देवताओं ने देवी को अपनी शक्ति का अंश प्रदान किया था

By: Nov 13th, 2019 12:19 am

देवताओं ने देवी को अपनी शक्ति का अंश भी भेंट किया। भीमकाय शरीर होने की वजह से देवी का नाम भीमाकाली रखा गया। तभी देवी ने राक्षसों का अंत कर इस क्षेत्र को उनके आतंक से मुक्ति दिलाई। पुराणों के अनुसार सती के पिता दक्ष प्रजापति ने अपने दामाद भगवान शिव को अपने घर में होने वाले महायज्ञ में आमंंत्रित नहीं किया तो नाराज सती ने क्रोध में आकर हवन कुंड में छलांग लगा दी..

गतांक से आगे …

लवी मेला (रामपुर)

देवताओं की आंखों से भी तेज प्रकट होने लगा। जब दोनों आपस में मिले तो इससे एक देवी प्रकट हुई थी। विष्णु ने उन्हें चक्र, शंकर ने त्रिशुल, वरुण ने वस्त्र व जल, कुबेर ने मुकुट और अन्य देवी-देवताओं ने अपनी शक्ति के अनुसार अन्य चीजें भेंट कीं। देवताओं ने देवी को अपनी शक्ति का अंश भी भेंट किया। भीमकाय शरीर होने की वजह से देवी का नाम भीमाकाली रखा गया। तभी देवी ने राक्षसों का अंत कर इस क्षेत्र को उनके आतंक से मुक्ति दिलाई। पुराणों के अनुसार सती के पिता दक्ष प्रजापति ने अपने दामाद भगवान शिव को अपने घर में होने वाले महायज्ञ में आमंंत्रित नहीं किया तो नाराज सती ने क्रोध में आकर हवन कुंड में छलांग लगा दी। देवी के गले हुए अंग अलग-अलग स्थानों में गिरे। शेणितपुर में उनका कान गिरा, बाद में सती का विवाह पार्वती के रूप में भगवान शिव से हुआ। माता के विवाहित रूप की मूर्ति अब भी सराहन के भीमाकाली मंदिर के गर्भ में मौजूद है। श्री भीमाकाली जी का पुराना मंदिर जो 20वीं शताब्दी के पूर्वाध में एक और झुक गया था, हाल ही में मंदिर न्यास ने जीर्णोद्धार किया है।

 बिलासपुर का नलवाड़ी मेला

यह मेला पहले बिलासपुर के ऐतिहासिक साडु मैदान में लगता था जो गोबिंदसागर में जल मग्न हो गया है। अब यह मेला गोबिंदसागर के किनारे शहर के उत्तर-पश्चिम भाग में लुहणु नामक स्थान पर लगाया जाता है। यह चैत्र मास के 4 प्रविष्ठे (17 मार्च) से आरंभ होकर सात दिनों तक चलता है। यह मेला राजा अमरचंद के समय शिमला हिल स्टेटस के सुपरिटेंडेंट डबल्यु, गोल्डस्टीन ने 1889 ई. में शुरू करवाया था। आरंभ में यह विशेष  रूप  से पशु मेला था। जिसमें मैदानी क्षेत्रों  से लोग अच्छी नस्ल के पशु लाकर स्थानीय लोगों को बेचते थे और यहां से कमजोर पशु ले जाते थे। पशुओं का कृषि में विशेष महत्व है। अब भी मेले में पशुओं  का व्यापार होता है, इसके साथ ही समयातंर इसने सांस्कृतिक मेले का रूप धारण कर लिया जिसमें बिलासपुर के ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों के लोग उल्लासपूर्वक भाग लेते हैं। स्त्रियों और बच्चों का मुख्य आकर्षण हिंडोले झुलना होता है। मेले का मुख्य आकर्षण नलवाड़ी की छिंज यानी कुश्तियां हैं जो अंतिम तीन दिनों के बाद दोपहर की आयोजित की जाती हैं और जिसमें उत्तरी भारत के मुख्य पहलवान भाग लेते हैं।                        -क्रमशः


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