग) के लिए चल पड़ा। सर्पाकार पहाडि़यां पार कर आबादी से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर चट्टानों के बीच चैत्य बना था। चैत्य से सटा गोम्फा था। मुझे चैत्य में ठहरा दिया गया। वातावरण में जंगली फूलों की महक थी। चैत्य हवादार आवास था। वह शिष्यों और सेवकों के लिए बनाया गया था। बाहर के दो कक्ष अतिथियों के लिए थे। हमें एक कक्ष में ठहरा दिया गया। नोमग्याल किसी विशेष अनुष्ठान में व्यस्त थे। अतएव उस दिन मिलना न हो सका। सूचना उनको मिल गई थी। इसी कारण डोलमा को भेज दिया था। ‘आपका खाना…।’ अचानक महीन नारी स्वर आया। मैंने चौंककर देखा। सामने पंजों तक लटका एक लंबा चोगा पहिने बर्फ-सी धवल-नवल युवती खड़ी थी। उसके हाथ में काष्ठ का एक अजब-सा थाल था। बीस बरस से ज्यादा की न थी। चेहरा चपटा होने पर भी आकर्षक गोलाई लिए था। अधरों पर मुस्कान थिरक रही थी और कपोल एकदम गुलाबी थे। लंबा चोगा डालने के बावजूद वक्ष छिपाए न छिप रहे थे। वे पर्वत शिखर के समान उन्नत थे।                                                         

 


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