दिव्य आत्मास्वरूप श्री सत्य साई जी

By: Nov 16th, 2019 12:21 am

विश्वव्यापी, प्रेमस्वरूपा, दिव्य आत्मास्वरूप, आनंदस्वरूप, हजारों-करोड़ों के दिलों में आज भी राज करने वाला व लाखों जीवन में सुधार लाने वाला यह सुंदर मानवीय रूप आज व्यक्तिगत रूप में हमारे बीच नहीं है। उन शब्दों का जादू, जो हमारी आंखों के हजारों आंसुओं को पोंछता चला गया व हजारों दिलों के दर्द अपने में समेटता चला गया। आज भी हमारे चेहरे पर वह मुस्कान लाने के लिए काफी है। दिल का दर्द व आंखों में आंसू भी एक सच्चे हृदय से भगवान के मानने वाले के लिए थमते नहीं हैं। यह सोचकर की हमारी जिंदगी में एक नई रोशनी भरने वाला आज हमारे बीच नहीं है। कहने व करने में बहुत ही सरल दिखने वाला स्वभाव, समझने में बहुत ही नर्म, राज्य स्थापित करने में बहुत ही सक्षम, मोहित करने में अद्वितीय, जीवन में वह अति सुंदर पुष्प, क्रिया पूर्ति व श्वास क्रीड़ा का एक बेजोड़ खिलाड़ी श्री सत्य साई बाबा कहां चले गए समझना मुश्किल है। मानव देह ‘प्रेमस्वरूपा’ व ‘दिव्यआत्मास्वरूप’ कह कर संबोधित करती रही, परंतु आज ये शब्द सुनेंगे कहां। हां सुनेगी उसकी गुंज, वह गुंज जो हमारे कानों में बसी हुई है। इन शब्दों की शक्ति प्रेरणा स्रोत है। हमें बाधित करने के लिए की हम जीवन में एक सजग व प्रेम से भरे मांस के पुतले बने रहें।

अवतार –

‘एक विष्णु अवतार’-किसी भी अवतार के जीवन में अंकित क्षण नपे तुले होते हैं। अवतार आता है अपने एक विशेष कर्त्तव्य की पूर्ति के लिए, अपने हर एक कार्य के पूर्ण होते ही यह अवतार दुनिया से रूखसत ले लेता है। इसे मिशन कहें या फिर एक विशेष कार्य।  भगवान राम व भगवान कृष्ण का अवतार हुआ दुष्टों के संहार के लिए, भगवान श्री सत्य साई का श्री रामअवतार धर्म की स्थापना के लिए हुआ व आज भी हम सभी के दिल व मस्तिष्क भगवान राम के नाम से ही जन्म लेते हैं व जब दुनिया से प्रस्थान करते हैं भगवान राम का नाम ही हमारे साथ जाता है। श्री कृष्ण अवतार हमारे दिलों में प्रेम का सृजन करने के लिए हुआ। जीवन व सृष्टि में इतना प्रेम जिसका संदेश हम भगवान कृष्ण के ही नाम से, प्रेम या कृष्ण दोनों एक ही नाम के दो स्वरूप हैं। श्री सत्य साई का कार्य- एक बार फिर उसी धर्म को स्थापित करना, जो हर हाल में ‘सत्य, धर्म, शांति, पे्रम व अंहिसा’ मानवीय मूल्य जो धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे थे। भगवान ने बीड़ा उठाया वेदवाणी का उच्चारण करके अपने अनुयायी भक्तों में वेदों की लौ फिर से जगाकर, मानवीय मूल्यों का अलख जगाने का । हर अवतार ने अपने माता-पिता का चयन किया-भगवान श्री सत्य साई बाबा ने भी इस अवतार में श्री श्री पेड़ा वेकम्मा राजू (रत्नाकर वंश में) को पिता व श्रीमति ईश्वरम्मा को अपनी माता के रूप में चुना।

