धर्म सभा का आयोजन 

By: Nov 16th, 2019 12:15 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

जब स्वामीजी ने बताया कि समुद्र यात्रा के दिन विरुद्ध शास्त्र का कोई संसंगत निषेध नहीं है, मानों आग में घी पड़ गया और चिंगारी भड़क उठी। स्वामी जी ने समझाने की बड़ी कोशिश की लेकिन वह किसी बात पर तैयार नहीं थे। वहां की स्थिति को देखकर स्वामी जी ने सभी बैठे शिष्यों से कहा, धर्म के नाम से प्रचलित आचार-व्यवहार वास्तव में धर्म है या नहीं, इसकी परीक्षा कर देखने का दयित्व आज के शिक्षित युवकों के कंधों पर पड़ा है।  हमें अतीत से निकलकर वर्तमान के उन्नतिशील जगत को ओर आगे बढ़ाना है,अगर हम यह देखें कि परंपरा प्राप्त कर आचार-नियम समाज के विकास व परिपुष्टि के रास्ते में बाधा डालते हैं या ज्ञान के रास्ते में रोड़े बनते हैं तो हमें जल्द से जल्द उनका त्याग करना होगा। श्री मन्मथनाथ भट्टाचार्य उन दिनों पांडिचेरी आए हुए थे। एक दिन दंड कमंडल हाथ में लिए हुए स्वामी जी को राजपथ पर देखकर तुरंत पहचान गए कि कुछ दिनों तक स्वामी जी उनके घर ठहरे।  स्वामी जी का वह प्रथम परिचय बड़े ही साधारण ढंग से हुआ था। मन्मय बाबू पांडिचेरी में हैं, यह जानकर स्वामी जी ने एक दिन उनसे मिलकर कहा,श्रीमान दक्षिण का भोजन करते-करते मैं ऊब चुका हूं, अगर बंगाल का व्यंजन मिल जाए, तो बड़ा अच्छा होगा। इसलिए मैं आपके यहां ठहरा हूं। यह परिचय कुछ ही दिनों में और गहरा हो गया। अप्रत्याशित रूप से उस अद्भुत संन्यासी को पाकर मन्मथ बाबू की खुशी का ठिकाना नहीं रहा था। थोड़े ही दिनों में काम खत्म करने के बाद उन्होंने स्वामीजी के साथ मद्रास की ओर प्रस्थान किया। मद्रास पहुंचते ही स्वामी जी के पास लोगों की भीड़ लग गई। विश्वविद्यालय के शिक्षक व छात्र उनसे मिलने के लिए आने लगे।  प्राचीन वेदों से लेकर आधुनिकतम काम्टे, हेगेल तक अन्य काफी सारे विषयों में उनका समान रूप से अधिकार था। सब लोग उनकी बुद्धि को देखकर आश्चर्य में पड़ जाते। किसी ने लिखा है बुद्धिमस्तक मनोहर रूप, गेहुंआ रंग वस्त्रधारी ये संन्यासी कलकत्ता विश्वविद्यालय के ग्रेजुएट हैं। अंग्रेजी तो ये खुद बोलते हैं। प्रत्येक प्रश्न को एक पल में सुलझा देते हैं और वे संगीत विद्या में भी निपुण हैं। उनके कंठ से मधुर स्वर निकलते हैं जो सारे ब्रह्मांड को एकाकार कर देते हैं। लेकिन दूसरी तरह से देखा जाए, तो वे पूरे त्यागी, निसंबल,परिव्राजक मात्र हैं। बलिष्ठ, साहसी, उच्चस्तरीय व्यंग विनोद में पटु इन संन्यासी ने बहुत से लोगों के दिल में विश्वास की ज्योति जगाई। स्वामी जी मद्रास पहुंचे। कुछ ही दिनों में उनकी प्रतिभा व विद्वता की ख्याति शिक्षित समाज में चर्चा का विषय बन गई। इस समय संयुक्त राज्य अमरीका के शिकागो शहर में महासम्मेलन के साथ ही विराट धर्म सभा का आयोजन हो रहा था।                           -क्रमशः

 

 


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