अवतार ने निश्चय किया कि मुझे आना है। दिन, माह व वर्ष निश्चित हुआ, महीना कर्तिक का था, वर्ष अक्षय जब अर्द्ध तारा बढ़ता चला जा रहा था। दिन सोमवार का था। वाद्य अपने आप बजने लगे। शंखनाद हुआ कि आज अवतार होने को है। दादा कोंडम्मा राजू व पिता और माता के हर्ष की सीमा न रही, जब भगवान का यह अवतार धरती पर आने को था। पुट्टापर्ति गांव, जहां भगवान का यह अवतार होना निश्चित हुआ चित्रावती नदी के तट पर स्थित है। बरसात में जहां हमेशा त्राहि-त्राहि व गर्मी में सूखे की स्थिति रहती थी। पुट्टापर्ति का पुराना नाम गोलापल्ली था। दर्शकों पहले यहां गौ पालकों की फौज रहती थी। एक बार गौपालकों को श्राप का सामना करना पड़ा, जब एक मरते हुए सांप ने उन्हें समाप्त हो जाने का फरमान किया। सांप को जब पत्थरों से मारा जा रहा था, उसका श्राप एक वंश की समाप्ति के लिए काफी था। आदिवासी राज्य वहां पनपने लगा। चारों ओर दीमक के पहाड़ बढ़ने लगे। चारों ओर दीमक के पहाड़ एक किला सा बनाने लगे। अब गांव का नाम गोलापल्ली से बदल कर पुट्टावरधनी, जहां दीमक के पहाड़ पनपते हैं रखा गया। धीरे-धीरे पुट्टावरधनी का नाम पुट्टापर्ति कर दिया। जिसका अर्थ रहा ‘दीमक के पहाड़ों से बना गांव’। दादा कोंडम्मा राजू जिनका स्वर्गवास 112 साल की उम्र में हुआ, दो बेटों के पिता थे, पेड़ा वेंकम्मा राजू व चिन्ना वेंकम्मा राजू। मां ईश्वरम्मा सुब्बाराजू, जो कुरनूल के रहने वाले थे की सुपुत्री थी। उन्हें तीन संताने हुई और वे एक और बेटा चाहती थी। उन्होंने अपनी प्राथनाओं को और अधिक निष्ठा से जगह दी। कुछ वर्षों की तपस्या के उपरांत देवों के देव ब्रह्मांड नायक सत्यनारायण उनके घर आने को आतुर दिखे। सत्यनारायण नाम दिया क्योंकि मां ने सत्यनारायण पूजा का प्रसाद अपनी सास से ग्रहण कर उनकी अनुभूति की थी।

साई का बाल रूप

‘सत्या’ प्रेम से गांव में सभी उन्हें इस नाम से पुकराते थे। वे केवल अपने परिवार के ही नहीं, पूरे गांव के लिए सबसे प्रिय बालक थे। उनके बालों का अनुठा स्वरूप सबको भाता था। चार साल की उम्र में भी मानव के दुख उनसे देखे नहीं जाते, वे घर आए भिक्षुक को कभी खाली हाथ व खाली पेट नहीं जाने देते। उन्होंने मांस खाने व जानवरों को मारने का हमेशा विरोध किया। ‘सत्या’ शुरू में पुट्टापर्ति प्राथमिक पाठशाला में पढ़े, हाई स्कूल शिक्षा बुक्कापट्टन्नम व कमलापुरम्म में प्राप्त की। उनके बड़े भाई शेषम राजू एक तेलगु शिक्षक थे। छह साल की उम्र में उन्हें ब्रह्माजनीं नाम दिया गया। आठ साल की छोटी उम्र में ही उनकी दिव्यता उनके सहपाठियों व शिक्षकों ने देखी। एक बार जब सत्या को उनके एक शिक्षक ने काम न करने पर सजा सुनाई व उन्हें बैंच पर खड़ा कर दिया, तो शरारत वश शिक्षक ने पाया कि वह अपने स्थान पर ही चिपक गए थे। जब सत्या को उन्होंने नीचे उतरने को कहा, तब जाकर शिक्षक अपनी कुर्सी से उठ पाए। अपने भाई के साथ वे कमलापुरम्म व बाद में उर्वाकोंडा गए। वहां पर अपनी दिव्य शक्ति से गुम हुई चीजें व चोरों को पकड़वाया। हाई स्कूल में उन्होंने एक साल पढ़ाई की। अपने शिक्षकों व सहपाठियों के वे सबसे प्रिय थे।

                    – मुकेश कुमार, सोलन


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App